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जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ और अन्य शहरों में ईद के मौके पर भारत विरोधी हिंसा और प्रदर्शन क्या रेखांकित करते हैं? किश्तवाड़ में हजारों लोगों ने कश्मीर की तथाकथित आजादी और पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाए। भारत विरोधी नारों का जब राष्ट्रभक्त नागरिकों ने विरोध किया तो दंगे शुरू हो गए। इसकी खबर जब ईदगाह में नमाज पढ़ रहे लोगों को लगी तो उनमें से कुछ दंगाइयों के साथ आ मिले। इन मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं पर हमला किया गया, उनके घर व दुकानें लूटने के बाद आग लगा दी गई। वहां का कुलीद बाजार, जिसमें अधिकांश दुकानें हिंदुओं की थीं, पूरी तरह जलकर राख हो गया है। दंगाइयों को काबू करने के लिए देर से पहुंचे पुलिस बल पर घरों से गोलीबारी की गई। पूरे प्रकरण में नेशनल कांफ्रेंस के गृह राज्यमंत्री सज्जाद अहमद किचलू पर सक्रिय भूमिका निभाने के आरोप हैं। वह स्थानीय विधायक हैं और घटना के वक्त ईदगाह पर मौजूद भी थे। अपना वोट बैंक पक्का करने के इरादे से किचलू अलगाववादियों के समर्थन में खड़े हैं। चौतरफा घिरने के बाद उन्होंने भले ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन इससे वह अपने दोष से बच नहीं जाते।
जम्मू-कश्मीर इस देश का अभिन्न अंग है तो वहां राष्ट्रविरोधी ताकतों को प्रश्रय कौन दे रहा है? क्यों देर शाम तक प्रशासन सोता रहा? क्यों कश्मीर में संविधान और प्रजातांत्रिक मूल्यों की जगह शरीयत का बोलबाला है? कश्मीर घाटी को वहां की संस्कृति के मूल वाहक-कश्मीरी पंडितों से विहीन करने के बाद राज्य के शेष इलाकों से भी हिंसा के बल पर हिंदुओं को खदेड़ भगाने की सुनियोजित साजिश पर सेक्युलर ताकतें मौन क्यों हैं? उधर, पड़ोसी देश पाकिस्तान के गद्दाफी स्टेडियम में लश्करे तैयबा के आतंकी व जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफिज सईद ने ईद की नमाज की अगुवाई की। हाफिज सईद मुंबई हमलों का मुख्य सूत्रधार है। कई आतंकी गतिविधियों के कारण अमेरिका को भी उसकी तलाश है। अमेरिका ने उस पर एक करोड़ डॉलर (करीब 60 करोड़ रुपये) का इनाम घोषित कर रखा है। बावजूद इसके हाफिज सईद पाकिस्तान में बेरोकटोक घूमता है।
गद्दाफी स्टेडियम में नमाज की अगुवाई करते हुए उसने भारत को धमकी दी कि बहुत जल्द वह समय आएगा, जब कश्मीर, म्यांमार और फलस्तीन के दबे-कुचले लोग आजादी की हवा में ईद मनाएंगे। इसके कुछ दिन पूर्व भी उसने दिल्ली पर हमला करने की धमकी दी थी। क्या निरपराधों का खून बहाने वाला यह आतंकी पाकिस्तानी हुक्मरानों के समर्थन-संरक्षण के बिना पाकिस्तान में आजाद घूम सकता है? पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर के पुंछ में पाकिस्तानी सैनिकों ने रात के एक बजे औचक हमले में पांच भारतीय सैनिकों को मार डाला। यह काम पाकिस्तानी सेना की बॉर्डर एक्शन टीम ने किया, जिसके साथ हाफिज सईद निरंतर संपर्क में है। इससे पूर्व विगत आठ जनवरी को भी इसी टुकड़ी ने जम्मू-कश्मीर के मेंढर सेक्टर में दो भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी थी। बर्बर पाकिस्तानी सैनिक एक भारतीय सैनिक का सिर काटकर ले गए थे। तब भी हाफिज सईद उक्त क्षेत्र में देखा गया था। बार-बार पाकिस्तान और पाकिस्तान पोषित जिहादी संगठन भारत की संप्रभुता को ललकार रहे हैं, किंतु भारत का सत्ता अधिष्ठान हाथ पर हाथ धरे बैठा है। जिस दिन चार शहीद सैनिकों के पार्थिव शरीर विमान द्वारा पटना पहुंचे थे, तब हवाई अड्डे पर बिहार सरकार का कोई मंत्री या प्रतिनिधि उन्हें सम्मान देने के लिए मौजूद नहीं था। शहीदों की उपेक्षा व अपमान इसलिए, क्योंकि उनका कोई वोट बैंक नहीं है? इस संबंध में सवाल पूछने पर उल्टा जले पर नमक छिड़कते हुए बिहार के ग्रामीण कार्य व पंचायती मंत्री ने यह कह दिया कि सेना में लोग शहीद होने के लिए ही जाते हैं।
बटला हाउस मुठभेड़ में मारे गए आतंकी के परिजनों से सहानुभूति रखने वाले कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह ओसामा बिन लादेन के लिए तो सम्मान का भाव रखते हैं। उसे ओसामाजी कहकर संबोधित करने वाले दिग्विजय सिंह को क्या कभी किसी शहीद सैनिक को श्रद्धांजलि देते या उसके शोकसंतप्त परिजनों का दुख बांटते देखा है? यह कैसी मानसिकता है? कश्मीर में चल रहा अलगाववाद जिहादी साम्राज्यवाद की विषाक्त मानसिकता से प्रेरित है, जिसका लक्ष्य शेष भारत के साथ कश्मीर के सनातन सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों को नकारना है। यदि यह सच नहीं है तो कश्मीरी पंडितों के उत्पीड़न और उन्हें पलायन के लिए मजबूर किए जाने पर इसके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठाई गई? कश्मीरी पंडितों की सहायता के लिए राज्य के किसी भी मुस्लिम संगठन से पहल क्यों नहीं हुई? क्यों राज्य के अल्पसंख्यक खौफ के माहौल में जीने को विवश हैं? भारत की स्वतंत्रता के समय ही पाकिस्तान का जन्म हुआ और उसने अपने आपको इस्लामी राष्ट्र घोषित कर लिया, परंतु भारत को हिंदू राज घोषित नहीं किया गया। इसका कारण यह था कि भारत की सनातन संस्कृति में बहुलतावाद के प्रति गहरी आस्था है। कश्मीर की तथाकथित आजादी का मतलब उस सनातनी संस्कृति पर आघात करना है जिसके अभाव में सांप्रदायिक सौहार्द और लोकतंत्र की कल्पना बेमानी है।
विडंबना यह है कि वोट बैंक की राजनीति के कारण सेक्युलरिस्ट भारत की बहुलतावादी संस्कृति पर हो रहे आघात को न केवल तटस्थ भाव से देख रहे हैं, बल्कि जिहादी मानसिकता को प्रोत्साहित भी कर रहे हैं। इन्हीं विकृत सेक्युलर नीतियों और लचर सरकार के कारण पड़ोसी देश को भारत को अस्थिर और खंडित करने का प्रोत्साहन मिल रहा है। कटु सत्य तो यह है कि लश्कर और जैश जैसे सीमा पार के संगठनों ने पूरे देश में अपना स्थानीय नेटवर्क विकसित कर लिया है। ये संगठन सिमी व इंडियन मुजाहिदीन जैसे प्रतिबंधित संगठनों से जुड़े लोगों का उपयोग कर छोटे-छोटे मुद्दों पर मजहबी भावनाओं को भड़काकर हिंसा करवा रहे हैं। मालेगांव, जयपुर, बेंगलूर, अहमदाबाद, सूरत, मुंबई, हैदराबाद की आतंकी घटनाओं के बाद यह साफ है कि इस्लामी कट्टरवाद की समर्थक स्थानीय आबादी का एक भाग उन जिहादी गुटों के लिए ‘स्लीपर सेल’ के रूप में काम कर रहा है, जो यह मानता है कि हिंसा के बल पर पूरी दुनिया में इस्लामी राज संभव है। पिछले कुछ समय से देश के मुसलमानों को भड़काने की साजिश चल रही है। उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के कादलपुर गांव में मस्जिद की दीवार गिराने की आड़ में मचाए जा रहे कोहराम से लेकर किश्तवाड़ के दंगे इसकी ही पुष्टि करते हैं। विडंबना यह है कि ऐसी हिंसक घटनाओं पर सेक्युलरिस्टों के मौन समर्थन के कारण जहां एक ओर देश में अलगाववादी ताकतें पुष्ट हो रही हैं, साथ ही देश के दुश्मन अपने एजेंडे में सफल हो रहे हैं|
इस आलेख के लेखक बलबीर पुंज हैं
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