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चिपों पर मानव अंग उत्पन्न करना एक साइंस फिक्शन जैसी बात लगती है। अमेरिका में हार्वर्ड के वीस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिक सचमुच इस तरह की कोशिश कर रहे हैं और इसमें उन्हें कुछ सफलता मिल भी गई है। उन्होंने चिपों के ऊपर जीवित कोशिकाओं से युक्त कुछ मानव अंग उत्पन्न किए हैं, जो मानव अंगों की तरह ही काम करते हैं। इनमें फेफड़ा, आंत, किडनी और बोन मेरो शामिल हैं। चिप पर अब दिल बनाने की कोशिश की जा रही है। इस तरह की चिपों के निर्माण के पीछे असली मकसद नई दवाओं के परीक्षण के तौर-तरीकों में सुधार करना है। अभी ये परीक्षण न सिर्फ बहुत महंगे पड़ते हैं, बल्कि अपने आप में अपर्याप्त भी हैं। अंगों की चिपों से यह भी पता लगाया जा सकेगा कि मानव शरीर में रोग किस तरह विकसित होते हैं। इन चिपों की मदद से डॉक्टर मानव शरीर की आंतरिक कार्य प्रणाली को बेहतर ढंग से समझ सकेंगे और बीमारियों का बेहतर इलाज खोजेंगे। इन चिपों से दवाओं को अधिक कारगर बनाने के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में परीक्षण के लिए प्रयुक्त होने वाले हजारों जीव-जंतुओं की जान बचाई जा सकेगी।
चिपों पर अंग बनाने में वीस इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों को मिली सफलता से उत्साहित होकर अमेरिका की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी और एफडीए (फेडरल ड्रग एडमिनेस्ट्रेशन) ने अंगों की चिप बनाने के लिए टिशू चिप फॉर ड्रग टेस्टिंग के नाम से एक बड़ा कार्यक्रम शुरू किया है, जिस पर सात करोड़ डॉलर खर्च किए जाएंगे। इस कार्यक्रम का उद्देश्य डॉक्टरी औजारों के बगैर मनुष्य के विभिन्न अंगों के भीतरी माहौल का अध्ययन करना है। चिप पर प्रयोगशाला की कई किस्में पहले से विकसित की जा चुकी हैं, जिनका प्रयोग यह देखने के लिए किया जाता है कि कुछ खास अंग या टिशू किस तरह से काम करते हैं और नई दवाओं के अणु-समूहों के प्रति उनका व्यवहार कैसा होता है, लेकिन इन चिपों का दायरा सीमित होता है। नई परियोजना के अंतर्गत वैज्ञानिकों से दस विभिन्न अंगों की चिप बनाने के लिए कहा जाएगा। इन चिपों को आपस में इस तरह जोड़ा जाएगा कि वे मिल कर मनुष्य के शरीर की तरह काम करेंगी। ऐसा लगेगा कि पूरा मानव शरीर चिपों में उतर आया है। प्रत्येक अंग की चिप एक कंप्यूटर मेमरी स्टिक के आकार की होगी। ये चिपें पारदर्शी प्लास्टिक के चतुर्भुजाकार टुकड़ों के आकार में हैं। इनमें जीवित मानव कोशिकाओं को रखा जाता है।
अंगों पर बने चिप वास्तविक अंगों की तरह ही काम करेंगे, लेकिन आप उनसे उन सारे कार्यो की अपेक्षा नहीं कर सकते, जो असली अंगों द्वारा किए जाते हैं। मसलन आप चिप पर बनी आंत से यह उम्मीद नहीं लगा सकते कि वह आपके लिए खाना पचा देगी, लेकिन इस चिप पर आप मनुष्य की आंतों में पनपने वाले जीवाणुओं के व्यवहार का अध्ययन जरूर कर सकते हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत एक ऐसा सॉफ्टवेयर भी विकसित किया जाएगा, जो अपने आप द्रव्य प्रवाह को नियंत्रित करेगा और आवश्यक विश्लेषण करेगा। जानवरों पर किए जाने वाले परीक्षणों का यह एक अच्छा विकल्प होगा। जीव-जंतुओं को लेकर किए जाने वाले परीक्षण अक्सर विवादास्पद होते हैं और उनसे अपेक्षित परिणाम भी नहीं निकलते। एक चूहे में मनुष्य की समस्त बीमारियों का अध्ययन नहीं किया जा सकता। मनुष्यों पर किए जाने वाले 30 प्रतिशत क्लिनिकल परीक्षण असफल हो जाते हैं क्योंकि वे दवाएं उन पर असर नहीं करतीं, जो जीव-जंतुओं पर किए गए परीक्षणों में कारगर दिखी थीं। नए सिस्टम में नई दवाओं पर मानव प्रतिक्रियाओं का परीक्षण किया जाएगा। यदि दवाओं में विषाक्त तत्व मौजूद हैं तो उन्हें विकास के चरण में ही अलग कर दिया जाएगा। पांच वर्षीय प्रोजेक्ट के तहत एक दूसरी टीम एक सूक्ष्म मस्तिष्क का निर्माण करेगी। माइक्रोब्रेन बायोरिएक्टर नामक यह उपकरण मानव मस्तिष्क कार्य प्रणाली की नकल करेगा।
मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं.
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