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भारतीय नौसेना के लिए रूस से विमानवाहक युद्धपोत एडमिरल गोर्शकोव को हासिल करने के लिए देश को अभी करीब एक साल का इंतजार करना पड़ेगा। रूसी रक्षा मंत्री अनातोली सर्दुकोव के अनुसार रूस वर्ष 2013 की चौथी तिमाही में ही इस युद्धपोत को भारत को सौंप सकेगा। इस हिसाब से गोर्शकोव अक्टूबर 2013 के बाद ही प्राप्त होगा। अनातोली सर्दुकोव ने स्पष्ट किया कि एडमिरल गोर्शकोव के इंजन और मुख्य बॉयलर में आई तकनीकी खराबी के कारण समुद्री परीक्षणों को रोकना पड़ा है। इन खराबियों को सेवमाश बेस पर ठीक किया जा रहा है जिसके अप्रैल 2013 में ठीक होने की उम्मीद है। तब इसके अगले समुद्री परीक्षण शुरू किए जाएंगे। इस विमानवाहक पोत को 4 दिसंबर, 2012 को भारत को सौंपा जाना था, लेकिन सितंबर माह में समुद्री परीक्षणों के दौरान विमानाहक पोत के इंजन में गड़बड़ी के बारे में पता चला। इंजन में गड़बड़ी के कारण युद्धपोत की अन्य प्रणालियां भी क्षतिग्रस्त हो गई हैं, जिनमें ब्वायलर की खराबी भी शामिल है। अभी तक यह स्पष्ट हो सका है कि ब्वायलर की गड़बड़ी से इस विमानवाहक पोत को कितना नुकसान पहुंचा है। इसी के बाद रूस के यूनाइटेड शिप बिल्डिंग कारपोरेशन ने एक अक्टूबर को यह जानकारी दी थी कि इसे भारत को सौंपने की तिथि में एक बार फिर बदलाव करना पड़ेगा।
इससे एक सप्ताह पहले पोत का काम कर रहे सेवमाश शिपयार्ड पर आयोजित एक कार्यरम में एक सरकारी आयोग ने कहा था कि शिप के प्रपल्शन सिस्टम में आई खराबी को दूर करना आवश्यक है। आयोग ने कहा कि वह इस नतीजे पर पहुंचा है कि पोत के सौंपने के समय को बढ़ाना जरूरी है। यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि रूस अब तक इस पोत के 11000 समुद्री मील के जांच परीक्षण कर चुका है। रूसी रक्षा मंत्री ने भारत की चिंता से सहमति जताते हुए कहा कि उनका देश बेहतरीन परीक्षणों के बाद भारत को यह पोत देना चाहता है। रूस इससे पहले भी इसके सौंपे जाने की अवधि को बढ़ा चुका है। विमानवाहक पोत एडमिरल गोर्शकोव; आइएनएस विक्रमादित्य को रूस से खरीदे जाने का समझौता आज से आठ वर्ष पूर्व जनवरी 2004 में हुआ था। समझौते के समय इसकी कीमत 97 करोड़ 40 लाख डॉलर निर्धारित की गई थी। जनवरी 2004 में जब गोर्शकोव की खरीद के सौदे पर हस्ताक्षर हुए थे, तब 97 करोड़ 40 लाख डॉलर की खरीदारी में 16 मिग 29 के नामक सुपर सोनिक लड़ाकू विमान एवं अलग-अलग श्रेणियों के हेलीकॉप्टर लिए जाने थे। इस समझौते के हिसाब से गोर्शकोव रूस से जून 2008 तक प्राप्त हो जाना था, लेकिन जून 2007 से ये खबरें आने लगीं कि इसकी आपूर्ति में देरी हो सकती है।
नवंबर 2007 में रूस ने स्पष्ट किया कि वह एडमिरल गोर्शकोव की आपूर्ति तभी करेगा जब उसे पहले से निश्चित किए गए धन से अधिक धनराशि प्राप्त होगी। इस समय तक भारत गोर्शकोव सौदे की करीब आधी रकम अर्थात 45 करोड़ 80 लाख डॉलर रूस को अदा कर चुका था और भारत सौदा रद करने की स्थिति में नहीं था। मजबूरी में भारत को रूस की मांग के सामने झुकना पड़ा। इस संबंध में रूस का तर्क था कि गोर्शकोव में 2400 किलोमीटर लंबी केबल बिछाने, उन्नतीकरण तथा री-फिटिंग के कारण खर्चा बढ़ गया है। बाद में भारत रूस द्वारा बढ़ाई गई रकम देने को तैयार हो गया था। इसके बाद इस पोत की आपूर्ति सन 2009 तक हो जानी थी, लेकिन रूस ने इस समय पर भी गोर्शकोव को सौंप नहीं सका और 2012 में इसके सौंपे जाने का आश्वासन दिया। अब देखना यह है कि देरी की वजह से बढ़ी लागत 2.3 अरब डॉलर कीमत का हो गया यह पोत भारत को कब मिलेगा?
लेखक लक्ष्मी शंकर यादव सैन्य विज्ञान विषय के प्राध्यापक हैं|
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