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बीते सोमवार को रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की एक दिवसीय भारत यात्रा मौजूदा वैश्विक परिस्थितियों के संदर्भ में व्यापक महत्व रखती है। साथ ही दोनों देशों के बीच 65 वर्षो के कूटनीतिक संबंधों का यह महत्वपूर्ण साल भी है। भारत के पारंपरिक मित्र रूस के साथ राजनीतिक यात्रा प्रत्येक वर्ष के दिसंबर माह में प्राय: होती रहती है। चाहे भारत के राजनयिक मास्को जाएं या रूस के राजनयिक दिल्ली आएं, यह विगत कई वर्षो से एक परंपरा बनी हुई है। 13वां भारत-रूस वार्षिक शिखर वार्ता पारंपरिक मित्रता के दायरे को विस्तार देते हुए आर्थिक, सामरिक, राजनीतिक व कूटनीतिक संबंधों में सुदृढ़ता पर केंद्रित रही। इस दौरान भारतीय प्रधानमंत्री और रूसी राष्ट्रपति ने करीब 22 हजार करोड़ रुपये के दस से अधिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए। समझौतों के अनुसार रूस भारत को 42 नए सुखोई-30 लड़ाकू विमान और 71 एमआइ-17 वी 5 हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति करेगा। इसके पहले भी 2010 में दोनों देशों के बीच 59 एमआइ-17 वी 5 हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति की सहमति बनी थी।
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भारत-रूस के बीच 2 अरब डॉलर के निवेश संघ बनाने के लिए रूसी प्रत्यक्ष निवेश कोष तथा भारतीय स्टेट बैंक के बीच समझौते किए गए। ऊर्जा सुरक्षा के दायरे के विस्तार के लिए भी सहमति बनी। वार्ता के बाद जारी साझा बयान में कहा गया की भारत की तेल कंपनियां रूस के तेल व गैस भंडार में हिस्सेदारी के लिए प्रयास करेंगी। साथ ही भारत ने साइबेरिया, आर्कटिक तथा रूस के सुदूर पूर्वी क्षेत्र में तेल व गैस खोज तथा खनन में भारतीय कंपनियों की हिस्सेदारी के लिए पहल की है। व्यापक आर्थिक खासकर रक्षा क्षेत्र में समझौतों के अलावा दोनों देशों ने सुरक्षा परिषद में सुधार, अफगान मुद्दा, ईरान के नाभिकीय विवाद दूर करने सहित अन्य वैश्विक मुद्दों पर सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया। इस दौरान दोनों देशों के संस्कृति मंत्रालय ने 2013-15 के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आदान-प्रदान पर सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए। रूसी कंपनी नीस-ग्लोनास तथा बीएसएनएल और एमटीएनएल के बीच भारत में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर सेटेलाइट नेविगेशन सुविधा शुरू करने पर भी समझौते हुए। इस दौरान कुल मिलाकर 40 से भी अधिक मुद्दों पर दोनों देशों ने सहयोग की इच्छा व्यक्त की है। साथ ही दिल्ली-मास्को ने दोहराया कि मौजूदा द्विपक्षीय व्यापार को 11 अरब डॉलर से बढ़ाकर वर्ष 2015 तक 20 अरब डॉलर कर दिया जाएगा। इसके अलावा दोनों देशों ने रिएक्टर तकनीक सहित परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग के लिए संयुक्त शोध व विकास के लिए भी सहमति व्यक्त की। साथ ही सैन्य, ऊर्जा, विज्ञान व तकनीक, अंतरिक्ष शोध सहित तेल, गैस आदि के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की भी बात कही। पुतिन की भारत यात्रा के दो सबसे महत्वपूर्ण पहलू भी थे।
रूस के लिए जो सबसे अहम मुद्दा था, उनमें से एक है कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र और दूसरा रूसी टेलीकॉम कंपनी सिस्टेमा का भारत द्वारा लाइसेंस रद किए जाने से पैदा हुआ विवाद। लेकिन संयुक्त बयान में इस मुद्दे को तरजीह नहीं दी गई। यहां बता दें की रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा अक्टूबर 2012 में ही प्रस्तावित थी, लेकिन इन दो विवादों के कारण यह यात्रा टाल दी गई थी। हालांकि कुडनकुलम के मुद्दे पर संयुक्त बयान में कहा गया है कि दोनों देशों ने इस मुद्दे पर सकारात्मक सहमति बना ली है। भारत-रूस संबंधों के साथ व्यापक पहलू शामिल हैं। दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार चीन से काफी कम है। सदाबहार मित्रता की दृष्टि से देखें तो केवल 10 अरब डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार इनके संबंधों के लिहाज से नाकाफी है। 2009 के बाद से भारत और रूस के बीच एक नया समीकरण बना है। दोनों देशों ने फिर से एक-दूसरे को वास्तविक रूप से समझाने के लिए खुद को तैयार कर लिया है और इस दिशा में बढ़ते हुए अपने रक्षा सहयोग में दोनों ने एक नई ऊंचाइयां हासिल की है। यह इस तथ्य से और भी स्पष्ट होता है कि वैश्विक महामंदी (2008-2009 ) के बावजूद दोनों देशों के बीच व्यापार में 8 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। हालांकि रूस को भारत के साथ संबंध मजबूत बनाने के पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण था और वह कारण था मंदी के बीच ब्रिक्स देशों में रूस का सर्वाधिक प्रभावित होना। हालांकि अमेरिका भारत के हथियार बाजार के प्रति काफी आकर्षित था, लेकिन भारत ने अपने पुराने मित्र रूस को प्राथमिकता देकर उसका भरोसा जीतने में सफलता पाई। इसी प्रकार भारत भविष्य में परमाणु प्रौद्योगिकी का बेहतर बाजार बनकर उभरने वाला है। इस क्षेत्र में भी मास्को के साथ भारत का समझौता रूस के लिए बड़ी जीत माना जा रहा है।
रूस के साथ भारत के संबंधों में एक और उल्लेखनीय प्रगति तब हुई, जब दोनों देशों ने 2010 में खत्म हो रहे सैन्य तकनीकी सहयोग पर आधारित भारत-रूस अंतरसरकारी आयोग का कार्यकाल 10 वर्षो के लिए और बढ़ा दिया। इस दौरान रूसी प्रतिनिधि के साथ समझौते पत्र पर हस्ताक्षर करने के बाद भारतीय रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा था कि इसमें आने वाले सभी अवरोधों को दूर करने के लिए एक शीर्ष कमेटी गठित की जाएगी। भविष्य में यह संबंध कई नए आयामों तक फैलेगा, जिसमें जमीन से लेकर समुद्र और अंतरिक्ष भी शामिल होगा। भारत-रूस संबधों के साथ कुछ ऐसी वैश्विक परिस्थितियां पैदा हुई हैं, जिसने भारत की चिंताओं को स्वाभाविक तौर पर उजागर किया है। वर्तमान की वैश्विक संरचना द्विपक्षीय संबंधों से काफी आगे बढ़ चुकी है। अब वैश्विक अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न मुद्दे बहुपक्षीय हो चुके हैं। लिहाजा, हमें रूस के साथ द्विपक्षीय संबंधों को बहुपक्षीय आयाम देना होगा। रूस 1 दिसंबर 2012 से 30 नवंबर 2013 तक विकसित देशों के संगठन जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। रूस की दिलचस्पी ब्रिक्स हितों के प्रति भी है। इस लिहाज से देखें तो भारत-रूस संबंधों की गतिशीलता बढ़ने की संभावना है। नई वैश्विक संरचना में कई तरह के विरोधाभास भी देखने को मिल रहे हैं। एक तरफ भारत-अमेरिका संबंधों में प्रगाढ़ता और सुधार के लक्षण दिख रहे हैं तो दूसरी तरफ रूस-पाक संबंधों में भी निरंतर घनिष्ठता बढ़ती जा रही है। वर्ष 2003 में तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की मास्को यात्रा और फिर 2009 में सैन्य प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी की मास्को यात्रा पाकिस्तान-रूस संबंधों को एक नया आयाम देने वाली थी। इसके बाद से पाकिस्तान-रूस की जो राजनयिक यात्रा का दौर शुरू हुआ, वह पाकिस्तान की हार्दिक इच्छा रूस के साथ संयुक्त युद्धाभ्यास के रूप में सामने आया है।
लादेन के मारे जाने के दस दिनों के भीतर पाकिस्तानी राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की मास्को यात्रा और उसके दस दिनों बाद रूसी सैन्य अधिकारी अलेक्जेंडर पोस्ति्रकोव की इस्लामाबाद यात्रा से साबित होता है कि पाकिस्तान अब अमेरिकी निर्भरता पर से ऊपर उठकर अपने संबंधों को विस्तार देना चाहता है। इन सबका भारत के लिए बड़ा सामरिक महत्व है। इसने न केवल भारत की सुरक्षा के प्रति भी सचेत किया है, बल्कि तेजी से बदलते वैश्विक परिस्थितियों को भी चेतावनी देता है। बदलते घटनाक्रम में पाक-अमेरिकी संबंधों में दरार आ चुकी है। लादेन की मौत के बाद यह दरार और चौड़ी हुई है। बहरहाल, रूस के साथ अपने संबंधों को आर्थिक दायरे से बाहर जन-केंद्रित नीतियों के साथ भी कायम करने की जरूरत है। भारत-रूस के बीच कई बातों में समानता है। रूस के साम्यवादी मॉडल को भारत में भी अपनाया गया है। रूस भारत का अच्छा और पुराना मित्र रहा है। इसे समाप्त नहीं होने देना चाहिए। पुतिन की यह हालिया यात्रा इस संदर्भ में सकारात्मक भूमिका निभाएगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। साथ ही बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच भारत को चीन और अमेरिका के साथ भी अपने संबंधों को निरंतर परिष्कृत करते रहने का प्रयास करना होगा। भारत को नए बहुपक्षीय विश्व के निर्माण के साथ ही अपने बहुपक्षीय संबंधों का दायरा बढ़ाना होगा।
लेखक गौरव कुमार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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