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पाकिस्तान सीमा पर दो सैनिकों की नृशंस हत्या और उधर छत्तीसगढ़ में शहीद पुलिसकर्मियों के पार्थिव शरीर के भीतर बम फिट करने की घटना ने पूरे देश को झकझोर सा दिया है। ये दोनों ही घटनाएं न केवल दुश्मनी की भावना में सभी सीमाएं पार कर जाने, बल्कि सोच की नीचता की भी सारी हदें पार कर जाने वाली हैं। यह अलग बात है कि लोग सीमा पर जाकर पड़ोसी देश और जंगलों में जाकर नक्सलियों को उन्हीं की भाषा में जवाब नहीं दे रहे हैं, लेकिन सच्चाई यही है कि सभी आक्रोश से उबल रहे हैं। इस तरह की घटनाएं सिर्फ यही नहीं बतातीं कि दूसरा पक्ष दुश्मनी की भावना में कहां तक चला गया है, इनसे यह भी पता चलता है कि मानवीय मूल्यों से कितनी दूर हो गया है। इस बीच यह भी मालूम हुआ है कि नक्सलियों को भी पाकिस्तान की मदद मिल रही है। इसका आशय यही निकाला जा रहा है कि पाकिस्तान हर तरह से भारत से दुश्मनी निकालने की साजिश में लगा हुआ है और इसके लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है। ऐसा तब हो रहा है पाकिस्तान के साथ शांति बहाली के लिए भारत लगातार प्रयास करता रहा है और पाकिस्तान की सरकारों की ओर से अक्सर हमें इसका सकारात्मक जवाब भी मिलता रहा है।
दोनों देशों की शांति वार्ताओं में पाकिस्तान कई बार नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के वादे भी कर चुका है। इसके बावजूद वह बार-बार इस वादे को तोड़ता भी रहा है। उनकी ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन की खबरें आम हो गई हैं। भारत ने अपनी ओर से शांतिबहाली के कुछ कम प्रयास नहीं किए हैं। चाहे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों की बात हो या लोगों को आवागमन की सुविधाएं देने के लिए रेल और बस सेवाएं शुरू करना, सभी भारत के प्रयासों के ही फल हैं। इन सेवाओं को शुरू करने का जितना लाभ भारत के लोगों को मिला है उससे कहीं बहुत ज्यादा लाभ पाकिस्तान के नागरिकों को मिला है। आज भी पाकिस्तान में गंभीर रोगों के इलाज तक के लिए लोगों के पास पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं। कठिन परिस्थितियों में पाकिस्तानी नागरिकों को इलाज के लिए भारत आना पड़ता है और यहां बिना किसी भेदभाव के पूरी तत्परता से उनका इलाज किया जाता है। भारत ने अपनी ओर से कभी कोई शत्रुता का भाव पाकिस्तान के प्रति नहीं रखा। इसके बावजूद पाकिस्तान की ओर से हमेशा शत्रुतापूर्ण व्यवहार ही किया जाता रहा है।
जिस तरह पाकिस्तान विभिन्न सीमाओं से भारत में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने की कोशिशें करता रहा है, उससे यही जाहिर होता रहा है कि वह शांति प्रयासों के प्रति गंभीर नहीं है। प्रत्यक्ष रूप से शांति की बातें और पीठ पीछे घात करना उनका चरित्र ही बन गया है। यही नहीं, कश्मीर मसले को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ले जाने की कोशिश भी वे बार-बार करते रहे हैं। उनकी इसी प्रवृत्ति का नतीजा है कि आज तक कोई भी शांतिवार्ता किसी ठोस परिणाम तक नहीं पहुंच सकी। हर शांतिवार्ता के बाद पाकिस्तान ने या तो युद्ध ही शुरू कर दिया या फिर भारत को युद्ध के लिए उकसाने की कोशिश की। तीन बार युद्ध में बुरी तरह पराजित हो चुके होने के बाद भी और यह जानते हुए भी कि युद्ध में भारत से कभी जीत नहीं सकता, वह अपनी प्रवृत्ति से बाज आता नहीं दिख रहा है। उसकी ओर से प्रायोजित आतंकवाद भी एक प्रकार का अघोषित युद्ध ही है, जो केवल उसकी कुंठा दर्शाता है। इसी कुंठा के तहत वह कभी यहां सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने की साजिश रचता है तो कभी कहीं किसी आतंकवादी घटना को अंजाम देता है। अब चूंकि हर भारतीय उसकी करतूतों से वाकिफ हो चुका है और उसकी कोई भी साजिश परवान चढ़ती नहीं दिख रही है तो उसने एक नया तरीका नक्सलियों के जरिये आतंकवाद को बढ़ावा देने का अपनाया है।
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इसके साथ-साथ उसे जब भी मौका मिलता है वह सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करने से भी बाज नहीं आता है। भारत अपनी ओर से शांति बनाए रखने की कोशिश करता है, लेकिन पाकिस्तान इन कोशिशों को कभी परवान चढ़ने ही नहीं देता। अकसर शांति के लिए किए गए भारत के प्रयास एकतरफा होकर ही रह जाते हैं। क्या इस तरह कहीं शांति प्रयास फलीभूत हो सकते हैं? कोई प्रयास सफल हो इसके लिए जरूरी है कि दोनों तरफ से अच्छा माहौल बनाया जाए। यहां स्थिति यह है कि कई बार कहने के बावजूद पाकिस्तानी सैन्य अधिकारी फ्लैग मीटिंग तक के लिए राजी नहीं हो रहे थे। वे इसके लिए तब राजी हुए हैं जब भारत ने कड़े तेवर दिखाए। निश्चित रूप से यह अच्छा संकेत नहीं है। दोनों ही देशों के लोग इस बात को जानते हैं और वे युद्ध नहीं चाहते। इसके बावजूद पाकिस्तान की ओर से बार-बार जिस तरह उकसाया जा रहा है, उससे भारत में एक बड़ा तबका आर-पार की लड़ाई जरूरी बताने लगा है। पाकिस्तान की आए दिन की नापाक हरकतों से यह मांग अब जोर पकड़ने लगी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि युद्ध किसी भी स्थिति में किसी के लिए भी बेहतर नहीं होगा।
भारत के पास तो फिर भी अपने बहुत संसाधन हैं, लेकिन पहले से ही खस्ताहाल पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था का क्या होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह सब कुछ जानते हुए भी पाकिस्तान के शासक अपने देश और जनता की हालत सुधारने की कोशिशों के बजाय युद्धोन्माद फैलाने में लगे हुए हैं। सोच कर हैरत होती है कि किसी देश के हुक्मरान अपनी ही जनता के प्रति इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं? भारत के राजनेताओं को केवल अब शांति प्रयास को एकतरफा बढ़ावा देने के बजाय यथार्थ के धरातल पर आकर सोचना चाहिए। अब यह बात सच लगने लगी है कि पाकिस्तान भारत के शांति प्रयासों को कमजोरी के रूप में देखता है। वह स्थितियों का ठीक-ठीक आकलन कर सके और अपनी हद में रहना सीखे, इसके लिए जरूरी है कि उसे कड़े संदेश दिए जाएं। निश्चित रूप से युद्ध कोई हल नहीं हो सकता। इससे समस्याएं सुलझने के बजाय और उलझती ही चली जाती हैं। लेकिन ऐसे दूसरे तरीके भी बहुत हैं जिनसे हम उसे अपने कड़े तेवर का परिचय दे सकते हैं। हम उसे बता सकते हैं कि हम ये बेजा हरकतें झेलने के लिए तैयार नहीं हैं। अब भारत को पाकिस्तान के साथ मित्रता के अपने सारे प्रयास समेट लेने चाहिए और उसे यह स्पष्ट कर देना चाहिए कि हम सीमाओं का उल्लंघन कतई बर्दाश्त नहीं कर सकेंगे। यह अलग बात है कि हम युद्ध करना नहीं चाहते, क्योंकि शांति हमारे सबसे बड़ा मूल्य है। इसका यह अर्थ बिलकुल नहीं है कि हम युद्ध कर नहीं सकते। अगर उनमें इतिहास से सबक लेने का थोड़ा सा भी विवेक होगा तो शायद इससे आगे की नौबत नहीं आएगी।
लेखक निशिकांत ठाकुर दैनिक जागरण में स्थानीय संपादक हैं
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