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संकट के बस इसी पक्ष को सलाम करने का मन होता है कि समाज यदि जागरूक व संवेदनशील है तो संकटों से सुधारों का उजाला फूटता है। सितंबर 2001 में अमेरिका पर हमले ने ही गाफिल दुनिया को पहली बार आतंक की वित्तीय सप्लाई चेन से परिचित कराया था और डब्लूटीसी के ढहने के बाद संयुक्त राष्ट्र व फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने ग्लोबल आर्थिक नसें काट कर आतंक की वित्तीय रीढ़ तोड़ दी। ठीक इसी तरह अगर कर्ज संकट न आया होता तो शायद यूरोप टैक्स हैवेन को हमेशा की तरह पालता रहता। अब यूरोप की सरकारें खुद-ब-खुद काली कमाई के जमाघरों के पर्दे नोच रही है। ब्रिटेन ने अपने अधिकार क्षेत्र वाले आधा दर्जन टैक्स हैवेन पर सूचनाएं सार्वजनिक करने की नकेल डाल दी है। यूरोपीय संघ ने लक्जमबर्ग व आस्टिया को कर गोपनीयता की जिद छोड़ने पर मजबूर किया है। यह पारदर्शिता के ग्लोबल आग्रहों की पहली बड़ी जीत है।
Black Money And Inflation
टैक्स हैवेन यूरोप की सरकारों को एक गहरी ग्लानि में धकेल रहे हैं। कर्ज संकट के कारण जनता की सुविधाएं काटते और टैक्स लादते हुए यूरोप के हाकिमों को यह स्वीकार करना पड़ा है कि काले धन के टैक्स फ्री जमाघरों को संरक्षण और जनता पर सख्ती एक साथ नहीं चल सकती, क्योंकि ताजे आंकड़ों के मुताबिक इन जन्नतों में करीब 32 खरब डॉलर की काली कमाई जमा है। टैक्स हैवेन यूरोपीय वित्तीय तंत्र के अतीत व वर्तमान का मजबूत हिस्सा हैं। स्विट्जरलैंड ने टैक्स हैवेन का धंधा 1930 की मंदी से डरकर शुरू किया था। ऑस्टिया व स्विट्जरलैंड के बीच मौजूदा छोटी सी रियासत लीचेंस्टीन भी तब तक अपने कानून बदल कर टैक्स हैवेन बन चुकी थी। ज्यूरिख-जुग-लीचेंस्टीन की तिकड़ी को दुनिया का पहला स्थापित टैक्स हैवेन माना जाता है। 1960 से 1990 के बीच पूरी दुनिया में करीब सौ टैक्स हैवेन खेलने लगे थे। जीडीपी में करीब 11 फीसद के हिस्से साथ काली बैंकिंग आज स्विस अर्थव्यवस्था की जान है। टैक्स जस्टिस नेटवर्क कहता है कि 70 टैक्स हैवेन दुनिया के प्रमुख वित्तीय बाजारों से सीधे जुड़े हैं अर्थात इनका पैसा ग्लोबल बाजारों की जान है। यही सच अब यूरोपीय सरकारों को बहुत परेशान कर रहा है। टैक्स हैवेन को लेकर अटलांटिक के दोनों किनारों पर खासी बेचैनी हैं। साइप्रस पर सख्ती से जो माहौल बदलना शुरू हुआ था उसे टैक्स हैवेन पर अब तक के सबसे बड़े रहस्योद्घाटन से जबर्दस्त ताकत मिली है। खोजी पत्रकारिता के एक ताजा अभियान से दुनिया की तमाम नामचीन कंपनियों व व्यक्तियों के नकाब उलट गए हैं। लंदन शेयर बाजार की सौ शीर्ष कंपनियों में 98 टैक्स हैवेन का इस्तेमाल कर रही हैं। एसोसिएटेड ब्रिटिश फूड्स ने टैक्स हैवेन के रास्ते जाम्बिया में जितना टैक्स बचाया है उससे वहां 48000 बच्चों को शिक्षा दी जा सकती थी। कोफी अन्नान का अफ्रीका प्रोग्रेस पैनल कहता है कि लंदन की शीर्ष कंपनियों ने कांगो में निवेश के लिए जितना टैक्स बचाया वह इस देश के शिक्षा व स्वास्थ्य बजट का दोगुना है।
Black Money And Corruption
केमैन आइलैंड में 1960 में अनजान कस्बा था, जहां एक बैंक व एक पक्की सड़क थी। कैरेबियन वकील मिल्टन ग्रुंडी ने केमैन का ट्रस्ट लॉ तैयार किया और 1970 की शुरुआत में केमैन टैक्स हैवेन बन गया। कुछ माह बाद ही ग्रैंड केमैन के हवाई अड्डों पर प्राइवेट जेट उतरने लगे। केमैन आइलैंड उन ब्रिटिश ओवरसीज टेरीटरीज में शामिल है जिन पर इस माह ब्रितानी सरकार ने सख्ती की है। केमैन सहित बरमुडा, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, टर्कसा, काइकोस, मांस्टरेट, एंग्युला जैसे टैक्स हैवेन अपने काले रहस्यों को साझा करेंगे। ब्रितानी प्रधानमंत्री डेविड कैमरन अमीर मुल्कों के समूह जी 8 के अध्यक्ष होने वाले हैं, जहां टैक्स पारदर्शिता उनका प्रमुख एजेंडा होगा। चार साल पहले तक टैक्स हैवेन के हक में ऑस्टिया व लक्जमबर्ग की जिद देखते ही बनती थी। दोनों मुल्क बैंकिंग गोपनीयता के मजबूत गढ़ हैं। बदली आबोहवा में इन दोनों को नए कर कानून का विरोध छोड़ना पड़ा है और इसके साथ ही यूरोप में टैक्स पारदर्शिता का निर्णायक अभियान शुरू हो गया है। यूरोपीय नेतृत्व अब स्विट्रजरलैंड, लीचेंस्टीन, एंडोरा, मोनाको और सान मैरिनो पर पारदर्शिता का दबाव बना रहा है। स्विस बैंकों पर अमेरिकी सख्ती कारगर रही है। लोहा गरम है इसलिए शेष दुनिया भी कोशिशों में जुट गई है। स्विस लीचेंस्टीन का गढ़ टूटा तो टैक्स पारदर्शिता बड़ी जीत होगी।
Black Money Holder In Swiss Bank
टैक्स हैवेन पर विस्फोटक सूचनाओं के जिस तूफान में यूरोपीय व अमेरिकी सरकारें घिरी हैं वह आयरिश पत्रकार गेराल्डर रेल तक पहुंची एक हार्ड ड्राइव से निकली थीं, जिसमें 170 देशों के 25 लाख लोगों व कंपनियों की जानकारी थी। सूची में भारती उद्यमी व राजनेता सहित 612 लोग हैं, जिनके नाम सामने आ चुके हैं, लेकिन भारत में इन पर कार्रवाई को लेकर बेचैनी नहीं दिखती। सरकार जांच कराने का बयान देकर छिप गई है। टैक्स हैवेन से जुड़े पुराने मामले फाइलों में पहले से बंद हैं। यूरोप व अमेरिका अपनी इसी कालिख पर शमिर्ंदा हैं, मगर भारत बेफिक्र है। पश्चिम बुरा हो सकता, लेकिन वहां सरकारों पर नैतिक आग्रहों का असर दिखता है, जबकि नैतिक विरासत पर भाव खाने वाला भारत वित्तीय अनैतिकता में अफ्रीका जैसा हो रहा है। मशहूर अंग्रेजी लेखक जी के चेस्टरटन की यह टिप्पणी भारत निर्माण का नया परिचय बन सकती है कि कुछ जगहों पर गरीबों को कायदे की गवनेर्ंस नहीं मिलती और मुट्ठी भर रसूख वालों के लिए कोई गवनेंर्स नहीं है।
इस आलेख के लेखक अंशुमान तिवारी हैं
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