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युवराज की प्रेरणा

जागरण मेहमान कोना
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कैंसर को शिकस्त देने के बाद बुधवार को मीडिया से पहली बार मुखातिब हो रहे युवराज सिंह विश्वास से लबरेज दिख रहे थे। उनकी बॉड़ी लेंग्वेज से दूर-दूर तक यह संकेत नहीं मिल रहा था कि वह इतनी बड़ी बीमारी को मात देकर आ रहे हैं। पूरे देश की शुभकामनाएं और सदभावनाएं उनके साथ हैं। पर बेहतर होगा कि इस कठिन वक्त में उन खिलाडि़यों के जीवन से भी प्रेरणा लें, जिन्होंने किसी गंभीर रोग या घायल होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और किसी योद्धा की भांति रणभूमि में फिर लौटे। आमतौर पर युवराज साइकिलिस्ट लांस आर्मस्ट्रांग से ही प्रेरणा लेते हैं, जो खुद कैंसर को मात देकर निकले थे। लांस आर्मस्ट्रांग की जिजीविषा के युवी कायल हैं। आर्मस्टांग को साल 1999 से 2005 के बीच लगातार टूर दि फ्रेंच साइकिल प्रतियोगिता को जीतने का गौरव हासिल है। कैंसर से पीडि़त होने के बावजूद आर्मस्ट्रांग ने कभी हार नहीं मानी। इसलिए पूरी दुनिया के खिलाडि़यों के वह आदर्श बन चुके हैं। विपरीत परिस्थितियों से कैसे लड़ा जा सकता है, यह तो कोई लांस आर्मस्ट्रांग से सीखे। उन्होंने टिवटर पर युवी को भेजे एक संदेश में उम्मीद जताई है कि वह आगे बढ़ते रहें, पीछे मुड़कर न देखें। और युवराज सिंह चाहें तो भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान मंसूर अली खान पटौदी से भी प्रेरणा ले सकते हैं।


घर वापसी के बाद की चुनौतियां


भारत का कप्तान बनने से चंद माह पहले पटौदी की एक कार हादसे में दायीं आंख की रोशनी जाती रही थी। पर टाइगर की तरह से विपरीत हालातों में लड़ने वाले पटौदी ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक आंख से बल्लेबाजी करते हुए टेस्ट मैचों में 6 शतक और 16 अर्धशतक ठोके। इनमें एक दोहरा शतक भी शामिल है। कहा जाता है कि वह जब बल्लेबाजी करते थे तब उन्हें दो गेंदें अपनी तरफ आती हुई दिखती थीं। पर पटौदी ने हमेशा उस गेंद को खेला जिसे उन्हें खेलना चाहिए था। अब जरा इंग्लैंड के महान फुटबॉलर बेकहम की बात कर लेते हैं। हालांकि उन्हें कैंसर जैसे जानलेवा रोग ने तो अपनी चपेट में नहीं लिया, पर वे दमा के रोगी हैं। इसके बावजूद उन्होंने फुटबाल के मैदान पर नई बुलंदियों को छुआ। जाहिर तौर पर युवी में लड़ने का जज्बा तो है। इसे उन्होंने बार-बार मैदान के भीतर साबित करके दिखाया भी है। उनका कैंसर को शिकस्त देना गवाह है कि उन्हें अभी लंबी यात्रा करनी है।


क्या युवी फिर मैदान पर उतर पाएंगे?


महान टेनिस खिलाड़ी मार्टिना नवरातिलोवा के कैंसर को मात देने और आगे बढ़ने के जज्बे से कौन प्रेरणा नहीं पाता। हालांकि यह भी सत्य है कि जब डॉक्टरों ने परीक्षणों के बाद मार्टिना को कैंसर से ग्रस्त बताया तब उनकी पहली टिप्पणी थी, हालांकि मुझे कोर्ट के भीतर क्रिस एवर्ट, स्टेफी ग्राफ, मोनिका सेलेस तथा विलियम्स बहनों से कड़ी टक्कर मिलती रही, पर कैंसर से लड़ना इन सबसे लड़ने की तुलना में अधिक कठिन है। जिस दिन मुझे डॉक्टरों ने कैंसर का रोगी बताया उस दिन को मैं 9/11 की तरह से भयावह मानती हूं। खैर, कैंसर को परास्त करने के बाद मार्टिना फिर से सक्रिय हैं। वह टेनिस के साथ-साथ आइस हाकी भी खेलती हैं। इसी तरह, अमेरिका के महान गोल्फर बेन होगन साल 1949 में एक सड़क हादसे में बुरी तरह से घायल हो गए थे। होगन को शरीर के विभिन्न अंगों में चोटें आई थीं। करीब सोलह हफ्ते तक वह जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे थे। पर सौभाग्यवश कुछेक महीनों तक अस्पताल में इलाज करवाने के बाद उनकी सेहत सुधरने लगी। उसक बाद वह फिर से मैदान में कूद पड़े। होगन ने 1950 का य़ूएस ओपन गोल्फ समेत अनेक गोल्फ मुकाबले जीते। युवराज सिंह ने पहली जंग को योद्धा की तरह जीत लिया है। अब उन्हें फिर से मैदान में कूदना है। उनके पास उन तमाम खिलाडि़यों के उदाहरण मौजूद हैं, जिन्होंने अपनी हिम्मत के बल पर विपरीत हालात में कामयाबी पाई। युवराज सिंह जैसे इंसानों को यह बताने की जरूरत नहीं कि जिनमें लड़ने का जज्बा होता है, उनकी मदद खुदा भी करता है।


लेखक विवेक शुक्ला स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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