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अक्षमता को पुरस्कार

जागरण मेहमान कोना
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Pradeep Singhकेंद्रीय मंत्रिमंडल में नाकाम मंत्रियों की प्रोन्नति पर अफसोस जता रहे हैं प्रदीप सिंह

जो मंत्री देश की करीब आधी आबादी को अंधेरे में रखने के लिए जिम्मेदार हो उसके साथ क्या होना चाहिए? स्वाभाविक रूप से उसकी जवाबदेही तय करके उसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। पर संप्रग के राज में ऐसा नहीं होता। देश के ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे को देश को अंधेरे में धकेलने का पुरस्कार मिला है। वे अब देश के नए गृहमंत्री हैं। उन्हें अपनी नाकामी का अफसोस नहीं उस पर गर्व है। उनका दावा है कि अमेरिका को ग्रिड सुधारने में कई दिन लग जाते हैं, हमने तो कुछ घंटे में सुधार लिया। राजनीति में सही गलत से भी ज्यादा अहम होता है फैसले लेने का समय। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी शायद यह मानते हैं कि सही समय वही है जब वे फैसला करें। शिंदे आदर्श सोसाइटी घोटाले में शक के दायरे से बाहर नहीं हुए हैं। केंद्र की संप्रग सरकार रुके हुए और गलत फैसलों की सरकार बन गई है। देश को आर्थिक महाशक्ति बनाने का दावा करने वाले उत्पादित बिजली का कुशल प्रबंधन भी नहीं कर पा रहे हैं। सोमवार को उत्तरी ग्रिड फेल हुई तो ऊर्जा मंत्री उसका कारण बताने की बजाय मीडिया को बता रहे थे कि प्रधानमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष के आशीर्वाद किस तरह बिजली उत्पादन बढ़ाने में कामयाब हुए हैं। दूसरे दिन उत्तरी, पूर्वी और उत्तर-पूर्व ग्रिड भी फेल हो गई। देश के बीस राज्यों में बिजली आपूर्ति बहाल होने से पहले शिंदे केंद्रीय गृह मंत्री बन गए। उनकी सबसे बड़ी योग्यता गांधी परिवार के प्रति वफादारी है। कुछ दिनों पहले राहुल गांधी ने युवक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं से कहा कि मौलाना अबुल कलाम आजाद के कद का कोई मुसलिम नेता कांग्रेस में नहीं है। उन्होंने पूछा कि पांच मुसलिम नेताओं के नाम बताइए जिन्हें पूरे देश में जाना-पहचाना जाता हो।


कार्यकर्ताओं ने सलमान खुर्शीद और गुलाम नबी आजाद का नाम लिया। राहुल गांधी ने कहा दक्षिण भारत में इन्हें कोई नहीं जानता। अब राहुल जी से कोई पूछे कि नेता के चयन का आधार उसके जनाधार की बजाय परिवार के प्रति वफादारी होगी तो उसे परिवार के बाहर कौन जानेगा। राहुल गांधी कांग्रेस के भविष्य के नेता हैं। देश के लोग जानना चाहेंगे कि शिंदे को तरक्की देने के उनकी पार्टी और सरकार के फैसले के बारे में उनकी क्या राय है। ग्रिड क्यों फेल हुई? ऊर्जा मंत्रालय कह रहा है कि राज्यों ने अपने कोटे से ज्यादा बिजली ली। इनमें प्रमुख हैं उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पंजाब। नियम यह है कि ग्रिड का अनुशासन तोड़ने वाले राज्य को तीन बार चेतावनी दी जाती है और उसके बाद कार्रवाई होती है। इन राज्यों को तीन महीने में कुल मिलाकर 319 बार चेतावनी दी गई, पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। क्योंकि मंत्री में कार्रवाई करने की राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी। मंत्री ने इन राज्यों के ऊर्जा मंत्रियों या मुख्यमंत्रियों को चेतावनी देना तो दूर बात करके मामले को सुलझाने की कोशिश भी नहीं की। मंगलवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल में विभागों के फेरबदल से दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं।


मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी के राज में अक्षमता पुरस्कृत होती है। दूसरी बात यह कि कांग्रेस में योग्य लोगों की भारी कमी हो गई है। या यह कहना ज्यादा ठीक होगा कि गांधी परिवार के प्रति वफादार योग्य लोगों की कमी है। देश की तरक्की का रास्ता ऊर्जा क्षमता के विकास से होकर गुजरता है। सुशील कुमार शिंदे ने इस मंत्रालय का बंटाधार ही किया है। उन्हें देश का गृहमंत्री क्यों बनाया गया है? उनका कहना है कि सोनिया जी दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों का बहुत खयाल रखती हैं इसलिए एक दलित को गृहमंत्री बनाया है। अपनी तमाम योग्यताओं और अनुभव के बावजूद वित्तमंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी नाकाम रहे। करीब चार साल तक वित्तमंत्री रहने के बावजूद वह जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) लागू नहीं करवा पाए। अपने पहले दो बजट में वह इसे लागू करने की तारीख देते रहे और आखिरी बजट में वह भी नहीं किया। जीएसटी पर पूरे देश में एक राय है कि इससे सकल घरेलू उत्पाद में डेढ़ से दो फीसदी इजाफा हो सकता है, लेकिन केंद्रीय बिक्रीकर के मुद्दे पर केंद्र सरकार के अडि़यल रवैए के कारण जीएसटी का मुद्दा फंसा हुआ है। उनके आखिरी बजट ने अर्थव्यवस्था की हालत और खराब कर दी। उनके इस्तीफे के बाद प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्रालय का कामकाज संभाला तो ऐसा लगा कि किसी विरोधी दल का वित्तमंत्री गया हो। कानून मंत्री के रूप में सरकार की किरकरी कराने वाले वीरप्पा मोइली को कारपोरेट मामलों का मंत्री बनाया गया और अब उन्हें ऊर्जा मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। पी चिदंबरम गृह मंत्रालय में बेचैन थे। वह बैठते थे गृह मंत्रालय में पर उनकी नजर थी वित्त मंत्रालय पर। चिदंबरम पर अपने वरिष्ठ सहयोगी की जासूसी कराने का भी आरोप लगा।


2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में उन्हें आरोपी बनाने के लिए डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी की याचिका अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। क्या कांग्रेस में मंत्रिपद संभालने योग्य नेताओं की कमी है। पार्टी और सरकार में शामिल युवा ब्रिगेड में क्या कोई इस योग्य नहीं है कि उसकी जिम्मेदारी बढ़ाई जा सके। क्या राहुल गांधी को अपने किसी वफादार पर इतना भरोसा नहीं है कि उसे अहम मंत्रालय का प्रभार सौंपा जा सके या प्रधानमंत्री को लगता है कि कोई भी मंत्री बने मंत्रालय के कामकाज पर असर नहीं पड़ेगा। क्या यह निष्कर्ष निकालना गलत होगा कि कोई भी मंत्री बने सरकार का कामकाज नहीं सुधरने वाला। इस सरकार के निर्वाचित कार्यकाल के अभी दो साल बचे हैं। क्या सरकार इसी तरह चलेगी? देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़े जनाधार वाली पार्टी कांग्रेस क्या अंधेरे की ओर बढ़ रही है? क्या कांग्रेस में कोई यह सोचने को तैयार नहीं है कि ऐसे लोगों के नेतृत्व में यह पार्टी किस ओर जाएगी? शिंदे, मोइली, कृष्णा जैसे लोग कांग्रेस का भविष्य नहीं हैं। क्या नई पीढ़ी के कांग्रेसी अपने भविष्य के प्रति चिंतित नहीं हैं। उनका भविष्य का नेता पार्टी, सरकार या देश के किसी ज्वलंत सवाल पर कुछ बोलता ही नहीं। राहुल गांधी का वैचारिक गूंगापन पार्टी के लिए चिंता की बात है। यदि पार्टी इस बात से चिंतित नहीं है तो यह देश के लिए चिंता की बात है। क्योंकि यथास्थिति कांग्रेस को इस हालत में भी नहीं रहने देगी। आर्थिक सुधारों के मुद्दे पर प्रधानमंत्री उत्तर की ओर जाना चाहते हैं और सोनिया गांधी दक्षिण दिशा में। राहुल गांधी किस दिशा में जाएंगे?


प्रदीप सिंह वरिष्ठ स्तंभकार हैं


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