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भारत-चीन सीमा विवाद सुलझाने के लिए दोनों देशों के बीच 15वें दौर की वार्ता हाल ही में चीन में संपन्न हुई। इस वार्ता में भारत का नेतृत्व राष्टीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन और चीन का नेतृत्व वहां की सरकार के काउंसलर दाई बिंगुओ ने किया। दोनों वार्ताकारों के मध्य 3 और 4 दिसंबर को बातचीत हुई। यह बातचीत कुल छह घंटे तक हुई जिसमें तीन दौर की बैठकें चलीं। इस वार्ता के बाद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने मीडिया से कहा कि मेरे और दाई बिंगुओ के बीच सीमा मुद्दे पर अब तक हुई प्रगति को लेकर आम समझ बन गई है जो निष्पक्ष, तर्कसंगत और परस्पर स्वीकार्य सीमा का निर्धारण करने के लिए ढांचा प्रदान करेगा। चीन में सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी की नवंबर महीने में संपन्न हुई 18वीं कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन के बाद चीन की यात्रा करने वाले मेनन पहले विदेशी गणमान्य व्यक्ति हैं। शिवशंकर मेनन ने जानकारी दी कि सीमा विवाद सुलझाने वाली वार्ता फिलहाल तीन चरणों की प्रक्रिया के दूसरे चरण में है। वार्ता का शुरुआती प्रथम चरण पूरा हो चुका है जिसमें दिशा-निर्देशक सिद्धांत तैयार करना था।
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इसके लिए सन 2005 में राजनीतिक मानदंडों और सीमा समझौते के लिए दिशा-निर्देशक सिद्धांतों पर समझौता हुआ था। इसमें निश्चित हुआ था कि दोनों देश सीमा विवाद के मसले को शांति व मैत्रीपूर्ण तरीके से हल करेंगे और सीमा विवाद का मसला अन्य द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित नहीं करेगा। इसके अलावा दोनों देश एक दूसरे के रणनीतिक, आपसी व सुरक्षा के सिद्धांतों तथा सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वालों के हितों का ख्याल रखेंगे। समझौता पूर्णतया अंतिम होगा तथा ऐतिहासिक प्रमाणों व जमीनी स्थिति का ध्यान रखा जाएगा। अब दूसरे चरण का लक्ष्य सीमा पर समझौते के लिए एक ढांचा तैयार करना है और एक बार खाका तैयार हो जाने के बाद हम सीमा खींचने के वास्तविक कार्य पर आगे बढ़ेंगे। यह दूसरे चरण का मध्य काल है और इसमें दोनों देशों ने यह समझने की कोशिश की है कि हम कहां पर हैं। अगर संबंधों का विश्लेषण किया जाए तो हमने उल्लेखनीय प्रगति की है और स्थितियों से बखूबी निपटे हैं जिसके कारण सीमा पर शांति है तथा हम समझौते की ओर आगे बढ़े हैं।
इस वार्ता में चीन की तरफ से मुख्य भूमिका निभाने वाले दाई बिंगुओ ने सीमा वार्ता के भविष्य पर कहा कि सन 1979 से अब तक दोनों देशों ने लगातार वार्ता के जरिए सकारात्मक परिणाम हासिल किए हैं। उन्होंने कहा कि भारत-चीन के दो हजार साल पुराने संबंधों में 99.9 फीसदी संबंध बेहतर रहे। अब अगर दोनों देश 1962 की छाया से निकल कर भविष्य को उज्जवल बनाना चाहिए। चीन भारत के साथ शांतिपूर्ण विकास को आगे बढ़ाने तथा मित्रवत व सहयोगात्मक संबंध विकसित करने को प्रतिबद्ध है। दाई बिंगुओ मार्च 2013 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। वह ऐसे व्यक्ति हैं जो अब तक सभी 15 दौर की वार्ता में चीन के विशेष प्रतिनिधि रहे हैं। उन्होंने अपने समकक्ष भारत के चार वरिष्ठ अधिकारियों बृजेश मिश्रा, जेएन दीक्षित, एमके नारायणन और मौजूदा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन के साथ सीमा वार्ता और द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य बनाने में अहम भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि दोनों देशों ने सीमा मुद्दे पर विशेष प्रतिनिधियों के बीच बैठकों के तंत्र की शुरुआत 2003 में की थी। अरुणाचल पर विवाद की तरफ देखा जाए तो भारत का दावा है कि विवाद 4000 किलोमीटर जमीन को लेकर है जबकि चीन का दावा है कि यह अरुणाचल प्रदेश के लगभग 2000 किलोमीटर क्षेत्र तक है। चीन अरुणाचल प्रदेश के हिस्से को दक्षिणी तिब्बत बताता है। पश्चिमी क्षेत्र में भारत का दावा है कि चीन ने 43000 किलोमीटर भू-क्षेत्र अपने कब्जे में ले रखा है। इसमें पाकिस्तान द्वारा चीन को दिया गया 5180 किलोमीटर भू-क्षेत्र भी शामिल है। इसी तरह मध्य सीमांत क्षेत्र में शिपकी ला, कोरिक, पुलाम, थागला, सांघा, लापथाल, बारोहेरी व कुंगरी-बिंगरीला क्षेत्र विवादित हैं।
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लेखक लक्ष्मी शंकर यादव स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
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