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जयपुर में पिछले हफ्ते संपन्न हुए कांग्रेस के चिंतन शिविर में पार्टी के अगले उत्तराधिकारी राहुल गांधी को उपाध्यक्ष का पद दिए जाने के साथ दो बातें जुड़ी हैं। एक ओर पहले से खुशामद की जकड़न में फंसी कांग्रेस के नेता राहुल की तारीफ करते नहीं थक रहे तो दूसरी ओर राजनीतिक गतिविधियों को निष्पक्ष रूप से देखने वाले लोग निराश और सदमे में हैं। निराश इसलिए, क्योंकि राहुल ने तमाम गंभीर मुद्दों को किनारे कर दिया और चिंतन शिविर राहुल उवाच में सिमटकर रह गया। सदमे में इसलिए, क्योंकि इससे पहले उन्होंने ऐसे किसी राजनेता से ऐसा पाखंडपूर्ण और बेईमानी भरा भाषण नहीं सुना था, जो सियासी दुनिया में अभी नया-नया है।
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राहुल के कुछ दावों की पड़ताल की जाए तो वास्तविकता सामने आ जाती है। राहुल ने अपने भाषण में सबसे पहले मनमोहन सिंह के बारे में बड़ी ही प्रीतिकर बातें कीं। उन्होंने कहा कि 1991 में उस क्रांति का नेतृत्व मनमोहन सिंह ने ही किया, जिसने उद्यमिता को बढ़ावा देकर देश को हमेशा के लिए बदल दिया। जब राहुल ने 1991-96 तक के दौर में लाइसेंस राज में फंसी अर्थव्यवस्था के उदारीकरण का श्रेय मनमोहन सिंह को दिया तो वह पूरी तरह झूठ बोल रहे थे। जिस शख्स ने नेहरू और इंदिरा गांधी की समाजवादी नीतियों को किनारे करने का साहस दिखाया वह तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहा राव थे। राव ने नेपथ्य में रहे नौकरशाह मनमोहन सिंह को काम करने के लिए मंत्री पद दिया। मनमोहन सिंह की आर्थिक उदारीकरण की नीतियों के कारण राव के राजनीतिक विरोधियों ने कई बार सरकार गिराने की चेतावनी दी और ऐसी स्थितियां भी बनीं, बावजूद इसके वह मनमोहन सिंह की ढाल बने रहे और उन्हें पूरे पांच साल तक वित्त मंत्री बनाए रखा। अपने मंत्रियों के बौद्धिक और राजनीतिक सशक्त पहलुओं का सम्मान करने का आत्मविश्वास न तो राजीव गांधी में था और न ही इंदिरा गांधी में। इसीलिए उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में कई बार फेरबदल किए। हैरानी की बात नहीं कि रक्षा, विदेश और मानव संसाधन जैसे मंत्रालयों में एक मंत्री का औसत कार्यकाल 4-6 माह रहा।
नरसिंहा राव ने प्रधानमंत्री रहते कभी ऐसी असुरक्षा महसूस नहीं की। यही कारण था कि उन्होंने अर्थव्यवस्था को बदलकर देश को जरूरी राजनीतिक स्थायित्व दिया और नई उम्मीद बंधाई। फिर भी राहुल ने नरसिंहा राव का नाम तक नहीं लिया। यह भारत में आर्थिक चमत्कार के लिए गांधी परिवार द्वारा राव के श्रेय को नकारते रहने का ही एक भाग था। लेकिन, राव के अद्भुत योगदान को नजरअंदाज करने के बाद जो बात असाधारण रूप से सच है, वह राहुल का यह दावा है कि इस देश में लोगों को उनका हक नहीं मिल पाता है। उन्होंने अपने दल के नेताओं से कहा हम अपने साथियों की अच्छाइयां व उनके सशक्त पहलू नहीं देखते और न ही उनकी सराहना करते हैं। हममें से कोई भी इससे अछूता नहीं है। हम दूसरों की भी प्रशंसा नहीं करते। हमेशा उनकी कमजोरियों पर ही ध्यान देते हैं। हम सिर्फ उनका प्रभाव कम करने के रास्ते ढूंढ़ते हैं। नेहरू-गांधी ने असल में यही किया है। हर प्रमुख राष्ट्रीय योजना नेहरू-गांधी परिवार के सिर्फ तीन सदस्यों के नाम पर है।
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इस परिवार ने दूसरे नेताओं के योगदान को कभी सामने नहीं आने दिया। यहां तक कि इसने समाज सुधारक और भविष्यदृष्टा डॉ. भीमराव अंबेडकर और 563 अलग-अलग राज्यों में बिखरे देश को एक करने में अहम भूमिका निभाने वाले सरदार वल्लभभाई पटेल तक के योगदान को व्यवस्थागत तरीके से धूमिल करने की कोशिश की। इस परिवार पर खुद का ऐसा भूत सवार है कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से दी जाने वाली छात्रवृत्ति तक का नाम इसने महात्मा गांधी या अंबेडकर के नाम पर न रख राजीव गांधी के नाम पर रखा। हाल के समय में, इस परिवार ने कभी नरसिंहा राव के असाधारण काम का जिक्र नहीं किया, जिन्होंने भारत को आर्थिक शक्ति बनाया और सिर्फ पांच साल की समयावधि में इसे सबसे तेजी से विकसित होते देशों की फेहरिस्त में खड़ा किया। उस राहुल उवाच का एक और हिस्सा देखिए जो उनके बनावटीपन की मिसाल पेश करता है। वह कहते हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन से राजनीतिक दल की ओर देख रहे हैं, पूरे राजनीतिक दायरे पर कुछ लोगों का ही कब्जा क्यों है? हमारे देश में सत्ता केंद्रीकृत है। हम सिर्फ व्यवस्था के शीर्ष पर स्थित लोगों को ही सशक्त करते हैं। हाशिये पर स्थित लोगों को सशक्त करने में हमारा विश्वास नहीं है। क्या ऐसा कहना राहुल गांधी जैसे नेता के लिए असाधारण नहीं है जिन्होंने खुद ऐसे ही केंद्रीकरण के कारण बड़ी भूमिका हासिल की है।
लोग इतने पाखंडी कैसे हो सकते हैं? इससे भी ज्यादा दुखद है युवा राजनेता का ऐसे झूठ का प्रदर्शन करना। उनका परिवार कांग्रेस पार्टी में सर्वोच्च रहा है और इसके हर वंशज के साथ नेतृत्व की गुणवत्ता का होता रहा है। यह वंशवाद 2013 में भी जारी है और यही इकलौती योग्यता है जिसने नौसिखिये राहुल गांधी को कुछ साल पहले महासचिव बनाया और अब उपाध्यक्ष। फिर भी वह हमें सत्ता के केंद्रीकरण पर वक्तव्य देते हैं। जब यह बात नेहरू-गांधी परिवार के किसी सदस्य की ओर से कही जाती है तो यह दिखावे के अलावा और कुछ नहीं। राहुल ने अपने वक्तव्य को भावुक बनाने की भी कोशिश की और बताया कि उनकी मां ने सुबह ही उनसे कहा था कि सत्ता जहर के समान है। यदि ऐसा है तो राहुल से पूछा जाना चाहिए कि भैया आप यह जहर क्यों पी रहे हैं और आपका परिवार इसका आदी क्यों है। उन्होंने शायद एक-दो ही ईमानदार बातें कहीं। एक यह कि सिस्टम औसत स्तर के लोगों को बढ़ावा देता है। निश्चित रूप से वह खुद को इस श्रेणी से बाहर रखते हैं, लेकिन उस दिन जितने लोगों ने उनका भाषण सुना उन्होंने महसूस किया होगा कि कम से कम उन्होंने यहां तो ईमानदारी बरती। दूसरी सच्ची बात उन्होंने कही, भ्रष्ट लोग खड़े हो गए हैं और भ्रष्टाचार मिटाने की बात कर रहे हैं। बिल्कुल सही कहा। सोनिया गांधी ने ओत्तावियो क्वात्रोची को बोफोर्स सौदे से 73 लाख डॉलर लूटकर भाग जाने दिया और यह भी देखा कि उसके खिलाफ भ्रष्टाचार का केस हटा लिया जाए। वह भी हमें भ्रष्टाचार पर भाषण देने लगीं। राहुल को सुनने के बाद हर कोई यही कह सकता है कि, भैया आप अपने मूल्यांकन में कब ईमानदारी बरतोगे?
लेखक ए. सूर्यप्रकाश वरिष्ठ स्तंभकार हैं
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