दावा है कि आप मीना कुमारी के बारे में यह नहीं जानते होंगे
हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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मीना कुमारी हिन्दी सिनेमा का एक ऐसा नाम रही हैं जिन्हें उनके चाहने वाले आज भी याद करते हैं. ट्रैजेडी क्वीन के नाम से मशहूर मीना कुमारी की अदाकारी और भाव इतने सशक्त थे कि जब फिल्म के सीन पर वह कभी अपने ही दुखों पर हंसती थीं तो दर्शक रोना शुरू कर देते थे. मीना कुमारी ने छह साल की छोटी उम्र से ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था. 1952 में विजय भट्ट की फिल्म ‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी को बतौर अभिनेत्री फिल्मी दुनिया में स्थापित किया और इस फिल्म की लोकप्रियता के बाद उनके अभिनय की तारीफें चारों तरफ होने लगीं. ‘दायरा’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘परिणीता’, ‘चन्दन का पालना’, ‘भीगी रात’, ‘पाकीजा’ और ‘साहिब बीवी और गुलाम’ जैसी मशहूर फिल्मों ने मीना कुमारी को रातों-रात सुपरस्टार बना दिया. अब हम आपको बताएंगे कुछ ऐसी बातें जो शायद आप मीना कुमारी के बारे में नहीं जानते होंगे:
अंधेरी रात हो रही थी और मुंबई के एक क्लिीनिक के बाहर ‘मास्टर अली बक्श’ नाम के एक शख्स अपनी तीसरी औलाद के जन्म का इंतजार कर रहे थे और करते भी क्यों नहीं? उस तीसरी औलाद के जन्म से पहले उनकी दो बेटियां थीं. अचानक से एक बच्चे की रोने की आवाज आती है और जब वो उस बच्चे को देखते हैं तो वह माथा पकड़ कर बैठ जाते हैं क्योंकि फिर तीसरी बार उनकी पत्नी ने किसी बेटी को जन्म दिया होता है.
फिर क्या था मास्टर अली बक्श अपनी तीसरी बेटी को अनाथालय छोड़ आये लेकिन बाद में उनकी पत्नी ‘इकबाल बानो’ के आंसुओं ने बच्ची को अनाथालय से घर लाने के लिये उन्हें मजबूर कर दिया. मां इकबाल बानो ने अपनी तीसरी बेटी का सुन्दर सा चेहरा देख उसका नाम ‘माहजबी’ रखा और वो ही छोटी सी बेटी बड़ी होकर मीना कुमारी बनी.
मीना कुमारी ट्रैजेडी क्वीन के नाम से जानी जाती थीं और उनकी बचपन में आंखें छोटी होने के कारण उनको उनके परिवार के लोग ‘चीनी’ भी कहते थे. प्रकाश पिक्चर के बैनर तले बनी फिल्म ‘लैदरफेस’ के कारण ही उनका नाम बेबी मीना हुआ और बाद में फिल्म ‘बच्चों का खेल’ के कारण उनका नाम मीना कुमारी कर दिया गया. मीना कुमारी के पति ‘कमाल अमरोही’ उन्हें बेहद प्यार करते थे और वो उन्हें मंजू नाम से बुलाया करते थे.
एक बार मीना कुमारी उदास बैठी हुई थीं और मशहूर गीतकार गुलजार ने उनसे पूछा कि ‘उनके ऐसे उदास बैठने का कारण क्या है’ ? तो मीना कुमारी ने बड़े ही प्यार भरे शब्दों के साथ गुलजार से कहा कि ‘यह अभिनय भी कैसी कला है ? कहानी किसी की, निर्देशन किसी का और किरदार कोई और करता है भला इससे बेहतर तो शायरी है जो दिल में आए लिख दो’. मीना कुमारी ने अपनी सभी शायरी छपवाने का कार्य गुलजार के हाथों सौंप दिया और गुलजार आज भी इस बात पर गर्व करते हैं कि वो उस समय में उनके साथ थे. यही वो समय था जब मीना कुमारी का नाम नाज पड़ गया था क्योंकि वो अपनी शायरी में नाज नाम के उपनाम का प्रयोग करती थीं.
ट्रैजेडी क्वीन मीना कुमारी को कभी भी प्यार की मंजिल नहीं मिली इसलिए शराब और नशे की आदतों ने उन्हें घेर लिया. शराब और नशे के कारण ही 31 मार्च, 1972 को मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया. फिल्म साहिब बीवी और गुलाम जैसी सर्वश्रेष्ठ फिल्म के लिए मीना कुमारी को फिल्म फेयर अवार्ड मिला था. हिन्दी सिनेमा को कितने साल ही क्यों ना हो जाएं पर वहां की गलियों से मीना कुमारी का नाम गूंजता है जब कोई अभिनेत्री यह कहती है कि उसको ‘मीना कुमारी जैसा अभिनय’ करना है.
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