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मशहूर पंजाबी पॉप गायक पंजाबी पॉप गायकपंजाबी पॉप गायक हनी सिंह पिछले कुछ दिनों से विवाद का केंद्र बने हुए हैं। उनके गानों में अपशब्दों के प्रयोग और अश्लीलता के चलते लखनऊ के आईपीएस अधिकारी अमिताभ सिंह ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है। हनी सिंह कोई आज के गायक नहीं हैं। वह पिछले तीन सालों से गाने गा रहे हैं। लिहाजा, यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब वह इतने लंबे समय से समाज में बेशर्मी से अश्लीलता परोसने का काम बेधड़क करते जा रहे थे तब किसी का ध्यान उस तरफ क्यों नहीं गया? मैं हनी सिंह का प्रशंसक नहीं हूं और न ही अमिताभ ठाकुर के प्रति कोई दुराभाव रखता हूं, लेकिन ऐसे समय में जब देश में दुष्कर्म से जुड़े कानूनों और इस जघन्य अपराध की सजा निर्धारित करने को लेकर बहस छिड़ी हो, क्या हनी सिंह को इतनी तवज्जो देना सही है? हनी सिंह पर पुलिस केस दर्ज होने के बाद इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का एक वर्ग उनके विवादित विडियो को बार-बार दिखाकर क्या साबित करना चाहता है? आखिर क्यों हनी सिंह को इस तरह पेश किया जा रहा है, जैसे वह कोई मशहूर हस्ती हों? एक इंसान दो कौड़ी की शब्द रचना को गाकर अचानक युवा वर्ग में लोकप्रियता की सीमाएं लांघ जाता है और तीन वषरें में उसे रोकने वाला कोई व्यक्ति या संगठन सामने नहीं आता।
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यह अपने आप में गंभीर मसला है जिस पर सोचना जरूरी है। इन तीन वर्र्षो तक क्या हमारे समाज और सूचना एवं प्रसारण विभाग ने कानों में रुई ठूस रखी थी या दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को भी हनी सिंह के गानों पर थिरकना रास आ रहा था? विडंबना यही है कि सरकारी व्यवस्थाएं और संस्थाएं इसी तरह काम करती हैं। देखा जाए तो इस पूरे प्रकरण में हनी सिंह की कोई गलती नहीं है। उन्होंने वही गाया जो युवा वर्ग में लोकप्रिय हुआ। इन दिनों तमाम समाचार चैनलों पर, हर गली-नुक्कड़ पर सोच बदलने की बात की जा रही है, लेकिन इस पर कोई बात नहीं कर रहा है कि इस सोच में बदलाव आखिर आएगा कैसे। एक ओर तो युवा दिल्ली सहित पूरे देश में दुष्कर्म की शिकार पीडि़ता के पक्ष में रैलियां, जलसे और शांति मार्च निकाल रहे हैं, वहीं दूसरी और वही युवा हनी सिंह के गाने यूट्यूब पर 10 लाख से ज्यादा बार देख रहे हैं। ट्विटर पर हनी सिंह के फॉलोअर्स की संख्या 50,000 को पार कर रही है। फेसबुक पर हनी सिंह की फ्रेंड लिस्ट लगातार लंबी हो रही है। ऐसे में अकेले हनी सिंह को ही दोष क्यों दिया जाए? क्या ऐसा नहीं लगता कि देश का युवा वर्ग दिग्भ्रमित है? युवाओं ने खुद को भीड़ तंत्र में बदलकर सरकार को झुकाना और उससे टकराना तो सीख लिया है, लेकिन नैतिकता, संस्कार और संस्कृति के मामले में यही युवा वर्ग पश्चिम का अंधानुकरण कर रहा है, जिसकी परिणति हनी सिंह जैसे व्यक्तित्व को ऊंचाइयों पर स्थापित करा रही है।
एक तरफ युवा वर्ग इंडिया गेट पर लाठियां खाता है तो दूसरी तरफ क्रिसमस पार्टी में भी झूमता है। युवा वर्ग में हनी सिंह और उनके अश्लील गानों की लोकप्रियता का आलम यह है कि वह जहां भी जाते हैं, उनसे बलात्कारी गाने की फरमाइश की जाती है। इन कार्यक्रमों में लड़कियों की भी अच्छी खासी तादाद होती है। इसका मतलब यही है कि लड़के हों या लडकियां, उन्मुक्तता ने उनमें सोई कामुकता को जगा दिया है। सोचने वाली बात है कि जब लड़के-लडकियां एक साथ हनी सिंह का बलात्कारी सुन सकते हैं तो यदि आज यही शब्द उनके जीवन में घर कर गया है तो बदलाव की उम्मीद कैसे की जाए? वर्तमान में एक भी ऐसी शादी या एक भी ऐसी अभिजात्य वर्ग की पार्टी नहीं दिखती जिसमें हनी सिंह के गानों पर रोक हो। युवा उनके गानों पर जमकर थिरकते हैं और जहां हनी सिंह के गाने नहीं बजते वहां भी उनकी मांग होती है। हनी सिंह को बढ़ावा दिया है युवा वर्ग ने, हमारे समाज ने। हनी सिंह पर पुलिस केस दर्ज करने के बाद क्या युवा वर्ग पर कोई केस दर्ज होगा? क्या समाज इस बात की नैतिक जिम्मेदारी लेगा कि उसकी अनदेखी ने ही हनी सिंह को मर्यादा की सीमाएं लांघने का अभयदान दिया है या सरकारी तंत्र इस बात को लेकर जरा भी शर्रि्मदा होगा कि उसने हनी के गानों और उनमें व्याप्त अश्लीलता को नजरअंदाज किया, जिसने इस गायक को आज देश की ज्वलंत समस्याओं से इतर एक मुद्दा बना दिया? हनी सिंह जैसों को हमारा समाज ही पैदा करता है और जब वे उसी के लिए नासूर बन जाते हैं तब उनका शोक मनाया जाता है। लगता है आज भी हमारे समाज ने इतिहास से सबक लेना नहीं सीखा है।
लेखक सिद्धार्थ शंकर गौतम स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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