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जीनोम चिकित्सा

जागरण मेहमान कोना
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वह दिन दूर नहीं जब लोग अपनी जीन कुंडलियां बनवाएंगे और डॉक्टर इन कुंडलियों के आधार पर रोगों का इलाज करेंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि मनुष्य के समस्त जीन-समूह अथवा जीनोम को पढ़ने की तकनीक के ज्यादा सुलभ होने और उसकी लागत के लगातार कम होने की वजह से व्यक्तिगत चिकित्सा का सपना बहुत जल्द हकीकत में बदल सकता है। जीनों के सिलसिलेवार विश्लेषण को जीन सिक्वेसिंग भी कहा जाता है। पिछले दस वर्षो के दौरान जीन स्कि्वेंसिंग की लागत में एक लाख गुना की कमी आई है। 2000 में मनुष्य का जीन नक्शा तैयार करने में 80 करोड़ डॉलर का खर्च आता था। बहुत जल्द ही यह नक्शा 1600 डॉलर के अंदर तैयार होने लगेगा और निकट भविष्य में 160 डॉलर में भी जीनों का विश्लेषण संभव हो जाएगा। पहला मानव जीन नक्शा 2003 में प्रकाशित किया गया था। इस नक्शे को तैयार कम करने में करीब दस साल लग गए थे। जीनों को सिलसिलेवार करने वाली मशीनों की रफ्तार बढ़ रही है और उनकी लागत भी घट रही है।


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आजकल कुछ दिनों के अंदर ही एक जीन-समूह का विश्लेषण हो जाता है। ऑक्सफॉर्ड यूनिवर्सिटी में मेडिकल साइंस के प्रोफेसर सर जॉन बेल का कहना है कि ज्यादातर बीमारियां आनुवंशिकी से जुड़ी हुई हैं। अत: जीन विश्लेषण की उच्च तकनीक से चिकित्सा विज्ञान को बहुत फायदा हो सकता है। जीन नक्शे के लाभों को देखते हुए ब्रिटेन ने इसे अपनी राष्ट्रीय चिकित्सा सेवा में सम्मिलित करने की तैयारी शुरू कर दी है। इस प्रोजेक्ट के तहत तीन से पांच वर्षो के दौरान कैंसर और दूसरे असाध्य रोगों से पीडि़त एक लाख मरीजों के डीएनए के नमूने एकत्र किए जाएंगे। इन नमूनों की जीन सिक्वेंसिंग की जाएगी। इस प्रोजेक्ट के समर्थकों का दावा है कि इससे डॉक्टरों को लोगों के आनुवंशिक ढांचे और उनकी चिकित्सा संबंधी जरूरतों को समझने में मदद मिलेगी। डीएनए आंकडों से ज्यादा प्रभावी जीवन रक्षक दवाएं विकसित की जा सकती हैं। दूसरी तरफ प्रोजेक्ट के विरोधियों ने व्यक्तिगत डीएनए कोड के विश्लेषण और डाटा को संग्रहित करने के इरादे को नागरिक आजादी और निजता के अधिकारों का उल्लंघन माना है। अस्पतालों में रखे जीनोम रिकॉर्ड के आधार पर व्यक्तियों और उनके रिश्तेदारों की पहचान की जा सकती है। पूरी आबादी की डीएनए मैचिंग की जा सकती है, लेकिन इससे प्राइवेसी भी भंग होती है।


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इस बीच, अमेरिका में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ मेडिसिन और अन्य संस्थानों के करीब 200 वैज्ञानिकों ने एशिया, अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में रहने वाले 1000 से अधिक लोगों के जीन-समूहों का विश्लेषण किया है। उन्होंने 1000 जीनोम्स प्रोजेक्ट के अंतर्गत 14 जातीय समूहों की डीएनए भिन्नता का विस्तृत ब्यौरा तैयार किया है। मनुष्यों में पाई जाने वाली आनुवंशिक भिन्नताओं का यह अब तक का सबसे बड़ा और विस्तृत विश्लेषण है। उनकी योजना 26 आबादियों से संबद्ध 2500 लोगों के जीन समूहों के विश्लेषण की है। इस विराट संसाधन से मेडिकल रिसर्चरों को दुनिया की विभिन्न आबादियों में फैली बीमारियों की आनुवंशिक जड़ों को पहचाने में मदद मिलेगी। वैज्ञानिकों का ख्याल है कि प्रत्येक व्यक्ति के डीएनए में सैकड़ों दुर्लभ भिन्नताएं होती हैं जिनका संबंध रोगों से हो सकता है। अब नया विश्लेषण उपलब्ध होने के बाद वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि विभिन्न जातीय समूहों में डीएनए की कौन सी भिन्नता रोग का कारण बनती है। आनुवंशिक स्तर पर दो व्यक्तियों में 99 प्रतिशत से ज्यादा समानता होती है, लेकिन आबादियों में दुर्लभ किस्म की डीएनए भिन्नताएं भी होती हैं। यह माना जाता है कि इन भिन्नताओं की वजह से ही दुर्लभ किस्म के असाध्य रोग तथा हृदय रोग, डायबिटीज और कैंसर जैसे समान रोग उत्पन्न होते हैं।


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लेखक मुकुल व्यास स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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