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इन्होंने भी मान लिया कि ‘औरत बेची जाती है’

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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हसीनाओं के हुस्न का दीवाना कौन नहीं है शायद इसलिए जब भी किसी भी चीज को सुपरहिट कराना होता है तो हसीनाओं का इस्तेमाल किया जाता है. एक क्रीम बेचने से लेकर फिल्म को सुपरहिट कराने तक के सफर के बीच हसीनाओं के हुस्न का प्रयोग किया जाता है. हां, यह बात अलग है कि कभी-कभी स्वयं हसीनाएं भी अपने हुस्न का प्रयोग कराती हैं. राजस्‍थान की राजधानी जयपुर में आयोजित हुए लिटरेचर फेस्टिवल में फिल्मी दुनिया के कामयाब लेखक, निर्देशक यहां तक कि अभिनेत्रियों ने भी यह बात मानी है कि फिल्मी दुनिया में औरत के हुस्न का प्रयोग किया जाता है और साथ ही इस बात को भी माना है कि बॉलीवुड का कल, आज से कहीं ज्यादा बेहतर था.

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शबाना और प्रसून फिल्मी पर्दे से नाराज

बॉलीवुड की कामयाब अभिनेत्री शबाना आजमी और गीतकार प्रसून जोशी ने फिल्मों में महिलाओं को एक वस्तु बनाकर निवेश की बात की. गीतकार प्रसून जोशी विवादों के घेरे में फंस गए थे जब उन्होंने कहा कि कृष्ण ईव टीजर थे. अगर आज के जमाने से उनकी तुलना करें तो वे लड़कियों से छेड़छाड़ के दोषी पाए जाएंगे और मां के रिश्ते का महिमामंडन इतना ज्यादा किया गया है कि इसने औरत से उसकी निजता ही छीन ली है. शबाना आजमी ने फिल्म निर्माताओं की नीयत पर सवाल उठाए और कहा कि वे औरत की सही छवि पेश नहीं करते हैं.


शबाना ने बॉलीवुड में बहुत सी फिल्में की हैं और वो यही मानती हैं कि फिल्मी पर्दे पर निर्देशकों ने नारी को जिस रूप में दिखाया है वो रूप बहुत हद तक सही नहीं हैं. शबाना आजमी का कहना है कि ‘फिल्म के हीरो राजेश खन्ना पति की भूमिका में पत्नी से कहते हैं: नीमा ये याद रखो कि पति के घर का दु:ख भी मायके के सुख से बेहतर हो सकता है’. यथार्थ में हालांकि ऐसा ही है किंतु बहुत सी नारियां ऐसी हैं जो हकीकत को नजरअंदाज करके भ्रम में जीती हैं और मायका बनाम ससुराल में कौन ज्यादा प्रिय है, इस पर बहस करती हैं. वस्तु स्थिति और कल्पना का जो फर्क है उसे फिल्मों ने मिटाने की कोशिश की है जो समाज के लिए सही नहीं है.

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जावेद अख्तर – अब पर्दे पर वो बात नहीं

गीतकार जावेद अख्तर भी फिल्मी दुनिया में हुए बदलावों से थोड़ा नाराज हैं. उनका कहना है कि समाज और संस्कृति में जो बदलाव आए हैं उन सभी परिवर्तनों को निर्देशकों ने फिल्मी पर्दे पर उतार कर बॉलीवुड की फिल्मों के स्तर को काफी कम कर दिया है. जावेद अख्तर ने फिल्म के निर्देशन के साथ-साथ फिल्मी गजल में हुए बदलाव को भी गलत बताया. जावेद अख्तर का मानना है कि फिल्मी पर्दे पर निर्देशन को लेकर जो बदलाव आए हैं उन बदलावों के कारण ही फिल्मी गीत भी प्रभावित हुआ है. जावेद अख्तर ने फिल्मी गीतों में हुए बदलाव को यह कहकर स्पष्ट किया कि जैसे पहले के गीतों में ‘प्यार, जिंदगी, अहसास,  दोस्ती, उम्मीदें’ जैसे शब्द होते थे पर आज हॉंट, बेबी, सेक्स जैसे शब्द ही फिल्मी गीतों में रह गए हैं.

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