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इजरायली दूतावास की कार में हुए विस्फोट को भारत की सुरक्षा के लिए नए किस्म के खतरे के रूप में देख रहे हैं अवधेश कुमार
13 फरवरी को दिल्ली के औरंगजेब मार्ग पर इजरायली दूतावास की कार में हुए विस्फोट का संदेश पिछली आतंकी घटनाओं से अलग नजर आ रहा है। इजरायली महिला राजनयिक की कार को निशाना बनाने का अर्थ पश्चिम एशिया की आतंकवादी धारा का भारत में प्रवेश कर जाना है। अभी तक भारत में जितनी आतंकवादी घटनाएं हुईं उनके सूत्र पाकिस्तान और बांग्लादेश तक ही सीमित रहे हैं। कुछ ही घंटे के अंतराल पर दिल्ली में कार बम विस्फोट और जार्जिया की राजधानी तिबिलिसी में इजरायली राजनयिक पर हमले के विफल प्रयास को एक साथ मिलाकर देखें तो बहुत कुछ साफ हो जाता है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू का इस हमले में ईरान का हाथ होने का आरोप कतई अस्वाभाविक नहीं है। एक सप्ताह पहले ही ईरान की शिन वेट सिक्योरिटी एजेंसी के प्रमुख योराम कोहेन का इजरायल के एक अखबार में बयान प्रकाशित हुआ था कि ईरान अपने रिवोल्यूशनरी गार्ड के माध्यम से दुनिया भर में इजरायल को लक्ष्य बनाकर हमले की तैयारी कर रहा है। उन्होंने तुर्की में इस्तानबुल स्थित वाणिज्य दूतावास, अजरबैजान की राजधानी बाकू तथा थाईलैंड में विफल किए गए हमलों की साजिशों का उल्लेख किया। वस्तुत: इस समय ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम को लेकर दोनों देशों के बीच जारी तनाव काफी आगे बढ़ चुका है।
पिछले कुछ महीनों में ईरान के जितने नाभिकीय वैज्ञानिकों की हत्याएं हुई हैं उनके लिए ईरान सीधे इजरायल को ही दोषी करार दे रहा है। ईरान के शिया कट्टरवाद के विरुद्ध सुन्नी बहुल पड़ोसी देश एकजुट हैं। वे मानते हैं कि नाभिकीय अस्त्र का लक्ष्य शिया मजहबी शासन को शक्तिसंपन्न बना कर सुन्नियों को धौंस में रखना है। यह बताने की आवश्यकता नहीं कि इस समय ईरान तथा इजरायल-अमेरिका के बीच एक प्रकार का छद्म युद्ध चल रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि इजरायल उन ईरानी विद्रोहियों को प्रशिक्षण दे रहा है जो आतंकवादी संगठन मुजाहेद्दीन खल्क ऑर्गेनाइजेशन से संबद्ध हैं। ईरान ने इजरायल के आरोपों का खंडन किया है और अभी तक ईरान की सरकार द्वारा आतंकवादी हमलों के समर्थन का प्रमाण उपलब्ध नहीं है, लेकिन जिस तरह दिल्ली से लेकर बैंकाक, अजरबैजान तक इजरायली राजनयिकों पर हमले की कोशिशें हुई हैं उससे ईरान पर संदेह जाता ही है। जिस तरह दिल्ली में मोटरसाइकिल सवार द्वारा कार पर बम चिपकाया गया वैसा ही तिबिलिसी में भी हुआ जिसे गार्ड द्वारा देख लिए जाने के कारण नष्ट कर दिया गया। ईरानी वैज्ञानिकों की हत्याओं में इसी प्रकार के चुंबकीय या चिपकाऊ बमों [जिसे लिंपेट माइंस कहते हैं] उनका प्रयोग किया गया था।
2007 से ईरान के पांच नाभिकीय वैज्ञानिक रहस्यमय परिस्थितियों में मार डाले गए हैं। ईरान नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के वर्तमान प्रमुख फेरेयदौन अब्बासी भी नवंबर 2010 में इसलिए बच गए, क्योंकि विस्फोट से तुरंत पहले वह कार से निकल गए थे। ईरान के प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम के प्रमुख माने जाने वाले मेजर जनरल हसन मोगद्दम तो नवंबर 2011 में प्रक्षेपास्त्र निर्माण केंद्र पर ही विस्फोट में मारे गए। इस हमले में ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड के कई जवानों की मृत्यु हो गई थी। इनकी हत्या का आरोप इजरायल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद पर लगा है। ऐसी हर हत्या पर ईरान ने प्रतिशोध की घोषणा की है। इस तरह दिल्ली के कार बम धमाके को किसी अन्य आतंकवादी हमले की तरह नहीं देखा जा सकता। इजरायल ईरान समर्थित शिया आतंकवादी संगठन हिज्बुल्ला पर आरोप लगा रहा है। हालांकि पिछले वर्ष से यह लेबनान की गठबंधन सरकार का अंग है, पर इजरायल के साथ-साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी आदि देशों ने इसे आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है।
भारत में लिंपेट माइंस या चुंबकीय बम के प्रयोग की यह पहली घटना है। ध्यान रहे कि यह हमला विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के इजरायल दौरे के एक सप्ताह बाद हुआ है। कुछ लोग हमलों को विदेश मंत्री के इजरायल दौरे से जोड़कर देखना उचित नहीं मानते। वैसे यह बात समझ से परे है कि इस कारण हिज्बुल्ला या दूसरे संगठन भारत में इजरायली राजनयिक पर हमले करेंगे, किंतु आतंकवाद की घटनाओं के पीछे कोई विवेकयुक्त तर्क नहीं होता। जो हमें अविवेकी, अतार्किक या कुतर्क लगता है वही आतंकवादियों के लिए हिंसा का सर्वाधिक प्रेरक तत्व हो सकता है। औरंगजेब मार्ग स्थित मकानों पर लगे सीसीटीवी कैमरों के कारण संदिग्ध मोटरसाइकिल सवार की तस्वीर मिलने की बात की जा रही है। यह सच है तो निश्चय ही पुलिस घटना की तह तक पहुंच जाएगी। सरकार को पक्का सबूत मिलने के बाद ही कोई घोषणा करनी चाहिए, लेकिन सुरक्षा एवं राजनय की दृष्टि से इस विषय पर गंभीर विचार तो होना ही चाहिए। आखिर इजरायली राजनयिक पर राजधानी में दिनदहाड़े हमला होना क्या साबित करता है? इजरायल तो कई महीने से कह रहा है कि आतंकवादी उसके नागरिकों को दुनिया भर में निशाना बनाने की साजिश रच रहे हैं। जामा मस्जिद के बाहर पर्यटकों की बस पर 19 सितंबर, 2010 को मोटरसाइकिल सवारों ने हमला किया था। वैश्विक जिहादी आतंकवाद के शीर्ष राडार पर होने के कारण आतंकी हमलों के नए-नए तरीकों पर नजर रखना एवं उनके अनुरूप तैयारी सुरक्षा की प्राथमिक मांग है। जाहिर है, यह घटना भी अन्य अनेक घटनाओं की तरह काफी हद तक हमारी सुरक्षा में खामी का परिणाम है।
लेखक अवधेश कुमारवरिष्ठ स्तंभकार हैं
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