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किसी लेखक ने सृजन में 35-40 साल खपाकर 10-20 किताबें लिखी हों और कोई पाठक चाहे कि वह उस लेखक को समग्रता में पढ़ सके तो उसकी सारी किताबें शायद ही कहीं मिल सकें। ऐसे में उसके सृजन और जीवन पर केंद्रित कोई किताब मिल जाए तो सोने पे सुहागे जैसा हो जाता है, लेकिन ऐसा प्राय: हो नहीं पाता। होता भी है तो सितारे लेखकों के जीवन और सृजन पर ही। डॉ. दामोदर खड़से हिंदी के वैसे ही लेखकों में से एक हैं, जिन्हें समग्रता में पेश करने की कोशिश डॉ. सुनील देवधर और राजेंद्र श्रीवास्तव ने कागज की जमीन पर जैसे साढ़े तीन सौ पृष्ठ के भारी भरकम ग्रंथ के जरिये की है।
इस ग्रंथ में हरिनारायण व्यास, मधुकर सिंह, सूर्यकांत नागर, राजकुमार गौतम, आलोक भट्टाचार्य, अशोक गुजराती, ओमप्रकाश शर्मा, शशिकला राय तथा प्रबोध गोविल जैसे तीस से अधिक लेखकों ने डॉ. खड़से के जीवन और साहित्य का बहुकोणीय विवेचन किया है। किताब के पत्र खंड में निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, प्रभाकर श्रोत्रिय, रामेश्वर शुक्ल अंचल, शंकरदयाल सिंह, बालकवि बैरागी, दया पवार, सूर्यबाला, शंकर पुणतांबेकर, शिवमूर्ति, भाऊ समर्थ, तेजेंद्र शर्मा, रूपर्ट स्नेल, सूरज प्रकाश, हरिसुमन बिष्ट, रामकुमार कृषक, भारत यायावर और घनश्याम अग्रवाल जैसे साठ से अधिक लोगों के डॉ. खड़से को लिखे महत्वपूर्ण पत्र शामिल हैं। अंत में दिए गए हैं दामोदर खड़से के साथ सौ से अधिक लोगों के छायाचित्र, जिनके जरिये उनके पूरे जीवन को चित्रों में देखा जा सकता है। इस तरह संपादक द्वय ने डॉ. खड़से को समग्रता में पेश करने में सफलता हासिल की है। अज्ञेय द्वारा संपादित तार सप्तक के दूसरे खंड में शामिल हिंदी के वरिष्ठ कवि हरिनारायण व्यास ने इस किताब के पहले ही आलेख में लिखा है, दामोदर खड़से अजातशत्रु मानुष हैं। अत्यंत सौम्य और सात्विक विचारों के व्यक्ति।
यह उनकी विशेषता है कि वे किसी को छोटा नहीं समझते। वह संस्कृत के सुहृद शब्द की मूर्ति लगते हैं। वे आपको कभी हताश और निराश नहीं होने देते। खड़से की कहानियों के बारे में व्यास जी कहते हैं, इनकी कहानियां वास्तविक जीवन के निकट और इतनी स्वाभाविक हैं कि पाठक को कभी लगता ही नहीं कि वह किसी अबूझ मानसिकता से जूझ रहा है। कहानियों में आज के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और घर-बाहर के सभी संदर्भ गहराई से जुड़े रहते हैं। डॉ. खड़से की कहानियों की भाषा सरल और छाप छोड़ने वाली है। घटनाक्रम, वातावरण और स्थानों का चित्रण वह इस खूबी से करते हैं कि पाठक को लगने लगता है कि वह पढ़ नहीं, सब घटित होते देख रहा है और उस परिवेश का हिस्सा है। दामोदर खड़से के अब तक पांच कहानी संग्रह-भटकते कोलंबस, पार्टनर, आखिर वह एक नदी थी, जन्मांतर गाथा तथा इस जंगल में तो छपे ही, दो उपन्यास-काला सूरज और भगदड़ भी आ चुके हैं। एक सागर और यात्रावृत्तांत है तो उनकी भेंटवार्ताएं जीवित सपनों का यात्री में संग्रहीत हैं। इनके अलावा डॉ. खड़से ने मराठी की पंद्रह चर्चित कृतियों का हिंदी अनुवाद भी किया है। उनका कथा साहित्य अपनी जगह है, लेकिन अनेक लोग हैं, जो उन्हें बहुत अच्छा कवि मानते हैं। प्रख्यात कवि लीलाधर मंडलोई लिखते हैं, दामोदर खड़से अत्यंत संवेदनशील कवि हैं, यह तुम लिखो कविता पढ़कर पता चलता है।
यह एक लंबी और भव्य प्रेम कविता है। कविता के लिए इस कठिन दौर में यह एक आह्वान है, जिसमें कविता को बचाने का आमंत्रण है। खड़से की इस कविता में समूची सृष्टि के प्रति अद्भुत प्रेम-प्रार्थनाओं की दीर्घ श्रृंखला है, जिसमें तमाम तत्वों, वस्तुओं, प्रसंगों और जीवन के आयामों को कविता में उकेरा गया है। मानवीय संबंधों की विरल ऊष्मा में डूबी यह कविता स्वर, संगीत, रंग, ध्वनि, रूप और मौन को अपने भीतर समेट लेने का सार्थक जतन करती है। तुम लिखो कविता के संबोधन शिल्प में यह दीर्घ मनुहार भी है कि कविता में ही संभव है जीवन को बचा पाना। कहना न होगा कि दामोदर का कवि हिंसक और बर्बर समय के बरक्स कविता में प्रेम की स्थापना को ऐसी कोशिश के रूप में देखता है कि इस दुनिया को पुन: सुंदर और बेहतर बनाया जा सके। यह कविता एक महाआख्यान रचने के दरवाजे पर मानो अपने होने का स्वप्न देखती है। तुम लिखो कविता जैसा ही है खड़से का कविता संग्रह सन्नाटे में रोशनी, जिसके बारे में सुनील देवधर ने लिखा है कि दामोदर खड़से अपनी कविता से मंत्र फूंकते हैं, सोचने-विचारने पर विवश करते हैं, लेकिन आधुनिक विज्ञानबोध के कारण अनास्थावादी प्रवृत्ति के भी कई स्वर उनकी कविताओं में उभरते हैं।
इसी तरह खड़से के तीसरे कविता संग्रह अब वहां घोंसले हैं पर टिप्पणी करते हुए कैलाश सेंगर लिखते हैं कि दामोदर के इस संग्रह की कविताएं सीधी, सहज और सरल हैं, सहज ही धोकर सहजता से पहनी गई कमीज की तरह। ऐसी कमीज, जिसमें प्रेस करने की भी जरूरत नहीं होती, न ही यह जागरूकताबोध कि बिना प्रेस की हुई कमीज पहने देखकर लोग क्या कहेंगे? इसीलिए इन कविताओं में अपनापन भरा हुआ है। सिर्फ इस गुण के लिए भी इन कविताओं को पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि आज के जीवन में सबसे ज्यादा जो चीज छूट रही है, वह अपनापन ही तो है। कुछ ऐसा ही है डॉ. खड़से का कविता संग्रह जीना चाहता है मेरा समय, जिसकी कविताएं अपने समय से मुठभेड़ करती हैं। इस वृत्तांत से तो निष्कर्ष यह निकलता है कि डॉ. खड़से जितने बड़े कथाकार हैं, उतने ही बड़े कवि भी हैं।
इस लेख के लेखक बलराम है
Tag:Love poem, Poem , Relation, Relationship, कविता , संबंधों की ऊष्मा, प्रेम कविता , स्वप्न
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