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गालिब की रूह को जिंदा करने वाली हुस्न की मल्लिका सुरैया की कहानी !!

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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भारतीय सिनेमा के इतिहास में कई ऐसी अभिनेत्रियों के नाम दर्ज हैं जिन्होंने अपने हुस्न और सादगी के बल पर दर्शकों के दिलों पर राज किया. आज भले ही भारतीय फिल्म इंडस्ट्री ग्लैमर और तकनीकों की पर्यायवाची बन गई है लेकिन एक समय ऐसा भी था जब फिल्में सिर्फ उम्दा अदाकारी और लाजवाब संगीत के बल पर चलती थीं. सिनेमा के उस स्वर्णिम काल में सुरैया एक ऐसी अभिनेत्री थीं जिसे ना सिर्फ अपनी सुंदरता के बल पर पहचाना जाता था बल्कि उनकी नजाकत और सादगी को फिल्म प्रशंसक आज भी एक आदर्श के रूप में ही देखते हैं.


suraiyaसामान्य दर्शक तो उनकी खूबसूरती और अभिनय के कायल थे ही देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी खुद को उनके जादू से बचा नहीं पाए. वर्ष 1954 में मिर्जा गालिब फिल्म में जमील शेख उर्फ सुरैया ने इतना बेहतरीन अभिनय किया कि तत्कालीन प्रधानमंत्री भी उनकी तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाए और उन्होंने सुरैया से कहा कि इस फिल्म में तुमने गालिब की रूह को जिंदा कर दिया है.


अभिनय के साथ-साथ अपनी गायकी से भी दर्शकों को अपना दीवाना बनाने वाली हुस्न और सादगी की मिसाल सुरैया का जन्म 15 जून, 1929 को तत्कालीन पंजाब के गुंजरावाला शहर में हुआ था. सुरैया अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं. उन्होंने कभी भी गायकी का प्रशिक्षण नहीं लिया लेकिन फिर भी वह इतना अच्छा गाती थीं कि उनकी आवाज सुनने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते थे. बतौर बाल कलाकार फिल्मों में प्रवेश करने वाली सुरैया को पहचान उस समय के मशहूर खलनायक चाचा हुजूर की मदद से मिली. ताजमहल फिल्म की शूटिंग देखने गई सुरैया की मुलाकात फिल्म के निर्देशक से हुई और उन्होंने सुरैया को अपनी फिल्म में मुमताज महल के किरदार के लिए चुन लिया. नौशाद के संगीत निर्देशन में पहली बार कारदार साहब की फिल्म शारदा में सुरैया को गाने का मौका मिला. वर्ष 1945 में प्रदर्शित फिल्म तदबीर में के.एल. सहगल के साथ काम करने के बाद फिल्म इंडस्ट्री में उनकी पहचान स्थापित हो गई. सुरैया ने सहगल के साथ ही उमर खय्याम (1946) और परवाना (1947) जैसी फिल्म में भी अभिनय किया. वर्ष 1949-50 में सुरै


फिल्म अफसर की शूटिंग के दौरान देवानंद का झुकाव फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर हो गया था. सुरैया देवानंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगीं, लेकिन सुरैया की नानी की इजाजत न मिलने पर यह जोड़़ी विवाह बंधन में नहीं बंध सकी और वर्ष 1954 में देवानंद ने उस जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली. इससे आहत सुरैया ने आजीवन कुंवारी रहने का फैसला ले लिया.


वर्ष 1950 से लेकर 1953 तक का समय सुरैया के लिए किसी बुरे वक्त से कम नहीं रहा. लेकिन वर्ष 1954 में प्रदर्शित फिल्म मिर्जा गालिब और वारिस की सफलता ने सुरैया एक बार फिर से फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गईं. फिल्म मिर्जा गालिब को राष्ट्रपति के गोल्ड मेडल पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया.


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