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खतरे का एक और मोर्चा

जागरण मेहमान कोना
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harsh pantपिछले दिनों पाकिस्तानी सरकार ने चीनी सरकार के स्वामित्व वाली कंपनी चाइना ओवरसीज पोर्ट होल्डिंग्स लि. को सिंगापुर की कंपनी से ग्वादर बंदरगाह के परिचालन अधिकार खरीदने के प्रस्ताव को हरी झंडी दे दी है। सिंगापुर की कंपनी पीएसए इंटरनेशनल ने इस बंदरगाह के 40 साल तक परिचालन के अधिकार 2007 में हासिल किए थे। इसी के साथ सामरिक महत्व के ग्वादर बंदरगाह पर चीन का कब्जा हो गया। इस संबंध में भारत की प्रतिक्रिया हमेशा की तरह भ्रम का शिकार थी। भारत के रक्षामंत्री ने इसे भारत के लिए गंभीर चिंता का कारण बताया, किंतु विदेश मंत्री का मानना था कि भारत को पाकिस्तान के हर बयान और चीन की हर गतिविधि पर अतिसक्रियता नहीं दिखानी चाहिए।

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लंबे समय से चीन अरब सागर में पैर टिकाने की जगह की तलाश में था और उसके लिए ग्वादर एक आकर्षक विकल्प है। कुछ समस्याओं के बावजूद चीन-पाक सैन्य सहयोग प्रगति पर है। कुछ लोगों का मानना था कि बलूचिस्तान में बढ़ती समस्याओं और भारत व अमेरिका के साथ संबंध बिगड़ने के डर से चीन ग्वादर में अपनी भूमिका सीमित रखना चाहेगा, किंतु इन सबसे बेखबर चीन ने तो ग्वादर के गहरे जल में गोता लगा ही लिया। 20 करोड़ डॉलर की चीनी सहायता से तैयार ग्वादर बंदरगाह को 2007 में खोल दिया गया। यह बंदरगाह व्यावसायिक रूप से विफल रहा, क्योंकि पाकिस्तान इसका कुशलता से इस्तेमाल नहीं कर पाया। अब तक चीन ग्वादर में अपनी भूमिका के महत्व को कमतर बताता रहा है, वहीं पाकिस्तानी प्रतिष्ठान में कुछ लोग खुलेआम चीन को ग्वादर में अपना आधार बनाने का सुझाव देने की हद तक चले गए।


चीन अपनी दुविधा को दूर करना चाहता है। चीन के तेल निर्यात का 80 प्रतिशत होर्मुज जल डमरू मध्य से होकर आता है। ऊर्जा के समुद्री मार्ग की सुरक्षा के लिए अमेरिकी नौसेना पर निर्भर रहने के बजाय इसने फारस की खाड़ी से लेकर दक्षिण चीन सागर तक के नाजुक मोचरें पर अपनी नाकेबंदी मजबूत कर दी है। इस लक्ष्य की पूर्ति में ग्वादर बंदरगाह एक अहम कड़ी हो सकती है। होर्मुज जल डमरू मध्य से चार सौ किलोमीटर दूर और अरब सागर के मुहाने पर स्थित ग्वादर चीन के लिए एक अहम संपत्तिसाबित हो सकता है। इसमें संदेह नहीं कि ग्वादर बंदरगाह की उपयोगिता संपर्क मागरें के निर्माण तथा अन्य ढांचागत सुविधाओं के विकास पर निर्भर करती है, लेकिन चीन के लिए यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। ग्वादर से चीन तक 900 किलोमीटर लंबी सड़क के निर्माण और इसके अफगानिस्तान व मध्य एशिया से संपर्क के लिए मागरें के निर्माण की योजना बनाई जा चुकी है।

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आने वाले दिनों में हिंद महासागर बड़ी राजनीतिक सरगर्मियों का केंद्र बनने जा रहा है। चीनी नौसेना की समुद्री रक्षा नीति बीजिंग को मुख्य सामुद्रिक क्षेत्रों में अपनी शक्ति बढ़ाने की क्षमता प्रदान करेगी, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण हिंद महासागर है। चीन ने पहला धमाका कर दिया है। अगर अन्य शक्तियों को इस क्षेत्र में अपनी भूमिका को बरकरार रखना है तो उन्हें गंभीरतापूर्वक प्रतिक्रिया करनी होगी। ईरान के शाह बहर बंदरगाह में भारत की दिलचस्पी को ग्वादर में चीन की उपस्थिति की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा रहा है, किंतु विदेशी परियोजनाओं को समयबद्ध तरीके से पूरा करने की चीन की क्षमता जहां दिन पर दिन निखरती जा रही है वहीं इस क्षेत्र में भारत का लचर ढर्रा एक बड़ी समस्या बना हुआ है। यह धारणा कि चीन हिंद महासागर में अपनी नौसेना का दबदबा बनाना चाहता है, दूर की कौड़ी नहीं है। इस क्षेत्र में चीन निश्चित तौर पर बड़ी भूमिका निभाना चाहेगा और भारत का सामना करने के लिए अपने हितों की सुरक्षा के साथ-साथ उन्हें बढ़ाने का भी प्रयास करेगा, खासतौर से व्यावसायिक हितों को। इसमें चीन के सामने एक बड़ी बाधा है। हिंद महासागर में भारत के भौगोलिक लाभ का मुकाबला करना उसके लिए मुश्किल है। यहां तक कि चीन की नौसेना नई सुरक्षा प्रणाली को अभी तक लागू नहीं कर पाई है। इन सुविधाओं को सैन्य बंदरगाहों में इस्तेमाल करने में अभी चीन को लंबा समय लगेगा, किंतु जो लोग यह दलील दे रहे हैं कि चीन एक बंदरगाह को सैन्य आधार शिविर में बदलने में सफल नहीं हो पाएगा वे गलती पर हैं। अगर चीन ग्वादर को विकसित कर सकता है और हिंद महासागर में भारत के चारों तरफ इस तरह की सुविधाएं विकसित करने को तैयार बैठा है तो ऐसे में भारत के विकल्प सीमित हो जाएंगे। चीन और पाकिस्तान के बीच नजदीकी रक्षा संबंधों को देखते हुए नई दिल्ली अगर यह सोचती है कि भारत के सम्मुख अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए बीजिंग को ग्वादर जैसे बंदरगाह पर वास्तविक सैन्य आधार की जरूरत है तो वह खुद को मूर्ख बना रही है।


विशुद्ध रूप से व्यावसायिक और आर्थिक कारणों से हिंद महासागर में चीन द्वारा बंदरगाह और अन्य ढांचागत सुविधाओं के विकास की बात समझ में आ सकती है, किंतु अमेरिका, जापान और भारत जैसी वैश्विक शक्तियां इसे चीन के कूटनीतिक और सैन्य प्रयास के रूप में भी देखती हैं। यही नहीं, हिंद महासागर में चीन की अधिकांश नौसैनिक सुविधाओं की प्रकृति दोहरे इस्तेमाल की है और कोई भी गंभीर कूटनीति भविष्य में इसके सैन्य इस्तेमाल की आशंका से इन्कार नहीं कर सकती। यह ठीक है कि ग्वादर में गोता मारकर चीन फिलहाल कोई मोती नहीं निकाल रहा रहा है, किंतु नई दिल्ली को ध्यान रखना चाहिए कि बिना मोती का अभियान भी भारत के हितों को भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

इस आलेख के लेखक हर्ष वी. पंत हैं


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Tags: India Pakistan, India Pakistan relations, India China relations, Pakistan and China, Pakistan and China vs India, चीन और भारत, भारत और पाकिस्तान


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