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राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों के लिए बीसीसीआइ की तरफ से क्रिकेटरों का नाम नहीं भेजे जाने का मामला गरमाता जा रहा है। बीसीसीआइ और खेल मंत्रालय आमने-सामने हैं। दोनों पक्ष एक-दूसरे को कसूरवार ठहरा रहे हैं। बीसीसीआइ ने कहा कि खेल मंत्रालय ने पहले की तरह इस बार पुरस्कार के नामांकन से जुड़ी जानकारियां मुहैया नहीं कराई। जवाब में खेल मंत्रालय ने दिन और तारीख के साथ यह जानकारी सार्वजनिक कर दी कि उसने कब-कब बोर्ड के साथ खिलाडि़यों के नामांकन को लेकर संपर्क किया। इस मामले में एक दूसरे पर उंगलियां उठाने का काम चाहे जब तक चलता रहे, लेकिन असली सच्चाई यह है कि दोनों पक्षों के मनमुटाव की वजह से सबसे बड़ा नुकसान खिलाडि़यों का हुआ है। क्रिकेट खिलाडि़यों में तीन-चार नाम ऐसे हैं, जिनके नाम का प्रस्ताव अगर बीसीसीआइ ने भेजा होता तो उन्हें पुरस्कार मिलना लगभग तय था। राहुल द्रविड़ और युवराज सिंह का नाम खेल रत्न के लिए और विराट कोहली का नाम अर्जुन अवार्ड के लिए भेजा जाना चाहिए था। राहुल द्रविड़ जिस कद के खिलाड़ी हैं और भारतीय क्रिकेट के लिए उनका जो योगदान है, उसके मद्देनजर उनकी दावेदारी के बारे में कुछ भी कहने की जरूरत नहीं। युवराज सिंह ने बीते साल भारत को विश्व चैंपियन बनाने में जो करिश्माई प्रदर्शन किया था, उसके बाद उनकी दावेदारी भी मजबूत हुई थी।
2011 विश्वकप में युवराज सिंह ने 362 रन बनाए थे और 15 विकेट लिए थे। उन्हें मैन ऑफ द सीरीज के खिताब से भी नवाजा गया था। रही बात विराट कोहली की तो उन्होंने भी पिछले कुछ साल में बेहतरीन प्रदर्शन किया है। ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर जब भारतीय टीम के बड़े-बड़े नाम फ्लॉप हो गए थे तो विराट कोहली की बल्लेबाजी में ही कुछ सकारात्मक पहलू दिखा था, उम्मीद दिखी थी। लेकिन इनमें से कोई भी नाम बोर्ड ने मंत्रालय को नहीं भेजा। टकराव की पृष्ठभूमि इस पूरे मामले के पीछे की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि बीते लंबे समय से बीसीसीआइ और खेल मंत्रालय के रिश्ते अच्छे नहीं हैं। खेल मंत्रालय लगातार इस बात पर जोर देता रहा है। कि बीसीसीआइ को आरटीआइ के दायरे में आना चाहिए। इसके अलावा खेल विधेयक के कुछ और बिंदुओं पर बीसीसीआइ और खेल मंत्रालय में ठनी हुई है। बीसीसीआइ के पास ढेर सारा पैसा है। वह सरकार से किसी तरह की आर्थिक मदद नहीं लेती। ऐसी दलीलें देकर बीसीसीआइ खुद को आरटीआइ के दायरे से बाहर रखना चाहती है। बोर्ड अधिकारी कई बार कह चुके हैं कि उनके काम-काज में पूरी पारदर्शिता है। लिहाजा, उन्हें आरटीआइ के दायरे में आने की जरूरत नहीं है। दूसरी तरफ खेल मंत्रालय अलग-अलग मंच पर अपने खेल विधेयक को सभी खेल संगठनों पर लागू करने के लिए आम राय बनाने की कवायद में जुटा हुआ है। इसी विवाद को लेकर दोनों पक्षों में बयानबाजी भी खूब हुई है। दरअसल, राष्ट्रीय खेल पुरस्कार के लिए नाम भेजने की आखिरी तारीख 30 अप्रैल थी।
खेल पुरस्कारों के लिए उन खिलाडि़यों का नाम भेजा जाता है, जिन्होंने पिछले तीन साल से लगातार अच्छा प्रदर्शन किया हो। इन तीन सालों में से बीते साल यानी 2011 का प्रदर्शन सबसे ज्यादा मायने रखता है। खिलाडि़यों के प्रदर्शन के साथ-साथ खेल के प्रति उनकी भावना, नेतृत्व क्षमता और अनुशासन जैसे बिंदुओं पर भी खिलाड़ी के आवेदन का आकलन किया जाता है। राहुल द्रविड़, युवराज सिंह और विराट कोहली के नाम इन सभी जरूरी पहलुओं पर खरे उतरते हैं, लेकिन फिलहाल इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही। चर्चा इस बात पर हो रही है कि बीसीसीआइ और खेल मंत्रालय में से गलत कौन बोल रहा है? यह बताना भी जरूरी है कि खेल मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बाकायदा दावा किया है कि बीसीसीआइ को खेल पुरस्कार के आवेदन से जुड़ी सभी जानकारियां मुहैया कराई गई थीं। उनके मुताबिक बीसीसीआइ सहित सभी खेल संगठनों को 28 जनवरी को ही चिट्ठी भेजी गई थी। 20 अप्रैल को एक दूसरे अधिकारी ने बीसीसीआइ समेत सभी खेल संगठनों को रिमांइडर भी भेजा था। बावजूद इसके बीसीसीआइ ने खिलाडि़यों का नाम नहीं भेजा। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठा रहा है कि क्या बीसीसीआइ राष्ट्रीय खेल पुरस्कार को अहमियत नहीं देती? क्या पैसे और ताकत के नशे में डूबी बीसीसीआइ को लगता है कि अगर उनके खिलाडि़यों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार नहीं दिए जाते तो उससे उनकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि इन पुरस्कारों के नहीं मिलने की सूरत में भी बोर्ड के पैसे और उसकी ताकत पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
संभावना तो इसी बात की व्यक्त की जा रही है कि बोर्ड ने खेल मंत्रालय को नीचा दिखाने और अपनी हेकड़ी जमाने के चक्कर में खिलाडि़यों का नाम नहीं भेजा। राष्ट्रीय सम्मान के मायने राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों का एक लंबा इतिहास है। पिछले कई साल से इस पुरस्कार के लिए किए जाने वाले आवेदन की प्रक्रिया एक जैसी है यानी खेल संगठनों को अच्छी तरह मालूम होता है कि इन पुरस्कारों के आवेदन के लिए उन्हें कब-कब और क्या-क्या करना है। इन पुरस्कारों से जुड़ी तमाम जानकारियां इंटरनेट पर भी मौजूद हैं। ऐसे में बीसीसीआइ अगर जरा भी संजीदगी दिखाती तो खिलाडि़यों का आवेदन भेजा जा सकता था। ऐसा भी नहीं है कि भारतीय क्रिकेट खिलाडि़यों को राष्ट्रीय खेल पुरस्कार पहले कभी नहीं मिले। इसलिए भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड को इसकी प्रक्रिया नहीं मालूम। लगे हाथ इस बिंदु पर भी बात कर लेते हैं कि राहुल द्रविड़, युवराज सिंह और विराट कोहली के लिए इन पुरस्कारों की क्या अहमियत हो सकती है। राहुल द्रविड़ ने पिछले दिनों ही क्रिकेट से अलविदा कहा था। खेल पुरस्कार उन्हें इस बात का यकीन दिला सकता था कि भले ही यह बात हमेशा कही जाती रही कि वे सचिन तेंदुलकर की शेडो में रह गए, लेकिन पूरा देश खेल के प्रति उनके योगदान को समझता है और उनका सम्मान करता है।
युवराज सिंह हाल ही में कैंसर का इलाज करवा कर लौटे हैं। इतने प्रतिष्ठित पुरस्कार का मिलना उनके अंदर एक नया जोश भर सकता था। युवा क्रिकेटर विराट कोहली इन पुरस्कारों को पाकर और बेहतर प्रदर्शन के लिए तैयार हो सकते थे, लेकिन इन सभी खिलाडि़यों के सपने पर इन्हीं के बोर्ड ने पानी फेर दिया। सूत्रों के मुताबिक इस साल खेल रत्न के लिए निशानेबाज रंजन सोढ़ी, संजीव राजपूर के नाम के अलावा टेनिस से सोमदेव देवबर्मन, बैडमिंटन से ज्वाला गुट्टा, हॉकी से संदीप सिंह और मुक्केबाजी से विकास कृष्ण के नामों का आवेदन किया गया है। इन नामों के मुकाबले भारतीय किक्रेट खिलाडि़यों का दावा कहीं से कमजोर नहीं दिखता। लेकिन शायद बीसीसीआइ आइसीसी अवॉर्ड्स या कुछ निजी कंपनियों की तरफ से दिए जाने वाले अवॉर्ड्स को राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों से ज्यादा तरजीह देती है। चमकती दमकती शामों के बीच बड़ी-बड़ी पार्टियों में दिए जाने वाले सम्मान बीसीसीआइ को ज्यादा पसंद आते हैं। राष्ट्रीय खेल पुरस्कार उसके लिए फीके हैं। यह कोई नहीं जानता खेल पुरस्कार के योग्य खिलाडि़यों के दिल पर इस वक्त क्या बीत रही होगी।
लेखक शिवेंद्र कुमार सिंह खेल पत्रकार हैं
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