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अन्ना की आंधी है, यह हमारा गांधी है जैसे नारों के साथ युवाओं की टोलियां भ्रष्टाचार के खिलाफ सड़कों पर उतर चुकी हैं। आज का युवा एक नए जोश के साथ भ्रष्टाचार का खात्मा करने के लिए उठ खड़ा हुआ है। इस माहौल में गौर करने लायक बात यह है कि अभी कुछ समय पहले तक गांधीवाद को मजाक और व्यंग्य के तौर पर इस्तेमाल करने वाला युवा आज गांधीवाद के रास्ते पर चलने के लिए तैयार है। गांधी जी से पहले आजादी की चाहत में जगह-जगह अपने-अपने तरीके से आंदोलन चल रहे थे। गांधीजी ने इन सभी आंदोलनों को एक सूत्र में पिरोकर एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यही थी कि उन्होंने आजादी के लिए पूरे देश में एक जज्बा पैदा किया। इस समय यही काम अन्ना हजारे कर रहे हैं। यदि इस दौर में समाज को अन्ना में एक गांधी दिखाई दे रहा है तो यह अकारण नहीं है।
आज भ्रष्टाचार ने हमारे समाज को पंगु बना दिया है। ऐसे समय में अन्ना ने हमें एक भरोसा दिलाया है। अन्ना का जीवन, आचार-व्यवहार और भ्रष्टाचार से लड़ने का जज्बा भी किसी से छिपा नहीं है। शायद यही कारण है कि अन्ना में इस समाज का भरोसा और पक्का होता जा रहा है। आजादी के आंदोलन में समाज ने यह महसूस किया था कि गांधीजी की कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। इसीलिए गांधीजी के सत्याग्रह से पूरा भारत जुड़ पाया। आज फिर लोगों को यह लग रहा है कि अन्ना का जीवन एक खुली किताब है। इस खुली किताब का हर पृष्ठ समाजसेवा और परोपकार की कहानी कह रहा है। शर्म की बात यह है कि यह सब जानते हुए भी कुछ लोग अपने आपको बचाने के लिए इस खुली किताब के पन्नों पर काला धब्बा लगाने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस सब क्रियाकलापों से बेखबर अन्ना गांधीजी की ही तरह जिद पर अड़े हुए हैं। गांधी की ही तरह उनकी यह जिद देशहित के लिए है। यह सही है कि अन्ना हजारे के इस आंदोलन से पहले भ्रष्टाचार मिटाने के लिए देश में बडे़ आंदोलन नहीं हुए थे, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ देश के अनेक भागों में कई समाजसेवक संघर्ष कर रहे थे।
भ्रष्टाचार के खिलाफ देश में चल रहे इन छोटे-छोटे आंदोलनों को अन्ना हजारे ने एक नई आवाज दी। अन्ना ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ऐसा आंदोलन चलाया है जिसमें प्रत्येक जाति, वर्ग और पंथ के लोग मौजूद हैं। इस आंदोलन से अमीरी-गरीबी और ऊंच-नीच का भेद मिट गया है। इस माहौल में कुछ दलित बुद्धिजीवी इस आंदोलन की प्रकृति पर भी सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि सिविल सोसायटी में कोई दलित नहीं है। यह बिल्कुल उसी तरह है जिस तरह दलितों के मुददे पर गांधीजी को घेरा गया था। अन्ना ने कहा है कि वह दलितों की समस्याओं को अच्छी तरह जानते हैं। सवाल यह है कि क्या भ्रष्टाचार भी जाति, वर्ग और धर्म के आधार पर अलग-अलग होता है। दरअसल, भ्रष्टाचार तो केवल भ्रष्टाचार है। वह जाति के आधार पर छोटा-बड़ा नहीं होता है। इसलिए हमें सिविल सोसायटी को जाति के आधार पर बांटने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। भष्टाचार से निपटने के लिए हर जाति और वर्ग को आगे आना होगा।
जनलोकपाल बिल पारित होने के बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि इस बिल के माध्यम से भ्रष्टाचार पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसके बावजूद यह आंदोलन आशा की एक किरण तो जगाता ही है। हालांकि अधिकतर लोग अन्ना के आंदोलन का असली उद्देश्य नहीं बता पाते हैं। उन्हें तो केवल इतना पता है कि अन्ना भ्रष्टाचार मिटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अन्ना के आंदोलन में शामिल होने के लिए जा रहे युवाओं से जब मैंने पूछा कि आपको जनलोकपाल बिल के बारे में क्या मालूम है तो 80 फीसदी ठीक उत्तर नहीं दे पाए। लेकिन इस बात से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है कि युवाओं को इस बिल के बारे में कितनी जानकारी है। असली सवाल देश की बड़ी समस्या से युवाओं के जुड़ने का है। अन्ना के साथ-साथ युवाओं के इस जज्बे को सलाम।
रोहित कौशिक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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