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अभूतपूर्व राष्ट्रीय शर्मिंदगी

जागरण मेहमान कोना
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दुष्कर्म की घटनाओं के संदर्भ में समाज, शासन-प्रशासन और न्यायिक तंत्र के रवैये पर निराशा जता रहे हैं सी. उदयभाष्कर अभूतपूर्व राष्ट्रीय शर्मिदगी भारत के पास विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की संदेहास्पद विशिष्टता है, जहां हर 40 मिनट में दुष्कर्म की एक घटना होती है। इस शर्मनाक आंकड़े के बीच भारत की राजधानी दिल्ली मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे बड़े शहरों की तुलना में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित शहर है। पुलिस के रिकॉर्ड के मुताबिक 2011 में दिल्ली में दुष्कर्म के 572 मामले दर्ज किए गए, जबकि मुंबई में 239, बेंगलूर में 96 और चेन्नई व कोलकाता में क्रमश: 76 और 47 मामले दर्ज हुए। ये वे मामले हैं जिनकी पुलिस में रिपोर्ट दर्ज हो पाई है। सामाजिक कार्यकर्ताओं और चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों के अनुसार वास्तविक संख्या इससे कहीं बड़ी है। दुष्कर्म की शिकार महिलाओं को कलंक मानने की विकृत मानसिकता के कारण बड़ी संख्या में मामले दर्ज ही नहीं हो पाते। इन चौंकाने वाले आंकड़ों के बावजूद दिल्ली में 23 साल की मेडिकल छात्रा के साथ बर्बर गैंग रेप ने देश को अभूतपूर्व ढंग से शर्मसार कर दिया है। पीडि़ता अस्पताल में जिंदगी मौत से जूझ रही है और अगर वह बच भी जाती है तो उसके अनेक अंग जिंदगी भर ठीक ढंग से काम नहीं कर पाएंगे। इस मामले में समाज का रवैया विचलित और शर्मसार करने वाला है।


दुष्कर्म और हमले के बाद दुष्कर्मियों ने पीडि़ता और उसके मित्र को निर्वस्त्र कर चलती बस से बाहर सड़क पर फेंक दिया था। पुलिस के वहां पहुंचने तक 50 से अधिक तमाशबीन वहां जमा हो गए थे, किंतु किसी ने भी उनके निर्वस्त्र तन पर कपड़ा ढकने तक की मानवीयता नहीं दिखाई। देश में जगह-जगह दुष्कर्म की घटनाएं घट रही हैं। इसमें न उम्र आड़े आती है और न ही सामाजिक-आर्थिक हैसियत। दिल्ली में 17 दिसंबर को तीन साल की लड़की से दुष्कर्म हुआ और कुछ दिन पहले ही एक 70 साल की महिला को दुष्कर्मियों ने शिकार बनाया। इस प्रकार के अधिकांश मामले प्रकाशित नहीं होते या फिर उन पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। और अगर पुलिस अपराधियों को पकड़ भी लेती है तो सालों-साल मुकदमा चलने के बाद अधिकांश दुष्कर्मी बाइच्चत बरी हो जाते हैं। इस बीच दुष्कर्म का शिकार महिला और उसका परिवार शर्म और डर में जीने को मजबूर रहता है। संक्षेप में भारत और इसका कुलीन शासक वर्ग जिसमें राजनेताओं के साथ-साथ नौकरशाही भी आ जाती है, वास्तविक सच्चाई से बेपरवाह और उदासीन है। दुष्कर्म को लेकर एक तरह की स्वीकार्यता इस तथ्य से सिद्ध होती है कि दुष्कर्म के आरोपियों को संसद और विधायक बनाकर शासन करने के लिए भेजा जाता है। सुर्खियों में वही मामले आ पाते हैं जो हाई प्रोफाइल होते हैं।


नागरिक समाज विरोध प्रदर्शन करता है, महिला संगठन दोषियों के लिए कड़ी से कड़ी सजा की मांग करते हैं, राजनेता प्रकट रूप में दृढ़ संकल्प जताते हैं, स्थानीय पुलिस प्रमुख त्वरित कार्रवाई का वायदा करता है और टीवी पर गरमागरम बहस छिड़ती है। 15 दिन बीतते-बीतते इस घटना को भुला दिया जाता है। गंदगी अकसर शीर्ष से ही शुरू होती है-सरकार और समाज, दोनों में ही। दुष्कर्म के 90 फीसद से अधिक मामलों में परिजन, रिश्तेदार व परिचित शामिल होते हैं। भारतीय समाज का सामाजिक अभिविन्यास महिला विरोधी है। यह सही है कि दुष्कर्म के संबंध में कानून और कड़े होने चाहिए, लेकिन इससे भी जरूरी यह है कि कानूनों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए। अगर दिल्ली का ही मामला देखा जाए तो यह बार-बार कहा जाता है कि दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन बेहद घटिया है। इस पर माफिया का नियंत्रण है, जिन पर स्थानीय राजनीतिक वर्ग, नौकरशाही और पुलिस का वरदहस्त है। राष्ट्रीय राजधानी में 50,000 से अधिक थ्री व्हीलर चलते हैं। इनके ड्राइवर पंजीकृत नहीं हैं, मीटर काम नहीं करते और प्रशासन में व्यवस्था को दुरुस्त करने की इच्छाशक्ति नहीं है। यही हाल और भी बहुत से शहरों का है। वर्तमान मामले में, ड्राइवर और कंडक्टर अनधिकृत रूप से बस चला रहे थे और शीशों पर काली फिल्म नियमों की खुली धज्जियां उड़ा रही थी। जहां तक राजनेताओं का सवाल है, अकसर उनके हित बस संचालकों से जुड़े रहते हैं और उनकी एकमात्र दिलचस्पी व्यक्तिगत लाभ और अपने हित सुरक्षित रखने में होती है। भारतीय विधायिका भी ऐसे विधेयक पारित करने में तत्परता दिखाती है, जहां उसके हित जुड़े होते हैं।


उदाहरण के लिए विधायकों और सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाने हों या उनके अधिकारों में वृद्धि करनी हो तो एक मिनट में विधेयक पारित हो जाता है। 2010 के शीतकालीन सत्र में संसद ने पिछले 25 वर्षो में सबसे बेकार प्रदर्शन किया। 2011 में यह रिकॉर्ड टूट गया। अगस्त 2009 में जो बिल पारित किए गए उनमें से एक चौथाई से अधिक को पांच मिनट से भी कम समय लिया गया। लंबे समय से लंबित पुलिस सुधार बिल इन पांच मिनटों का इंतजार करता रह गया। 2012 जाते-जाते विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र पर कलंक लगा गया। एक युवा लड़की की जिंदगी भारत की लिजलिजी असंवेदनशीलता के कारण खतरे में पड़ी है। वह भी उस भारत में जहां सबसे शक्तिशाली राष्ट्रीय राजनेताओं में सोनिया गांधी, सुषमा स्वराज, मायावती, जयललिता और ममता बनर्जी शामिल हैं। भारत में लड़कियां हमेशा खतरे में हैं। जन्म से पहले से उनके प्रति उपेक्षा और भेदभाव शुरू हो जाता है, जो जीवन भर उनका साथ नहीं छोड़ता। पर क्या फर्क पड़ता है, हमें नए साल की तैयारियां भी तो करनी हैं। (लेखक सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं) 1ी2श्चश्रल्ल2ी@Aंॠ1ंल्ल.Yश्रे लगभग 14 वर्ष पहले बनी हॉलीवुड की एक मशहूर डिसास्टर फिल्म आर्मागेडोन में एक विशाल क्षुद्रग्रह (एस्टिरॉयड) को पृथ्वी की ओर बढ़ते हुए दिखाया गया था। पृथ्वी को महाविनाश से बचाने के लिए इस क्षुद्रग्रह को नष्ट करना जरूरी था और इस काम के लिए फिल्म के मुख्य पात्रों के पास सिर्फ 18 दिन का समय बचा था। यह सिर्फ एक काल्पनिक फिल्म थी, लेकिन इसके जरिये फिल्म निर्माता दुनिया को क्षुद्रग्रहों के खतरे का अहसास कराने में सफल रहे थे। अब वैज्ञानिक भी यह मानने लगे हैं कि पृथ्वी को क्षुद्रग्रहों के प्रहार से बचाने के लिए दुनिया को तत्काल आर्मागेडोन जैसे उपायों के बारे में सोचना पड़ेगा।


पृथ्वी के अगल-बगल से क्षुद्रग्रहों के गुजरने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अभी कुछ दिन पहले ही एक क्षुद्रग्रह पृथ्वी के बहुत करीब आ गया था। सबसे ज्यादा चिंता की बात यह है कि हमारे ग्रह के नजदीक आने से सिर्फ दो दिन पहले ही खगोल वैज्ञानिकों को इसका पता चला था। 2012 एक्सई-54 नामक यह क्षुद्रग्रह पृथ्वी से 2,26,000 किलोमीटर दूर से गुजरा था। यह दूरी पृथ्वी और चांद के बीच की दूरी की लगभग आधी है। यह क्षुद्रग्रह सिर्फ 36 मीटर चौड़ा था, लेकिन इतने ही आकार का एक क्षुद्रग्रह रूस में एक बड़े जंगल का सफाया कर चुका है। एपोफिस नामक एक बड़े क्षुद्रग्रह के 13 अप्रैल, 2029 में पृथ्वी के करीब 36,000 किलोमीटर दूर से गुजरने की भविष्यवाणी की गई है। यह दूरी पृथ्वी के दूरसंचार उपग्रहों से भी कम है। 300 मीटर चौड़े इस क्षुद्रग्रह की खोज 2004 में हुई थी। वैज्ञानिकों के मुताबिक इस क्षुद्रग्रह के पृथ्वी से सीधे टकराने की कोई संभावना नहीं है, लेकिन यह 2038 में पुन: पृथ्वी के लिए खतरा बन सकता है। अभी तक सिर्फ 10,000 क्षुद्रग्रहों की ही पहचान हो पाई है, जबकि हमारे पड़ोस में इनकी संख्या बहुत ज्यादा है। अतीत में हमारा ग्रह क्षुद्रग्रहों के विनाशकारी प्रभाव झेल चुका है और ऐसे प्रहार भविष्य में भी हो सकते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि पहाड़ जैसे करीब 960 क्षुद्रग्रह पृथ्वी के पड़ोस में मंडरा रहे हैं। इनमें से करीब 95 प्रतिशत का पता चल चुका है। वैज्ञानिकों को छोटे क्षुद्रग्रहों से बहुत चिंता हो रही है। एक किलोमीटर से कम चौडे़ क्षुद्रग्रहों का पता लगाना मुश्किल होता है। बहुत कम समय पहले ही इनकी जानकारी मिल पाती है। नासा के वाइस स्पेस टेलीस्कोप के आकलन के मुताबिक करीब 4700 क्षुद्रग्रह करीब 100 मीटर चौड़े हैं। ये पिंड अपनी कक्षाओं में विचरण करते हुए खतरनाक ढंग से पृथ्वी के नजदीक आ जाते हैं। रिसर्चरों ने इनमें से करीब 30 प्रतिशत पिंडों को देखा है। यदि इस आकार का पिंड पृथ्वी से टकराता है तो किसी भी देश का एक पूरा राच्य तबाह हो सकता है। पृथ्वी के नजदीक मंडराने वाली कुछ चट्टानी शिलाएं 40 मीटर चौड़ी हैं और हमें इनमे से सिर्फ एक प्रतिशत के बारे में ही जानकारी मिली है। ऐसी शिलाएं स्थानीय पैमाने पर भारी तबाही मचा सकती है। तुंगुस्का की घटना इसका एक उदाहरण है। 1908 में साइबेरिया में पोद्कमेंनाया तुंगुस्का नदी पर एक 40 मीटर चौड़ी या उससे भी छोटी शिला का विस्फोट हुआ था, जिससे 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला जंगल नष्ट हो गया था। इस तरह की विनाशकारी टक्करें हमारे ग्रह के जीवन की एक कड़वी हकीकत है।


भारी नुकसान पहुंचाने की क्षमता रखने वाले क्षुद्रग्रह औसतन हर 200 या 300 साल बाद पृथ्वी पर प्रहार करते हैं। क्षुद्रग्रहों के खतरों से निपटने के लिए आगामी फरवरी में संयुक्त राष्ट्र में दुनिया के प्रतिनिधियों की एक बैठक होने वाली है। इस बैठक में क्षुद्रग्रहों की दिशा बदलने के संभावित तरीकों पर विचार किया जाएगा। करीब 6.5 करोड़ वर्ष पहले क्षुद्रग्रह के विनाशकारी प्रहार से पृथ्वी से डायनोसारों का सफाया हो गया था। ऐसा हादसा मानवजाति के साथ न हो, इसके लिए हमें अभी से सजग रहना पड़ेगा। मानव जाति के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए हमारे पास समुचित टेक्नोलॉजी और ज्ञान है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) क्षुद्रग्रहों के पृथ्वी से टकराने की आशंका पर मुकुल व्यास की टिप्पणी क्षुद्रग्रहों से रक्षा 2012 जाते-जाते विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र पर कलंक लगा गया। एक युवा लड़की की जिंदगी भारत की लिजलिजी असंवेदनशीलता के कारण खतरे में पड़ी है वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि पृथ्वी को क्षुद्रग्रहों के प्रहार से बचाने के लिए तत्काल आर्मागेडोन जैसे उपायों के बारे में सोचना पड़ेगा


इस आलेख के लेखक सी. उदयभाष्कर हैं


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