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संवैधानिक संस्थाओं का मानमर्दन

जागरण मेहमान कोना
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Arvind Jaiteelakकोल ब्लॉक आवंटन घोटाले की कालिख से नहाई सरकार के हौसलापस्त मंत्री और कांग्रेस के बड़बोले पदाधिकारी जिस तरह सरकार के बचाव में संवैधानिक संस्थाओं पर हल्ला बोल उसकी गरिमा को नष्ट कर रहे हैं, यह उनके संविधान विरोधी आचरण का प्रमाण तो है ही, संवैधानिक संस्थाओं को तहस-नहस करने का घिनौना प्रयास भी है। शायद ही किसी लोकतांत्रिक देश में संवैधानिक संस्थाओं पर सरकारें इस तरह हमला बोलती हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित सभी जिम्मेदार मंत्री बार-बार दोहरा रहे हैं कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट आधारहीन और त्रुटिपूर्ण है। उसे लोक लेखा समिति में चुनौती देने की बात भी कही जा रही है। साथ ही सीएजी को हद में रहने की नसीहत भी दी जा रही है, क्योंकि उसके पास सरकारी नीतियों की जांच और समीक्षा का अधिकार नहीं है। मतलब साफ है कि सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट को कूड़ेदान में डालने का मन बना लिया है। हालांकि सीएजी ने भी साफ कर दिया है कि यह उम्मीद करना सच्चाई से मुंह मोड़ना है कि कैग द्वारा सरकारी नीतियों पर कोई सवाल नहीं उठाए जाएंगे। बावजूद इसके सरकार सच के आईने में अपनी बदरंग तस्वीर देखने को तैयार नहीं है।

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दिग्विजय सिंह का हमला अपने विवादित बयानों के लिए अक्सर चर्चा में रहने वाले महासचिव दिग्विजय सिंह यहां भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने कहा है कि कैग आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर सनसनी पैदा कर रही है। यह भी जहर उगला है कि सीएजी प्रमुख विनोद राय पूर्व सीएजी प्रमुख टीएन चतुर्वेदी की तरह अपना राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। मालूम हो कि बोफोर्स पर अपनी रिपोर्ट देने वाले टीएन चतुर्वेदी सेवानिवृत्ति के बाद भाजपा सांसद बन गए। बाद में गर्वनर भी बने। अब दिग्विजय सिंह उन्हीं की आड़ लेकर यह साबित करना चाहते हैं कि जिस तरह बोफोर्स मामले को हवा देकर राजीव गांधी की सरकार को बदनाम किया गया उसी तर्ज पर कोल ब्लॉक आवंटन मामले में मनमोहन सरकार को बदनाम किया जा रहा है। अगर दिग्विजय सिंह ने टीएन चतुर्वेदी का जिक्र किया ही है तो उन्हें यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि क्या बोफोर्स रिपोर्ट गलत थी? आयकर न्यायाधिकरण साफ कर चुका है कि होवित्जर तोप सौदे में दिवंगत विन चड्ढा और इतालवी व्यापारी ओतावियो क्वात्रोक्की को 41 करोड़ रुपए की घूस दी गई थी। जहां तक चतुर्वेदी का भाजपा में शामिल होने का सवाल है तो वह कोई इकलौते नौकरशाह नहीं हैं जो सेवानिवृत्ति के बाद राजनीति में आए हों। जिस तरह उनकी आड़ में संवैधानिक पदों पर आसीन लोगों की ईमानदारी पर शक किया जा रहा है या उनकी संवैधानिक निष्ठा पर उंगली उठाई जा रही है, वह भी सिर्फ इसलिए कि वे सरकार के घोटालों का घड़ा फोड़ रहे हैं, उचित नहीं है। इस तरह के निकृष्ट आचरण से संवैधानिक संस्थाओं की साख खराब होगी।


टीएन चतुर्वेदी के बहाने विनोद राय की घेराबंदी करने वाले दिग्विजय सिंह को बताना चाहिए कि क्या पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एमएस गिल जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद कांग्रेस ने संप्रग सरकार में मंत्री बनाया था, वह भी अपने सेवा काल में किसी राजनीतिक एजेंडे के तहत काम कर रहे थे? क्या कांग्रेस ने उनके फैसलों से प्रभावित होकर उन्हें मंत्री पद दिया? दिग्विजय सिंह को यह भी बताना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश को कांग्रेस ने अगर संसद का सदस्य बनाया तो क्या यह माना जाए कि वे राजनीतिक एजेंडे को ध्यान में रखकर निर्णय देते थे? दिग्विजय सिंह का जुबानी प्रपंच राष्ट्र को बेचैन करने वाला और संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा को भंग करने वाला है। समझ से बाहर है कि वे अपनी कुतर्कबाजी से क्या साबित करना चाहते हैं। दिग्विजय की मंशा जो भी हो, पर उन्होंने संवैधानिक संस्था सीएजी पर हमला बोलकर कांग्रेस के फासीवादी नजरिये की पुष्टि कर दी है। यह पहली बार नहीं है जब दिग्विजय सिंह ने संवैधानिक संस्थाओं, समाजसेवी संगठनों और आंदोलनकारियों के चरित्र पर प्रहार किया हो। वह पहले भी अपनी कुतर्कबाजी से कांग्रेस और सरकार की नाक कटा चुके हैं।


समाजसेवी अन्ना हजारे के आंदोलन को बदनाम करने के लिए उन्होंने जिस तरह के आरोप गढ़े यह किसी से छिपा नहीं है। अब जब टीम अन्ना भंग हो चुकी है और उसने राजनीतिक दल बनाने का फैसला कर लिया है तो दिग्विजय सिंह को चाहिए कि वह अन्ना, आरएसएस और भाजपा से अपनी हरकतों के लिए माफी मांगें। लेकिन कुतर्र्को का पहाड़ खड़ा करने वाले दिग्विजय सिंह भला ऐसा क्यों करेंगे? ये वही दिग्विजय सिंह हैं जो आतंकी सरगना ओसामा बिन लादेन को सम्मानसूचक शब्दों से नवाजते हैं, जबकि कालेधन के खिलाफ आंदोलन चलाने वाले योगगुरु स्वामी रामदेव को महाठग और दोषद्रोही कहते हैं। दिग्विजय सिंह यह भी कह चुके हैं कि महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे को हिंदू आतंकवादियों से खतरा था, जबकि उनकी गप्पबाजी पूरी तरह निराधार साबित हुई। दरअसल, दिग्विजय की नजर में वह हर व्यक्ति खलनायक होता है जो सरकार की नाकामी की पोल खोलता है, भ्रष्टाचार का खुलासा करता है या कालेधन के खिलाफ आंदोलन चलाता है। कई हैं कुतर्कबाज सीएजी विनोद राय पर दिग्विजय के हमले को भी इसी नजरिये से देखा जाना चाहिए। दिग्विजय सिंह कांग्रेसी कुतर्क पाठशाला के कोई पहले विद्यार्थी नहीं हैं, जो संवैधानिक संस्थाओं पर हमला कर रहे हैं। कांग्रेस में ऐसे बहुतेरे नेता हैं, जो कुतर्कबाजी में माहिर हैं। पिछले दिनों हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद भी चुनाव आयोग की धज्जियां उड़ा चुके हैं। चुनाव आयोग की मनाही के बाद भी वे अल्पसंख्यक आरक्षण का भोंपू बजाते सुने गए। अंतत: आयोग को कानून मंत्री की शिकायत राष्ट्रपति से करनी पड़ी, जबकि संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा की बात करने वाली कांगे्रस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने सिपहसालारों की वाचालता पर चुप्पी साधे रहीं। कुछ इसी अंदाज में केंद्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा भी चुनाव आयोग को चुनौतियां परोसते रहे। अब जब कोयला घोटाले की धधकती आग में संप्रग सरकार झुलस रही है तो वह विपक्ष को संसद की मर्यादा की याद दिला रही हैं। दूसरी ओर, कांग्रेस के नेता मणिशंकर अय्यर संसद ठप किए जाने के मुद्दे को लेकर भाजपा सांसदों को गुंडा कहकर उन्हें संसद से बाहर फेंकने की सलाह दे रहे हैं। दरअसल, संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा को तार-तार करना कांग्रेस की फितरत में शामिल है। जब भी वह सवालों से घिरती है उसका आचरण निरंकुश किस्म का हो जाता है। आपको याद होगा जब इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति जगमोहन लाल सिन्हा ने 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी के रायबरेली चुनाव को यह कहकर रद कर दिया था कि चुनाव भ्रष्ट तरीके से जीता गया है तो उनकी सरकार ने संविधान को ही निलंबित कर दिया था।


आंतरिक सुरक्षा को मुद्दा बनाकर कैबिनेट की मंजूरी लिए बिना ही देश पर आपातकाल थोप दिया गया था। तमाम आंदोलनकारियों को जेल में ठूंस दिया गया। सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं की तालाबंदी कर दी गई। प्रेस की स्वतंत्रता को खत्म कर दिया गया। आज उसी अंदाज में केंद्र की संप्रग सरकार भी निरंकुश आचरण का प्रदर्शन कर रही है। इंदिरा सरकार ने जेपी के आंदोलन को फासीवादी कहा था। इतना ही नहीं, न्यायपालिका को अपनी मुट्ठी में कैद करने के लिए न्यायिक नियम भी दरकिनार कर दिए थे। उन्होंने उच्चतम न्यायालय के तीन वरिष्ठ न्यायधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी कर चौथे नंबर के न्यायधीश को मुख्य न्यायाधीश बना दिया था। केंद्र की वर्तमान संप्रग सरकार भी न्यायपालिका को लेकर संवेदनशील नहीं है। देखा जा चुका है कि 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन और सीवीसी नियुक्ति के मामले में उसने किस तरह न्यायालय की आंख में धूल झोंकने का काम किया। गोदामों में सड़ रहे अनाजों को गरीबों में बांटने के आदेश पर भी वह न्यायपालिका को उसकी हद बताते हुए सुनी गई। ऐसे में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और सरकार के नुमाइंदे संवैधानिक संस्थाओं पर हमला बोलते हैं तो इसमें हैरानी नहीं होनी चहिए, क्योंकि संवैधानिक संस्थाओं का मानमर्दन करना कांग्रेस के डीएनए में ही शामिल है।


लेखक अरविंद जयतिलक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं


Tag: Coal block allocation, coal block auction india, prime minister manmohan singh, anna hazare



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