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यूं ही नहीं भयभीत है असम

जागरण मेहमान कोना
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बांग्लादेशी आप्रवासियों के प्रवाह पर मूल असमिया लोग क्या सोचते हैं? प्रख्यात शिक्षाविद-पत्रकार एमएस प्रभाकर ने अपने लेखों में लिखा है कि पिछले दशक में असम और पूरे उत्तरपूर्वी क्षेत्र में जो दिलचस्प बदलाव आया है, वह बांग्लादेशी अप्रवासियों की मौजूदगी को लगातार वैधता प्रदान करने के बारे में रहा है। फिर चाहे ये आप्रवासी वैध हों या अवैध़.़.बांग्लादेश से असम में अवैध घुसपैठ के बारे में 10 अपै्रल, 1992 को दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने वाले हितेश्वर सैकिया ने असम विधानसभा में कहा था कि असम में ऐसे करीब 20-30 लाख घुसपैठिए हैं। राज्य के 13 में से 10 जिलों में बांग्लादेशी घुसपैठियों की मौजूदगी के कारण आबादी बढ़ी है। यह बात असम के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने 1992 में कही थी। ऐसा कहने से पहले उनके पास कुछ तो ठोस सबूत रहे होंगे। प्रभाकर में मौजूद दूरदर्शी पर्यवेक्षक लिखता है, 20-30 के इस दावे पर वरिष्ठ कांग्रेसी और सैकिया के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी अब्दुल मुहीब मज़ूमदार की प्रतिक्रिया आई। वह सैकिया की पहली सरकार (1983-85) में मंत्री भी रहे और बाद में उन्होंने मुस्लिम फ्रंट नाम से एक संगठन भी बनाया। गौहाटी में संगठन की पहली और एकमात्र आमसभा में संयोजक अब्दुल अजीज ने मुख्यमंत्री को याद दिलाया कि उनकी पार्टी मुस्लिम वोटों पर टिकी है और सैकिया को हटाने में असम के मुसलमानों को सिर्फ पांच मिनट लगेंगे।


अजीज ने बहुत पहले ही घोषणा कर दी थी कि वैध या अवैध तरीके से बसे मुस्लिम अप्रवासी ही किंगमेकर हैं। पूरी तरह सांप्रदायिक मुस्लिम फ्रंट ने अपना रंग दिखाया और दो सप्ताह बाद ही मुख्यमंत्री का स्पष्टीकरण आ गया। उन्हें वोट बैंक की खातिर कहना पड़ा कि राज्य में एक भी मुस्लिम आप्रवासी नहीं हैं। हाल ही में हुई हिंसा के दौरान कई कथित धर्म-निरपेक्ष विश्लेषकों ने बीटीसी समझौते के तहत मिलने वाले अधिकारों में कई कमियां बताई हैं। माना कि मुद्दा बहस का है, लेकिन बीटीसी क्षेत्र में अवैध बांग्लादेशियों के प्रवाह को लेकर मूल बोडो समुदाय में व्याप्त आशंकाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता। इस क्षेत्र में सर्वोच्च प्राथमिकता मूल समुदाय को मिलनी चाहिए। बोडो लोगों की आशंका को दूर किया जाना चाहिए, लेकिन सवाल यह उठता है कि ऐसी आशंकाएं पैदा ही कैसे हुईं? वरिष्ठ पत्रकार डीएन बेजबरुआ ने हाल ही में लिखा है कि 2011 की जनगणना के अनुसार असम की वर्तमान आबादी करीब 3 करोड़ 12 लाख है। 1901-1941 के दौरान राज्य की जनसंख्या दोगुनी हो गई।


1941-1971 के बीच के यह दोगुनी से भी अधिक हो गई। जिस अवधि में भारत की आबादी 150 प्रतिशत बढ़ी, उसी अवधि में असम की जनसंख्या, 343़77 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इसका मुख्य कारण पूर्व बंगाल और पूर्व पाकिस्तान और वर्तमान बांग्लादेश से आने वाले लो“ ही हैं। बेजबरुआ ने इस लेख में एक बांग्लादेशी बुद्धिजीवी लेखक सादिक खान के लेख का हवाला देते हुए बाताया है कि सादिक ने किस तरह बांग्लादेशी प्रवाह की खुलेआम वकालत की थी। सादिक ने लिखा था कि इसमें संदेह है कि अगले दशक में बांग्लादेश अपनी अनुमानित जनसंख्या-वृद्धि को बसाने के लिए पर्याप्त रूप से शहरीकरण या अपनी क्षमता से बसावट-योग्य जमीन पर्याप्त विस्तार में हासिल कर सकेगा या नहीं। इसलिए, जनसंख्या के दबाव का सहज फैलाव होना ही है। अप्रवासियों के प्रवाह की इस दर को देखते हुए असम के मूल समुदायों में आशंकाओं और भय का जन्म लेना स्वाभाविक ही है। बांग्लादेश से राज्य में लोगों के निर्बाध प्रवाह के बारे में बोडो या असम के दूसरे मूल समुदायों की आशंकाएं निर्मूल नहीं हैं। इसी डर से अशांति पैदा होने की प्रतिक्रिया जन्मी है और इससे भविष्य में और भी अशांति पैदा हो सकती है। लेकिन क्या असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई को इसकी चिंता है?


बिकास सरमाह स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


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