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जल्दी से वे सारी फाइलें निकाल कर रखो, जिन्हें पिछले महीने चूहे कुतर गए थे, साहब वे सारे मुद्दे मीटिंग में डिस्कस करना चाहते हैं। टीवी टूटा तो क्या हो गया, ऐसा कीजिए कि आप दूसरी शादी कर लीजिए, क्योंकि मुझे तो मेरा टीवी दहेज में ही मिला था। ऐसे तमाम कटाक्ष भरे, लेकिन खिल-खिलाकर हंसा देने वाले डायलॉग सुनते ही याद आता है नब्बे के दशक का टेलीविजन युग और साथ ही उन्हें मिसडायरेक्ट करने वाली शख्सियत जसपाल भट्टी। गुरुवार तड़के एक सड़क हादसे में जसपाल भट्टी की असमय मृत्यु ने सबको सदमे में डाल दिया। वैसे तो किसी भी शख्स का दुनिया छोड़ देना अपने आप में दुखद होता है, लेकिन जसपाल भट्टी जैसे हास्य कलाकार को खो देना कॉमेडी जगत के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है।
जसपाल भट्टी का फ्लाप शो एक ऐसा शो रहा है, जिसे देखते हुए हमारी आज की पीढ़ी बड़ी हुई। आज के समय में जिस तरह की कॉमेडी अपनी जगह बना रही है, हमें भट्टी की बहुत जरूरत थी। हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने भी उनकी मृत्यु पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि आज लोग हास्य नहीं, उपहास करते हैं। जसपाल भट्टी के तमाम हास्य धारावाहिकों को देखकर यह साफ हो जाता है कि जिन मुद्दों को लोग आज जोर-शोर से उठा रहे हैं, चाहे वे समाजिक कुरीतियां हों, राजनीति और प्रशासन में व्याप्त भ्रष्टाचार हो, वे उन्हें बहुत पहले ही अपनी कॉमेडी का विषय बनाकर लोगों के सामने पेश कर चुके थे। अपने शुरुआती दिनों में उन्होंने बतौर कार्टूनिस्ट भी काम किया। जसपाल भट्टी की कॉमेडी का मकसद केवल हंसाना भर ही नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त बुराइयों से लोगों को अवगत कराना था। उन्हीं बुराइयों से समाज को हंसते-हंसाते निजात दिलाना उनकी जिंदगी का मकसद हो गया। राजनीतिक भ्रष्टाचार, खेल, महंगाई या किसी भी सामाजिक कुरीति से संबंधित खबर आने पर अपने ग्रुप के साथ चंडीगढ़ में स्ट्रीट प्ले और कटाक्ष भरी कविताएं गाकर लोगों का ध्यान आकर्षित करते हुए उन्हें देखा जा सकता था।
जसपाल भट्टी एक ऐसा ही स्ट्रीट प्ले करते हुए तब देखा गया था, जब अचानक गैस के दाम बढ़ा दिए गए थे। भट्टी और उनके साथी गैस हो गई महंगी, रोटी खा लो जी तंदूर की गाते हुए आगे बढ़ रहे थे। गाने को और भी हास्यास्पद बनाने के लिए उसमें एक नकली तंदूर पर रोटी सेंकते हुए कलाकारों को देखा जा सकता था। जिस समय पूरा भारत लोकपाल बिल लाने के लिए आंदोलन कर रहा था और सरकार पर जोर डाल रहा था, उस समय जसपाल भट्टी ने बिल को न लाने पर कटाक्ष करते हुए सेव द करप्ट बिल नाम से स्ट्रीट प्ले किया था, जिसमें बहुत हास्य पैदाकर समाज और सरकार को आईना दिखाया गया था। आज के दौर में टीवी पर आने वाले कॉमेडी शोज में किस तरह कॉमेडी के नाम पर फूहड़ता पेश की जाती है, सभी जानते हैं। लड़कियों को महज मनोरंजन की एक वस्तु के तौर पर पेश कर और आपत्तिजनक कमेंट करने तक को कुछ टीवी कार्यक्रमों ने कॉमेडी मान लिया है। इस तरह कॉमेडी का यह एक ऐसा ट्रेंड बनाया गया कि लोग पूरे परिवार के साथ टीवी के सामने बैठ भी नहीं सकते। यह जसपाल भट्टी ही थे कि उन्होंने खुद को इन सब का हिस्सा नहीं बनाया, बल्कि अपने ही अलग अंदाज पर आगे बढ़ते रहे। यह उनकी खुद की एक स्टाइल थी, जिसमें वे सब कुछ उल्टे तरीके से पेश करते थे। चाहे वह कार्यक्रम के आखिर में आने वाले अभिनेताओं के नाम के आगे अभिनय की जगह कृत्रिम अभिनय, कैमरा वालों के नाम के आगे कैमरा जंप या एडिटिंग जर्क्स लिखना उनके इस अंदाज की खासियत थी। साथ ही किसी गलत बात पर कटाक्ष करते वक्त वे उस बुराई को बढ़ावा देने की बात करते, जो समाज के सामने उसके उस बुरे हिस्से को और भी अच्छे से उजागर करता था। चाहे वह उनका घोटाले करने का हक हो टेंपल ऑफ करप्शन नाम का कैंपेन हो या भ्रष्ट लोगों को बचाओ नाम का स्ट्रीट प्ले, साफ है कि भट्टी इस तरह विषय को व्यंग्य के साथ-साथ उसकी गंभीरता को और भी अच्छे ढंग से पेश कर पाते थे।
अब भी पॉवर कट फिल्म जो दुर्भाग्यवश उनकी आखिरी फिल्म रही, उसके प्रोमो में भी उनके नाम के आगे मिसडायरेक्टेड लिखा पढ़ा जा सकता है। अगर जसपाल भटटी का मकसद केवल हंसाना और अभिनय करना होता तो वे किसी भी विषय पर इस तरह से उभरकर सामने नहीं आते। वे अपना एक नॉनसेंस क्लब भी चलाते थे, जिसके कलाकारों के साथ वे भ्रष्टाचार और सामाजिक बुराइयों पर स्ट्रीट प्ले करते थे और लोगों को हंसाते हुए विषय की गंभरीरता से अवगत कराते थे। कुल मिलाकर कहा जाए तो एक कलाकार का मकसद सिर्फ अभिनय करना भर ही नहीं होता, बल्कि अपने उस काम के जरिये समाज की भलाई में अपनी हिस्सेदारी भी देना होता है। लेकिन आज प्रदर्शित होने वाली कॉमेडी अपने बीते समय के उद्देश्य से भटकी हुई नजर आती है। हर जोक दो दिन बाद पीजे (पुअर जोक) हो जाता है, क्योंकि हम अब कम से कम ऐसी कॉमेडी बना पाने में असमर्थ हैं, जो हर समय जिंदा रहे। ऐसे में जसपाल भट्टी के व्यंग्य और फ्लाप शो जैसे कार्यक्रम याद आते हैं, जो आज भी उतना ही मनोरंजन करते हैं, जितना उस समय। जाहिर है, ऐसे समय में तो जसपाल भट्टी की कला जगत को बेहद जरूरत थी। यह एक बहुत बड़ी क्षति है और हमारे समकालीन कलाकारों को चाहिए कि वे जसपाल भट्टी के कार्यो से प्रेरणा लें और कॉमेडी के उस दौर को एक बार फिर से दोहराएं। यही हमारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
लेखिका आशिमा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
Tag:जसपाल भट्टी, कॉमेडी, हास्य कलाकार, कॉमेडी जगत, मृत्यु, चंडीगढ़ , कला जगत, सच्ची श्रद्धांजलि, असमय मृत्यु,
Chandigarh, India.
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