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वक्त भी इन फिल्मों की परछाई नहीं बना सकता !!

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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कहते हैं कि यदि किसी काम को करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़े तो सही समय आने पर उस काम को किया जा सकता है पर हिन्दी सिनेमा की कुछ फिल्में ऐसी हैं जो समय के बंधन से परे हैं. मतलब यह है कि हिन्दी सिनेमा ने कुछ ऐसी फिल्में समाज को दी हैं जिनका रीमेक बनाना किसी भी निर्देशक के बस में नहीं है. मदर इंडिया, प्यासा, चलती का नाम गाड़ी, मुगल-ए-आजम, गुमनाम, आराधना, हरे रामा हरे कृष्णा, दीवार और आनंद जैसी तमाम फिल्में ऐसी हैं जिनका रीमेक बनाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

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विद्या बालन आज हिन्दी सिनेमा की मशहूर अभिनेत्रियों में से एक हैं और उन्होंने ‘परिणीता’ के रीमेक से फिल्मी दुनिया में कदम रखा था पर आज उनका कहना यह है कि ‘हिन्दी सिनेमा की बहुत सी फिल्में ऐसी हैं जिनका रीमेक कभी भी नहीं बनना चाहिए. फिल्मकार महबूब खान की ऑस्कर के लिए नामांकित फिल्म ‘मदर इंडिया’ का रीमेक बनाना संभव नहीं है और यदि कोई इसे बनाने की कोशिश करता है तो वह इस फिल्म का हिस्सा नहीं होगा. चलिए आपको बताते है कि हिन्दी सिनेमा की वो फिल्में कौन सी हैं जिनका रीमेक कभी भी नहीं बनना चाहिए:


Mughal-E-Azam

100 years of indian cinemaमुगल-ए-आजम: प्रेम की अमर कहानी

पांच अगस्त साल 1960 में फिल्म मुगल-ए-आजम फिल्मी पर्दे पर रिलीज हुई थी और आज जब हिन्दी सिनेमा को 100 साल होने जा रहे हैं तब भी इस फिल्म का जादू बरकरार है. फिल्म मुगल-ए-आजम में कांच से बना ‘शीश महल’ का सेट एक अनोखा फिल्म सेट था और इस फिल्म में अभिनेता पृथ्वीराज कपूर ने अकबर के किरदार को बखूबी निभाया था. नौशाद के संगीत के साथ-साथ दिलीप कुमार और मधुबाला की जोड़ी ने इस फिल्म को भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक मील का पत्थर बना दिया.


प्यासा(Pyaasa): एक अनोखी कहानी

साल 1957 में आई फिल्म ‘प्यासा’ हिन्दी सिनेमा की उन फिल्मों की लिस्ट में शामिल है जिसका रीमेक बनाने की खता हिन्दी सिनेमा का कोई निर्देशक नहीं कर सकता है. हल्की-फुल्की क्राइम थ्रिलर और कॉमेडी फिल्में बनाने वाले गुरुदत्त ने ‘प्यासा’ बनाकर सबको चौंका दिया था. इसी फिल्म से गुरुदत्त एक बेहद संवेदनशील फिल्मकार के रूप में सदा के लिए इतिहास में दर्ज हो गए.

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jagran junctionफिल्म पाकीजा(Pakeezah)

हिन्दी सिनेमा के मशहूर निर्देशक कमाल अमरोही जैसे अंदाज की फिल्में किसी भी अन्य निर्देशक के लिए बना पाना मुश्किल है. वे अपनी गति से फिल्में बनाते थे और उनकी फिल्में भी अपनी ही गति से चलती थीं. अपने लंबे कॅरियर में उन्होंने बतौर निर्देशक महज चार फिल्में बनाईं: ‘महल’, ‘दायरा’, ‘पाकीजा’ और ‘रजिया सुलतान’. इन फिल्मों में ‘पाकीजा’ उनकी सबसे मशहूर फिल्म है बल्कि कहना चाहिए कि उनकी पहचान है. कमाल अमरोही ने अपनी तीसरी पत्नी मीना कुमारी के साथ 1956 में फिल्म ‘पाकीजा’ की शूटिंग शुरू की थी लेकिन 1964 में जब दोनों के रास्ते अलग हुए तो फिल्म की शूटिंग भी रुक गई. साल 1972 में जाकर फिल्म पाकीजा रिलीज हुई और रिलीज होने के साथ ही बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट हो गई.


फिल्म शोले(Sholay)

साल 1975 में निर्माता जी.पी. सिप्पी द्वारा निर्मित “शोले” आज तक बनी हिन्दी फिल्मों में सबसे अधिक प्रिय फिल्म है और इसकी लोकप्रियता का अनुमान सिर्फ इसी से लगाया जा सकता है कि यह फिल्म मुंबई के मिनर्वा टाकीज़ में 286 सप्ताह तक लगातार चलती रही थी.

इनका जादू कहीं भी आग लगा सकता है !!

दमदार फिल्मों का रीमेक बनता है !!


शोले, पाकीजा, प्यासा, मुगल-ए-आजम


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