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घर वापसी के बाद की चुनौतियां

जागरण मेहमान कोना
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Shivendraइस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि घर वापसी ने युवराज सिंह का मनोबल बढ़ाया होगा। अब युवराज के परिवार और उनके इर्द-गिर्द के लोगों को इस बात का ध्यान खासतौर पर रखना होगा कि फिलहाल युवी को सिर्फ युवराज सिंह बनकर ही रहने दिया जाए। ब्रांड युवराज फिलहाल युवी के आसपास भी नहीं फटकते। युवराज को ब्रांड युवराज से बचाकर रखना होगा। अमेरिका में युवराज सिंह से मिलकर आए उनके एक करीबी दोस्त ने मुझे बताया कि इलाज के दौरान युवी को जब भी खाली वक्त मिलता था तो वह अपनी खेली गई पारियों की वीडियो फुटेज देखना पसंद करते थे। युवराज एक फाइटर हैं और खुद को प्रेरित करने के लिए उनका यह टाइम पास का जरिया एक अच्छा विकल्प था। पर इससे जुड़ा एक मनोवैज्ञानिक पहलू भी है, जो कहता है कि युवराज को अपनी खेली गई पुरानी पारियों को लेकर जरूरत से ज्यादा संजीदा नहीं होना चाहिए। उन्हें हर वक्त यह नहीं सोचना चाहिए कि क्या वह दोबारा उसी तरह की पारियां फिर कब खेल पाएंगे। इस मनोवैज्ञानिक सोच के पीछे तर्क बहुत सीधा है। इस तरह लगातार अपनी पारियों को देखकर युवराज खुद पर एक ऐसा मानसिक दबाव बना लेंगे जो आने वाले दिनों में उन्हें परेशान कर सकता है। अमेरिका में कैंसर का इलाज कराकर युवराज सिंह को घर लौटे अभी कुछ दिन ही हुए हैं। जिंदगी की एक बहुत बड़ी जंग उन्होंने जीत ली है।


युवराज को अब उन छोटी-मोटी चुनौतियों का सामना करना है, जिसके लिए दिमागी तौर पर बेहद मजबूत होने की काफी जरूरत है। ऐसे में युवराज सिंह की प्राथमिकता सिर्फ इतनी होनी चाहिए कि सबसे पहले वह एक सेहतमंद इंसान बनें। सबसे पहले वह एक रोग मुक्त व्यक्ति की तरह सामान्य जिंदगी में वापस लौटें। कैंसर की बीमारी और उसके इलाज की लंबी प्रक्रिया ने उनके शरीर पर जो नकारात्मक असर डाले हैं, उससे वह अपने शरीर को पूरी तरह निजात दिलाएं। कुल मिलाकर कहा जाए तो यह वह वक्त है जब बेहतर होगा कि युवराज सिंह थोड़े दिनों के लिए क्रिकेट को भूल जाएं। क्रिकेट को भूल जाने से सीधा मतलब यह है कि वह इस बात का कतई तनाव न लें कि उन्हें मैदान में वापसी कैसे करनी है, कब करनी है या फिर जब तक वे टीम में लौटेंगे उनकी जगह सुरक्षित बचेगी या नहीं? युवराज सिंह ने सोशल नेटवर्किग साइट ट्विटर के जरिये यह जानकारी दी थी कि वह अपने इलाज के दौरान साइकलिस्ट लांस ऑर्मस्ट्रांग की किताब माई जर्नी बैक टू लाइफ को पढ़ रहे थे। उस किताब को पढ़कर युवराज को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई होगी कि ऑर्मस्ट्रांग ने कैंसर के खिलाफ शारीरिक लड़ाई जीतने के साथ-साथ मानसिक लड़ाई कैसे जीती थी? किस तरह कैंसर से निजात पाने के बाद ऑर्मस्ट्रांग ने जब वापसी की तो पहले के रिकॉर्ड से बेहतर रिकॉर्ड बनाकर जीत हासिल की थी। युवराज को अब दिमागी तौर पर खुद को कुछ उसी तरह ही तैयार करना होगा। अंग्रेजी में एक कहावत कही जाती है कि देयर इज नो प्लेस लाइक होम। युवराज उसी होम में वापस आ गए हैं। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि घर वापसी ने उनका मनोबल बढ़ाया होगा।


क्या युवी फिर मैदान पर उतर पाएंगे?


अब युवराज के परिवार और उनके इर्द-गिर्द के लोगों को इस बात का ध्यान खास तौर पर रखना होगा कि फिलहाल युवी को सिर्फ युवराज सिंह बनकर ही रहने दिया जाए, क्योंकि ब्रांड युवराज फिलहाल युवी के आसपास भी नहीं टिकते। युवराज को ब्रांड युवराज से बचाकर रखना जरूरी होगा। यानी युवराज सिंह को फिलहाल यह समझाना होगा कि वह खुद को एक आम इंसान समझें न कि क्रिकेट जैसे बड़े खेल का एक बड़ा सुपरस्टार अथवा विश्वविजेता टीम का नायक। युवी को उस चकाचौंध से बचाकर रखना होगा जो बं्राड युवी के इर्द-गिर्द मंडराती रही है। यह आसान काम नहीं है, लेकिन अगर सोच समझ के साथ यह काम किया जाए तो मुझे नहीं लगता कि इसमें किसी तरह की मुश्किल उनके सामने आ सकती है या उनके इरादों पर अपना जरा-सा भी प्रभाव जमा सकती है। क्रिकेट के खेल में युवराज सिंह को अब कुछ भी साबित करना बाकी नहीं रह गया है, सिवाय इसके कि वह एक अच्छे टेस्ट क्रिकेटर भी हो सकते हैं। यहां यह बात जानना भी जरूरी है कि जिस युवराज सिंह को हम सभी एक बेहतरीन वन डे प्लेयर के तौर पर जानते हैं, दरअसल उनकी दिली ख्वाहिश रही है कि वह भारत की टेस्ट टीम के लिए बड़ी भूमिका अदा करें। कैंसर का पता चलने के पहले तक युवराज टेस्ट क्रिकेट को लेकर अपनी संजीदगी जताते रहे हैं। हालांकि यह अलग बात है कि टेस्ट टीम में युवराज इक्का दुक्का मौकों को छोड़कर अपनी उपयोगिता साबित नहीं कर पाए। 16 अक्टूबर 2003 और 17 नवंबर, 2011 यह दोनों तारीखें युवराज के टेस्ट कॅरियर में बेहद अहम रही हैं।


16 अक्टूबर, 2003 को युवराज सिंह ने अपने टेस्ट कॅरियर की शुरुआत की थी और बीते साल 17 नवंबर को उनका टेस्ट कॅरियर तब अंधेरे से घिरा दिखने लगा था जब उन्हें वेस्टइंडीज के खिलाफ टेस्ट सिरीज की टीम से बाहर रखा गया। उसी दौरान युवराज अपनी सेहत को लेकर भी मुश्किल में थे। युवराज जब कैंसर का इलाज कराने के लिए अमेरिका गए, तब तमाम छोटे-मोटे विवाद भी उठे। मीडिया में ऐसी खबरें आई कि युवराज को कैंसर का पता पहले ही लग गया था, लेकिन वह अपने इलाज को लेकर सही दिशा तय नहीं कर पाए या सही दिशा को तय करने में उन्होंने काफी देर कर दी। युवराज के फिजियोथेरेपिस्ट को भी सवालों के कठघरे में खड़ा किया गया कि उन्होंने युवराज को गलत सलाह दी। बीसीसीआई पर उंगलियां उठीं कि उन्होंने इस बात को जानते हुए भी युवराज को टीम में जगह कैसे दे दी जबकि वह कैंसर जैसी घातक बीमारी से पीडि़त थे। उड़ते उड़ते ऐसी खबरें भी आई कि युवराज कुछ धार्मिक गुरुओं के चक्कर में फंस गए थे। हालांकि इन सारी परेशानियों और विवादों से बचते बचाते युवराज सिंह अपना इलाज कराते रहे और वक्त वक्त पर अपनी सेहत से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक करते रहे। अपने चाहने वालों से जुड़े रहे। अब अगले कुछ महीने युवराज को सुर्खियों में आने से बचना होगा। पुरानी यादों और पुराने विवादों से बचना होगा। तब कहीं जाकर वह युवराज सिंह हमें वापस मिलेंगे, जिन्हें एक चैंपियन खिलाड़ी की तरह जाना जाता है। पूरा देश चाहता है कि युवराज इतने मजबूत होकर लौटें कि लांस ऑर्मस्ट्रांग को भी पीछे छोड़ दें। देश को युवराज सिंह के तौर पर अपना लांस ऑर्मस्ट्रांग चाहिए जो कैंसर जैसी भयानक बीमारी को हराने के बाद पहले सेहतमंद जिंदगी की जंग जीतेगा और फिर क्रिकेट की जंग।


लेखक शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं


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