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सांसदों के हितों का लेखा-जोखा

जागरण मेहमान कोना
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सांसदों से आचार संहिता का पालन कराने की बात लोकसभा की एक समिति ने 17 साल पहले ही कह दी थी। फिर भी संसद अभी तक इस दिशा में कदम आगे नहीं बढ़ाया है। हालांकि इसके अभाव में हमारे सांसदों की छवि लगातार गिरती जा रही है। इसी से जुड़ा एक मसला है, संसद सदस्यों के हितों का रजिस्टर बनाना और उसमें ऐसे नियम शामिल करना जो उन्हें संसद में बहस में शामिल होने से पहले अपने हित सार्वजनिक करने को बाध्य करें। इससे सांसदों को आर्थिक हित साधने के लिए पद का दुरुपयोग करने से रोका जा सकेगा। ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के सांसद कई दशकों से ऐसे नियमों में बंधे हैं। राज्यसभा में इसे आठ साल पहले प्रस्तावित कर दिया गया था, लेकिन विडंबना यह है कि लोकसभा इससे अपने कदम खींचती आ रही है। लोकसभा की विशेषाधिकार समिति ने 1996 में इसकी सिफारिश की थी। समिति की ये सिफारिशें तत्कालीन लोकतांत्रिक देशों में लागू सर्वश्रेष्ठ नियमों पर आधारित थीं। लोकसभा ने इस समिति के सुझाव को स्वीकार करते हुए आचार समिति का गठन कर दिया और समिति द्वारा बनाई गई आचार संहिता भी स्वीकार कर ली, लेकिन उसके बाद से हम इस दिशा में कोई प्रगति नहीं कर पाए। उदाहरण के तौर पर, आचार समिति ने कहा था कि लोगों को अपने प्रतिनिधियों के अनैतिक व्यवहार की शिकायत करने का अधिकार मिलना चाहिए और स्पीकर को इसकी जांच करानी चाहिए। समिति ने यह भी कहा था कि अमेरिका और ब्रिटेन की तरह सांसदों के हितों का रजिस्टर शुरू करना चाहिए, लेकिन इनमें से कुछ भी न हो सका। बहरहाल, अब उम्मीद की एक किरण दिखाई दी है, क्योंकि आचार समिति ने यह रजिस्टर शुरू करने के लिए सख्ती से कहा है।


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पिछले साल समिति ने संसद सदस्यों के हितों के रजिस्टर के रखरखाव और सदन या सदन की समितियों में उनके द्वारा की गई घोषणाओं के मुद्दे की जांच करने का निर्णय लिया था। समिति ने यह मुद्दा एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (एडीआर) की सिफारिश पर उठाया था। एडीआर चुनावी प्रक्रिया का गहन अध्ययन करने वाला संगठन है, जो लोकतांत्रिक संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसने स्पीकर को खत लिखकर राज्यसभा में प्रक्रियागत नियमों और आचार-व्यवहार की ओर ध्यान खींचा था। इसमें भी संसद सदस्यों के हितों का रजिस्टर खोलने पर जोर दिया गया था। उन्होंने इन्हीं नियमों को लोकसभा में भी लागू करने की अपील की। उनका तर्क था कि संसद सदस्यों के खिलाफ लग रहे भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोपों के मद्देनजर हितों का ऐसा रजिस्टर शुरू करना चुने हुए प्रतिनिधियों और देश की चुनावी एवं राजनीतिक प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने वाला कदम होगा। स्पीकर ने इसे संसद की आचार समिति को सौंप दिया। एडीआर ज्ञापन में कहा गया कि हालांकि लोकसभा में ऐसे नियम हैं, लेकिन उनमें यह स्पष्ट उल्लेख नहीं है कि संसद सदस्यों के हितों का रजिस्टर होना चाहिए। इस रजिस्टर में दी गई जानकारी सार्वजनिक भी की जा सकती है। राज्यसभा की आचार समिति ने सांसदों के पांच विशेष आर्थिक हित चिह्नित किए हैं, जिन पर सांसदों की घोषणा होना जरूरी है। उनमें लाभकारी निदेशक, नियमित लाभकारी गतिविधि, प्रकृति नियमन में हिस्सेदारी, पैसे लेकर परामर्श देना और पेशेवर हिस्सेदारी शामिल हैं।



समिति ने ऐसा खाका भी तैयार किया है जिसमें सांसदों के हित दर्ज किए जाएंगे। प्रत्येक सदस्य को शपथ ग्रहण के 90 दिनों के भीतर अपने हितों की घोषणा करना जरूरी है। इसने कहा है कि उनमें कोई भी परिवर्तन अगले वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में किए जा सकेंगे। आचार समिति ने इस मुद्दे की जांच के बाद कहा कि उसने संसद सदस्यों के हितों को दर्ज करने वाले प्रावधानों पर ध्यान से विचार किया है। ऐसे ही प्रावधान लोकसभा में भी लागू किए जाने चाहिए। लोकसभा सदस्यों को भी अपने हित रजिस्टर में दर्ज करने चाहिए। यदि सदन या कोई समिति किसी मुद्दे की जांच कर रही है और उसमें किसी सांसद का आर्थिक हित है तो उसे रजिस्टर में दर्ज होने पर भी उसकी घोषणा करनी चाहिए। इस तरह हितों का दर्ज किया जाना संसद सदस्य के संसदीय दायित्वों से संबंधित है, उसका हितों की घोषणा करना किसी भी मामले की चर्चा से संबंध रखता है। आचार समिति ने कहा कि संसद सदस्यों के हितों का रजिस्टर शुरू करने का उद्देश्य संसदीय प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना और सांसदों की जवाबदेही तय करना है, ताकि अपने प्रतिनिधियों के प्रति जनता का भरोसा फिर से जगे। समिति ने इसे संसदीय लोकतंत्र के लिए अनिवार्य बताया है। समिति ने कहा है कि हितों के संघर्ष से बचने के लिए भी इन नियमों को शामिल करना जरूरी है। हितों का यह संघर्ष वित्तीय और गैर-वित्तीय हो सकता है। समिति ने राज्यसभा के सभापति से भी मुलाकात कर यह जाना कि वह इस मुद्दे से पिछले आठ सालों से कैसे निपट रही है।


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गौर करने वाली बात है कि राज्यसभा के सभापति ने भी माना कि उच्च सदन के सदस्यों के लिए अनिवार्य होने के बावजूद सदन में बहस से पहले सदस्यों का अपने हितों की घोषणा करना अब भी दुर्लभ बना हुआ है। सांसदों में अब भी इस मुद्दे पर आम राय नही बन पाई है। लोकसभा को बिना देर किए आचार समिति के सुझाए गए बदलावों को शामिल करना चाहिए। उच्च सदन ने 2005 में अपनी समिति के सुझाव पर सदस्यों के हितों का रजिस्टर बनाने का फैसला किया था। हमारे देश में बहुत से सांसद अपने हितों से जुड़े मुद्दों पर ही संसदीय कार्य में से हिस्सा लेने के लिए जाने जाते हैं। यह रवैया विकसित लोकतांत्रिक देशों में प्रतिबंधित है। हमें इस बात पर भी जोर देना चाहिए कि दोनों सदन सांसदों द्वारा दर्ज किए गए हितों को प्रकाशित-प्रसारित करें। जनता के लिए एक सांसद की संपत्ति और जवाबदेही से ज्यादा अपने सांसद के हित जानना जरूरी है। इसमें उनके शेयरों में निवेश भी शामिल है। इस संबंध में सख्त नियमों के बिना सांसद संसदीय संसाधनों और विशेषाधिकारों का अपने हित साधने के लिए दुरुपयोग करते रहेंगे। हम जितना जल्द इन उपायों को अपना लेंगे, उतना ही बेहतर होगा। केवल तभी दुनिया को यह संदेश जा सकेगा कि हम न सिर्फ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं, बल्कि ऐसे लोकतंत्र हैं जो जनता का प्रतिनिधित्व करने वालों से आचार संहिता का पालन कराते हैं।



लेखक ए. सूर्यप्रकाश वरिष्ठ स्तंभकार हैं

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Tag: सांसद, राज्यसभा, उच्च सदन,संसद सदस्यों,लोकसभा,MP, Rajya Sabha, Upper house, Members of Parliament, Lok Sabha

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