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अपने सौवें वर्ष में प्रवेश कर रहे भारतीय सिनेमा के इतिहास पर अगर नजर डाली जाए तो कुछ ऐसे तथ्य हमारे सामने आते हैं जिन्हें जानना हर बॉलिवुड प्रशंसक के लिए बेहद जरूरी है. पिछले सौ वर्षों में बॉलिवुड ने विभिन्न प्रकार के उतार-चढ़ावों का सामना किया है. इसके अलावा बहुत सी ऐसी घटनाएं भी घटीं जो सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर बन गईं, जैसे:
भारत के पहले डेली सोप और सेंसरशिप की शुरुआत: सिनेमा के प्रारंभिक युग में जो भी फिल्में बनती थी वह पौराणिक और आध्यात्म विषयों पर ही आधारित होती थीं. यही वजह है कि भारत का अपना पहला धारावाहिक जिसका नाम राम वनवास था, भगवान राम के जीवन पर आधारित था. इस धारावाहिक का निर्माण श्रीराम पाटनकर ने किया था. यह सीरियल चार अलग-अलग भागों में बनाया गया था. वर्ष 1918 में ब्रितानी एक्ट की तर्ज पर भारत में भी सेंसरशिप की शुरुआत कर फिल्मों के लिए सेंसरशिप और लाइसेंसिंग की व्यवस्था की गई थी.
पहली सामाजिक हास्य फिल्म: यह वह दौर था जब भारतीय लोगों पर भी पाश्चात्य संस्कृति हावी हो चुकी थी. ब्रिटिश शासन काल के अंतर्गत रहने के कारण भारतीयों का रहन-सहन पूरी तरह विदेशी हो गया था. भारत की पहली हास्य फिल्म की पटकथा भी इसी विषय पर आधारित थी. द इंगलैंड रिटर्न नाम की इस फिल्म का निर्माण धीरेन गांगुली ने किया था. फिल्म की कहानी एक ऐसे भारतीय पर केंद्रित थी जो बहुत लंबे समय बाद विदेश से अपने देश लौटता है. वापस लौटने के बाद उसके साथ क्या-क्या घटनाएं घटती है उसे व्यंग्यात्मक तरीके से प्रदर्शित किया गया था.
समाज हित में बनी पहली फिल्म: मराठी निर्माता बाबूराव पेंटर ने पहली सोशल फिल्म का निर्माण किया था. सवकारी पाश’ नाम की इस फिल्म की कहानी एक गरीब किसान और धूर्त जमींदार पर आधारित थी. फिल्म में एक लालची जमींदार एक किसान को उसकी जमीन से बेदखल कर देता है. गरीबी से लड़ता उस किसान का परिवार शहर पहुंचकर मजदूरी करने लगता है. इस फिल्म में गरीब किसान का किरदार वी. शांताराम ने निभाया था.
स्वदेशी फिल्म कंपनियों का आगमन और टॉकीज की शुरुआत: वर्ष 1929 में वी. शांताराम द्वारा कोल्हापुर में प्रभात कंपनी की स्थापना की गई. इसके अलावा चंदूलाल शाह ने बंबई में रंजीत फिल्म कंपनी का शुभारंभ किया. अपने 27 वर्षों के सफर में प्रभात कंपनी ने 45 फिल्मों का निर्माण किया वहीं 1970 के दशक तक रंजीत स्टूडियो फिल्मों का निर्माण करता रहा.
फिल्मों में प्लेबैक सिंगिंग की शुरूआत: फिल्मों के शुरुआती चरण में नायक-नायिका स्वयं गीत गाते थे. उन्हें अभिनय के साथ-साथ गायन पर भी ध्यान देना होता था. वर्ष 1935 में पहली बार नितिन बोस ने धूप-छांव फिल्म के जरिए प्लेबैक सिंगिंग की तकनीक विकसित की.
स्वप्न दृश्य को दिखाती पहली फिल्म: राजकपूर और नर्गिस अभिनीत फिल्म आवारा, जिसे वर्ष 1951 में प्रदर्शित किया गया था. इसमें पहली बार नायक और नायिका को स्वप्न में गीत गाते दिखाया गया था. यह अपनी तरह का पहला प्रयोग था. फिल्म का बहुचर्चित गाना घर आया मेरा परदेसी में राज कपूर और नर्गिस सपने में गाते हैं.
फिल्म में पहली बार फ्लैशबैक का प्रयोग: वर्ष 1934 में प्रदर्शित फिल्म रूपलेखा में पहली बार फ्लैशबैक का प्रयोग किया गया था. इस फिल्म में पी.सी. बरुआ और जमुना मुख्य भूमिका में थे. फिल्म के बाद इन दोनों ने विवाह भी कर लिया था. जमुना, पी.सी बरुआ की फिल्म देवदास में पारो भी बनी थीं.
पहली सेंसर्ड फिल्म: ऑर्फंस ऑफ द स्टॉर्म पहली ऐसी फिल्म थी जिस पर सेंसर की कैंची चलाई गई थी.
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