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भ्रष्टाचार की अर्थव्यवस्था

जागरण मेहमान कोना
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bharat jhunjhun balaदेशवासी हर नेता को भ्रष्ट मानते हैं। ऐसे में उदास होने की जरूरत नहीं है। हमें भ्रष्ट नेताओं में सही नीतियां बनाने वाले को समर्थन देना चाहिए। यदि घूस लेने वाले और गलत नीतियां बनाने वाले के बीच चयन करना हो तो मैं घूस लेने वाले को पसंद करूंगा। कारण यह कि घूस में लिया गया पैसा अर्थव्यवस्था में वापस प्रचलन में आ जाता है, लेकिन गलत नीतियों का प्रभाव दूरगामी और गहरा होता है, जैसे सरकार विदेशी ताकतों के साथ गैर-बराबर संधि कर ले, गरीब के रोजगार छीनकर अमीर को दे दे। ऐसे में देश की आत्मा मरती है और देश अंदर से कमजोर हो जाता है। आम तौर पर माना जाता है कि भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ता है। मसलन भ्रष्टाचार के चलते सड़क कमजोर बनाई जाती है, जिससे वह जल्दी टूट जाती है और ढुलाई का खर्च अधिक पड़ता है। इस फार्मूले के अनुसार भारत और चीन की विकास दर कम होनी चाहिए थी, क्योंकि ये देश ज्यादा भ्रष्ट हैं, परंतु वस्तुस्थिति इसके ठीक विपरीत है।


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भारत और चीन की विकास दर अधिक है, जबकि ईमानदार देशों की विकास दर या तो ठहर गई है या फिर बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रही है। जाहिर है कि भारत एवं चीन में भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव नहीं पड़ रहा है। प्रश्न है कि भारत में भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव क्यों नहीं दिख रहा है? भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि इससे प्राप्त रकम का उपयोग किस प्रकार किया जाता है। मान लीजिए एक करोड़ रुपये की सड़क बनाने के ठेके में से 50 लाख रुपये भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए। सड़क घटिया क्वालिटी की बनी। इस भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव पड़ा। अब प्रश्न उठता है कि घूस की 50 लाख की रकम का उपयोग किस प्रकार हुआ। इस रकम को ऐशोआराम में उड़ा दिया गया अथवा शेयर बाजार में लगा दिया गया? यदि रकम को शेयर बाजार में लगाया गया तो भ्रष्टाचार का आर्थिक विकास पर दुष्प्रभाव कुछ कम हो जाता है और वह उत्पादक होकर आर्थिक विकास में सहायक बन जाता है। मसलन किसी सरकारी विभाग के इंजीनियर ने 50 लाख रुपये के शेयर अथवा बांड खरीद लिए। कंपनी ने इस रकम से नहर बनाई। इसका अर्थव्यवस्था पर अंतिम परिणाम यह पड़ा कि सड़क घटिया बनी, किंतु सड़क बनाने में योगदान भ्रष्टाचार के धन ने दिया।सड़क के ठेके में हुए भ्रष्टाचार का दुष्परिणाम नहर बनने से कुछ कम हो जाता है। दक्षिणी अमेरिका के देशों एवं भारत में यह अंतर साफ दिखता है। दोनों देशों में घरेलू भ्रष्टाचार व्याप्त है। दक्षिण अमेरिका के नेताओं ने घूस की रकम को स्विट्जरलैंड के बैंकों में जमा करा दिया। नतीजा यह हुआ कि दक्षिणी अमेरिका की विकास दर में गिरावट आई, परंतु भारत के भ्रष्ट नेताओं ने स्विस बैंकों में जमा कराने के साथ-साथ घरेलू उद्यमियों के पास भी यह रकम जमा कराई।



लखनऊ के एक उद्यमी ने बताया कि उत्तर प्रदेश के किसी पूर्व मुख्यमंत्री ने 20 करोड़ रुपये जमा कराए थे। मुख्यमंत्री के इस भ्रष्टाचार का अर्थव्यवस्था पर दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। देश की पूंजी सरकारी सड़क के स्थान पर निजी कारखाने में लग गई, जो कि आर्थिक विकास में सहायक हुई। यदि घूस की रकम का निवेश किया जाए तो अनैतिक भ्रष्टाचार का आर्थिक सुप्रभाव भी पड़ सकता है। मान लीजिए सरकारी निवेश में औसतन 70 फीसदी रकम का सदुपयोग होता है, जबकि निजी निवेश में 90 फीसदी रकम का। ऐसे में यदि एक करोड़ रुपये को भ्रष्टाचार के माध्यम से निकाल कर निजी कंपनियों में लगा दिया जाए तो 20 लाख रुपये का निवेश बढ़ेगा। अर्थशास्त्र में एक विधा बचत की प्रवृत्ति के नाम से जानी जाती है। अपनी अतिरिक्त आय में से व्यक्ति जितनी बचत करता है उसे बचत की प्रवृत्ति कहा जाता है। गरीब की 100 रुपये की अतिरिक्त आय हो जाए तो वह 90 रुपये की खपत करता है और 10 रुपये की बचत करता है। तुलना में अमीर को 100 रुपये की अतिरिक्त आय हो जाए तो वह 10 रुपये की खपत करता है और 90 रुपये की बचत करता है। इस परिस्थिति में अमीर इंजीनियर द्वारा गरीब जनता के शोषण का अर्थव्यवस्था पर सुप्रभाव पड़ता है। मान लीजिए, विद्युत विभाग के इंजीनियर ने गरीब किसान से 100 रुपये की घूस ली। गरीब की आय में 100 रुपये की गिरावट आई जिसके कारण बचत में 10 रुपये की कटौती हुई, परंतु अमीर इंजीनियर ने 100 रुपये की घूस में 90 रुपये की बचत की। इस प्रकार घूस के लेन-देन से कुल बचत में 80 रुपये की वृद्धि हुई। अमीर द्वारा गरीब का शोषण सामाजिक दृष्टि से गलत होते हुए भी आर्थिक दृष्टि से लाभकारी हो गया। इस विश्लेषण का उद्देश्य भ्रष्टाचार को सही ठहराना नहीं है। नि:संदेह भ्रष्टाचार अनैतिक है।


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यदि सरकारी विभाग के इंजीनियर ईमानदारी से सड़क बनाएं और प्रस्तावित रकम का सदुपयोग करें तो आर्थिक विकास दर उच्चतम होगी। यहां हमारा चिंतन इस मुद्दे पर है कि भ्रष्ट होने के बावजूद हमारी विकास दर ऊंची क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर है कि हमारी मानसिकता भ्रष्टाचार से मिली रकम को निवेश करने की है। इस कारण भ्रष्टाचार का आम जनता पर दुष्प्रभाव पड़ने के बावजूद अर्थव्यवस्था पर सुप्रभाव पड़ता है। गरीब और गरीब हो जाता है, परंतु अमीर को निवेश के लिए रकम मिल जाती है। गांधीजी कहते थे कि बुजदिली से हिंसा अच्छी है और हिंसा से अहिंसा अच्छी है। इसी प्रकार भ्रष्टाचार को भी समझना चाहिए। भ्रष्ट अय्याशी की तुलना में भ्रष्ट निवेश अच्छा है और भ्रष्ट निवेश से ईमानदारी अच्छी है। भारत द्वारा भ्रष्ट निवेश करने से भ्रष्टाचार के बावजूद तीव्र आर्थिक विकास हो रहा है। भ्रष्ट अय्याशी के कारण अफ्रीका एवं दक्षिण अमेरिका के देशों में भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव दिखता है। परंतु सर्वश्रेष्ठ स्थिति ईमानदारी की है। जिस प्रकार गांधीजी ने हिंसा छोड़कर अहिंसा अपनाने को कहा था, उसी प्रकार हमें भ्रष्ट निवेश छोड़कर ईमानदारी को अपनाना चाहिए।




लेखक डॉ. भरत झुनझुनवाला आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं


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Tag:india,भारत ,चीन,सरकारी विभाग

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