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बंदूक संस्कृति के दुष्परिणाम

जागरण मेहमान कोना
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बीस मासूम बच्चों के साथ 28 लोगों की निर्मम हत्या ने बच्चों के अभिभावकों और स्कूल में कार्यरत कर्मचारियों को ही हिलाकर नहीं रख दिया, बल्कि इस बार दुनिया के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति की आंखों से भी उसकी कमजोरी और लाचारी आंसू बनकर छलक उठी। कनेक्टिकट स्कूल में हुई गोलीबारी ने अमेरिकी बंदूक संस्कृति पर न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया में एक नई बहस छेड़ दी है। वैसे तो अमेरिका में बंदूक रखने के अधिकार की अपनी एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, लेकिन आज उसी गौरवपूर्ण इतिहास द्वारा प्रदत नागरिक अधिकार असंख्य अमेरिकी लोगों की असमय मौत की पटकथा का आधार बन रहा है। इतिहास प्रदत्त इस अधिकार के प्रति अमेरिकियों में विशेष आदर एवं गौरव का भाव है। वे अपनी आत्मरक्षा, शिकार और विभिन्न प्रकार के खेलों के लिए आधुनिक हथियार का इस्तेमाल करते हैं। अमेरिकी संविधान का दूसरा संशोधन देश के प्रत्येक नागरिक को बंदूक और दूसरे खतरानक हथियार रखने का अधिकार देता है। अमेरिकी नागरिकों को यह अधिकार दिलवाने में अमेरिका के स्वतंत्रता सेनानियों और इतिहास पुरुषों का विशेष हाथ है।


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15 दिसंबर 1791 को हुए इस संविधान संशोधन में हथियार रखने के अधिकार का समर्थन करते हुए अमेरिका के स्वतंत्रता सेनानी और पहले राष्ट्रपति जार्ज वाशिंगटन ने कहा था कि बंदूक अमेरिकी नागरिक की आत्मरक्षा और राज्य से उत्पीड़न से बचाव के लिए आवश्यक है। दरअसल, ब्रिटिश उपनिवेश होने के कारण अमेरिका की आजादी की लड़ाई के लिए हथियार उठाने वाली उस पीढ़ी ने जहां स्वामी राज्य के उत्पीड़न को भोगा है, वहीं बंदूक अमेरिका के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आजादी के सशस्त्र आंदोलन का बड़ा सहायक औजार रही है। अमेरिकी आजादी का आंदोलन आजादी के लिए लड़ने वाले सशस्त्र रक्षक योद्धाओं के संघर्ष का इतिहास रहा है। इसी कारण अमेरिकी इतिहास में बंदूक थामे रखने वाला मिलिशिया हमेशा एक नायक, एक रक्षक के रूप में देखा जाता रहा है और वह आगे चलकर एक गौरव की निशानी के रूप में देखा जाने लगा। हथियार रखने की होड़ अमेरिका के इसी सशस्त्र इतिहास की पृष्ठभूमि में नागरिक अधिकारों को परिभाषित करने के लिए जब 1791 में दूसरा संविधान संशोधन हुआ तो उसमें स्पष्ट तौर पर बंदूक रखने को नागरिक अधिकार मानकर उसे देश की सुरक्षा से जोड़ा गया। अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित प्रस्ताव में साफ तौर पर कहा गया कि ठीक ढंग से नियमित मिलिशिया आजाद देश की सुरक्षा के लिए अनिवार्य हो जाता है। इसीलिए लोगों को हथियार रखने का अधिकार हो और जिसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए।



देश को आजाद कराने में बंदूक की इसी भूमिका ने अमेरिका में बंदूक रखने को गौरव का विषय बना दिया। भारत की आजादी की लड़ाई में गांधी के अहिसंक संघर्ष के प्रयोग और उसके दूरगामी प्रभावों की तुलना यदि अमेरिकी स्वाधीनता आंदोलन के इस हिंसक रूप से की जाए तो हिंसा का जवाब हिंसा से देकर आजादी हासिल करने का सामाजिक और सांस्कृतिक कुप्रभाव आसानी से समझा जा सकता है। पिछले साल में ही यदि अमेरिका में हुई छह बड़ी गोलीबारी की घटनाओं को याद करें तो इसमें 60 से भी अधिक लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। हालांकि यह ऐसी बड़ी सामूहिक वारदातें थीं, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की जान गई और दुनिया भर के मीडिया में जगह पा जाने के कारण इन घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा। अगर अमेरिका में इन बड़ी घटनाओं के अलावा ऐसी सभी घटनाओं के आंकड़ों पर नजर डालें, जिनमें हथियार रखने के इस नागरिक अधिकार की संलिप्तता थी तो ऐसे आंकडे़ बेहद चौंकाने वाले हैं।



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एक अमेरिकी संस्थान के सर्वे के अनुसार देश में 30 हजार लोग ऐसे मारे जाते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार से बंदूक का इस्तेमाल होता है यानी बंदूक रखने के इस नागरिक अधिकार के कारण अमेरिका में रोजाना 80 से भी ज्यादा लोग जान गंवा बैठते हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में व्याप्त मंदी के कारण समाज में आर्थिक असमानता, बेरोजगारी और समाजिक विषमता बढ़ी है। लिहाजा, समाज में असंतोष, निराशा और आक्रोश भी बढ़ा है। इन विषम सामाजिक परिस्थितियों ने लोगों में हिंसा की भावना को बढ़ावा दिया है। यह वजह भी है कि ऐसी घटनाओं में तेजी आई है। साथ ही पिछले कुछ सालों में हथियारों की खरीद भी बढ़ी है। 2008 से 2011 के बीच अमेरिका में हथियारों की खरीद में 30 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वर्ष 1995 में जहां अमेरिकी समाज के 25 प्रतिशत यानी एक चौथाई लोगों के पास ही हथियार थे, आज यानी 2012 तक यह आंकड़ा 40 प्रतिशत के आसपास पहंुच चुका है। हथियारों की खरीद में इस तेजी का कारण राष्ट्रपति ओबामा की जीत भी रही है। अमेरिकी जानते हैं कि डेमोक्रेट्स हथियार खरीदने और रखने के कानूनों में बदलाव के हामी हैं, जिस कारण ओबामा के राष्ट्रपति बनते ही 2008 से 2011 के बीच हथियार खरीद में तेजी दर्ज की गई। इसके अलावा ओबामा के दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद 2012 के नवंबर महीने में ही हथियार खरीद के लिए 20 लाख आवेदन आ गए थे। लाचार राजनीति ओबामा और उनकी रिपब्लिकन पार्टी बेशक हथियार रखने के कानूनों में सख्ती की हामी रही है, लेकिन त्रासदी यह है कि निगमीय विकास के मॉडल कहे जाने वाले इस देश की नीतियां रोजाना मारे जा रहे निर्दोष लोगों की संख्या से निर्धारित नहीं होती, बल्कि अमेरिकी कानूनों का निर्धारण बडे़-बडे़ निगमों के मुनाफे को देखकर होता है। बंदूक रखने के नागरिक अधिकार को सख्त बनाने में भी सबसे बड़ी अड़चन अमेरिका के बंदूक कारोबार की यह मजबूत लॉबी ही है। जिसका दिल न मासूम बच्चों की लाशें देखकर पिघलता है और न ही ओबामा के आंसुओं से ही इनकी आंखें नम होती हैं।



दरअसल, आर्थिक मंदी का दंश झेल रहे अमेरिका में हथियारों का कारोबार ही ऐसा कारोबार है, जो अभी तक भी इस भयावह मंदी की चपेट से बचा हुआ है। हाल ही में फो‌र्ब्स में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार इस हथियार कारोबार में 2009 के 27.8 बिलियन डॉलर के व्यवसाय के मुकाबले 2011 में 32 बिलियन डॉलर के कारोबार का इजाफा दर्ज किया गया है। जब देश के रोजगार बाजार में भारी गिरावट का माहौल है, ऐसे समय में हथियारों के व्यवसाय ने ही अमेरिकी रोजगार बाजार को सहारा दिया है। पिछले तीन सालों में हथियारों के उद्योग में रोजगार 30 प्रतिशत बढ़ा है। हथियारों के इस बढ़ते बाजार में परंपरागत शिकार करने वाले हथियारों की खरीद-बिक्री का कारोबार नहीं हो रहा है, यह अत्याधुनिक हथियारों का कारोबार है। अमेरिका में हथियार रखने वाले 60 प्रतिशत लोगों के पास सेमी ऑटोमैटिक हथियार हैं, जिन्हें असॉल्ट हथियार भी कहा जाता है, जिनसे बड़ी संख्या में लोगों की हत्या की जा सकती है। अमेरिका में हथियार रखने और उसके खुले इस्तेमाल के कारण आज आम अमेरिकी की सीमा रेखा पर मरने की उतनी आशंका नहीं है, जितनी शिकागो जैसे आधुनिक शहरों के अंदर है। विडंबना यह है कि अमेरिका का कानून हिंसा की अधिक आशंकाओं वाले इन शहरों में रहने वाला अमेरिकी नहीं बनाता, बल्कि हथियारों का उद्योग चलाने वाली लॉबी हथियारों से जुड़े नियम-कायदे तय करती है। वह लॉबी, जिसे ओबामा के आंसुओं और रोज खत्म होती मासूम जिंदगियों से ज्यादा अपने मुनाफे की फिक्र रहती है।



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लेखक महेश राठी  स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं



Tag: child, parents,school,arms,अमेरिका,हथियार,बच्चों,अभिभावक, स्कूल,आर्थिक मंदी

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