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पुरानी लीक पर कांग्रेस

जागरण मेहमान कोना
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सामंती उत्तराधिकार कांग्रेस के जयपुर चिंतन की एकमात्र उपलब्धि माना जा सकता है। इस उत्तराधिकार की सार्वजनिक घोषणा के बाद कांग्रेस ने महंगाई, भ्रष्टाचार जैसी विकराल समस्याओं पर परदा डालने का जो प्रयास किया था, उस पर गृहमंत्री ने यह कहकर पानी फेर दिया कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शिविरों में आतंकी प्रशिक्षण दिया जाता है। इस भूल को सुधारने के लिए उन्होंने दूसरी भूल कर डाली। दूसरे दिन उन्होंने सफाई दी कि उनका मतलब हिंदू आतंकवाद से नहीं, भगवा आतंकवाद से था। यह बयान जारी करते समय वह पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम के ऐसे ही कथन पर कांग्रेस द्वारा माफी मांगने की घटना को भूल गए। कांग्रेस ने फिर घिसापिटा बयान दिया कि यह शिंदे का व्यक्तिगत बयान है। उनके इस कथन से पाकिस्तान के आतंकी संगठनों और सरकार की बांछें खिल गईं। भारत को घेरने का उन्हें नया मुद्दा जो मिल गया। विकास के मुद्दे पर कांग्रेस शासित राज्य भाजपा व कई क्षेत्रीय दलों द्वारा शासित राज्यों से काफी पीछे हैं इसलिए चुनाव में विकास को मुद्दा बनाने के बजाय वह बांटो और राज करो की पुरानी लीक पर चल पड़ी है। राहुल गांधी के लिखित भाषण और सुशील कुमार शिंदे के बयानों से यह स्पष्ट हो जाता है कि कांग्रेस दो नावों पर सवार होना चाहती है।


इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी का भाषण लिखने वाला कोई प्रतिभाशाली लेखक रहा होगा। पर राहुल की भी तारीफ करनी होगी कि फिल्मी कलाकारों की संगत से प्राप्त प्रेरणा से उस भाषण को उन्होंने इतनी अदाकारी से पढ़ा कि चिंतन शिविर में बैठे लोगों में से अधिकांश रो पड़े। महीने भर पहले ही राहुल गांधी ने महात्मा गांधी को अपना आदर्श बताया था, किंतु भाषण में उन्होंने अपने आदर्श का उल्लेख तक करना उचित नहीं समझा। राहुल गांधी द्वारा यह कहलवाकर कि व्यवस्था में भारी बदलाव की आवश्यकता है कांग्रेस ने किस पर व्यवस्था बिगाड़ने का आरोप लगाया है? क्षेत्रीय एवं अन्य दलों की नीति और नीयत में खोट और परिवारवादी चलन किसकी देन है? जवाहरलाल नेहरू के समय से लेकर सोनिया गांधी द्वारा मनोनीत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक कांग्रेस शासन का क्या कोई ऐसा कार्यकाल रहा है जो घोटालों से मुक्त रहा हो? च्यों-च्यों परिवार के शासन का कार्यकाल बढ़ता गया त्यों-त्यों भ्रष्टाचार की जड़ें गहराती गईं और भ्रष्टाचारियों को बचाने के लिए सत्ता का उपयोग किया जाने लगा। संविधान के खिलाफ मजहब के आधार पर आरक्षण का बार-बार उपक्रम कांग्रेस ही कर रही है। पिछड़ेपन को गरीबी के बजाय जातिगत आधार प्रदान कर उसी ने जातीय तनाव बढ़ाने का काम किया है। किस आधार पर 2009 के निर्वाचन में उसने सौ दिन में महंगाई कम करने का वादा किया था? और अब जब उसे इस वादे का ध्यान दिलाया जाता है तब वह यह कहकर पल्लू झाड़ लेती है कि उसके पास कोई जादू की छड़ी नहीं है। तो फिर कांग्रेस के पास है क्या? वंशवाद और उसका गुणगान करने वालों की मंडली मात्र?


जयपुर के कांग्रेस चिंतन शिविर से निकली तो बस वंशवाद की चालू परंपरा। इसे विचित्र संयोग कहा जाए या विडंबना कि कांग्रेस को एक परिवार के लिए प्रतिबद्ध-समर्पित करने का प्रस्ताव उन लोगों द्वारा ही पेश किया गया जिनकी छवि साफ-सुथरी है। यह परंपरा मोतीलाल नेहरू के जमाने से चली आ रही है। मोतीलाल नेहरू ने एक पत्र में जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष न बनाए जाने को एक नवयुवक की प्रतिभा को कुंठित करने से जोड़ा था। इसके बाद महात्मा गांधी ने नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनवा दिया था। जवाहरलाल नेहरू के उत्ताराधिकारी के रूप में इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव गोविंद बल्लभ पंत ने पेश किया और हादसे में संजय गांधी की मृत्यु के बाद स्वच्छ छवि वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने राजीव गांधी को आगे करने की मांग उठाई। उसी प्रकार राहुल गांधी को उपाध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव एके एंटनी ने पेश किया। जिस प्रकार भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य ने मन मारकर कौरवों के पक्ष में युद्ध किया, उसी प्रकार का आचरण आज वे कांग्रेसी कर रहे हैं जिनकी आत्मा इस परंपरा के साथ नहीं है और जो भ्रष्टाचार का भष्मासुर खड़ा करने में परिवार के दायित्व की अनदेखी नहीं करना चाहते। कांग्रेस आज सुशासन के नाम पर जनता के बीच नहीं जा सकती। ऐसे में चुनाव जीतने के लिए फिर से सांप्रदायिकता बनाम पंथनिरपेक्षता की लीक पर चल पड़ी है। अब वह पूरी ताकत से पाकिस्तान बनने से पूर्व की मानसिकता की ओर बढ़ती जा रही है। जो मजलिसे- इत्तेहादुल मुस्लिमीन अब तक उसका समर्थन करती रही है, उसका दुस्साहस कहां तक बढ़ गया है यह हैदराबाद के मुख्य स्थल से गांधीजी की प्रतिमा हटाकर निजाम की प्रतिमा लगाने की मांग पर दंगा भड़काने से स्पष्ट हो जाता है।



सत्ता में बने रहने के लिए सभी प्रकार के विघटनकारी और भ्रष्टाचारी तत्वों का सहयोग लेने और उन्हें सहारा देने के आरोपों से पहले से घिरी कांग्रेस अब चुनाव सिर पर देखकर शुतुरमुर्ग की तरह आचरण कर रही है। जिस परिवार ने आपात स्थिति लगाकर नागरिक अधिकार छीन लिए थे और बिना औपचारिक रूप से नेता चुने राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने में भी कोई दोष नहीं देखा उसकी प्राथमिकता किसी भी तरह सत्ता में बने रहने तक सीमित है। कांग्रेसी यह सोचते हैं कि परिवारवाद के ढोल की आवाज से सभी समस्याओं से ध्यान हटाया जा सकता है।


लेखक राजनाथ सिंह ‘सूर्य’, राज्यसभा  के पूर्व सदस्य हैं


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