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आम चुनावों के इस मौसम में सभी पार्टियों, नेताओं, और मीडिया तक को पारदर्शी हमाम में नहला दिया है| अब हमाम में लोग कैसे होते हैं ये हम क्यों बताएं भाई!
सबसे पहले मीडिया की बात कर लेते हैं [क्योंकि बात करने का ठेका तो मीडिया का ही है]
लोकतंत्र के इस चौथे स्तम्भ पर इससे पहले इतनी दीमक कभी नहीं दिखी थी| इसने एक बार जो बिना झाग वाले इस हमाम में गोटा लगाया तो निकला ही नही| आज हालात यह है कि मीडिया के अंग-प्रत्यंग की थ्री-डी तस्वीरें जनता के मानस पटल पर अंकित हो चुकी हैं| चुनाव के परिणाम कुछ भी हों परन्तु जब इस दौर का इतिहास लिखा जाएगा तो यह दौर मीडिया की ताकत का बेजा इस्तेमाल और गैरजिम्मेदाराना पत्रकारिता के लिए जाना जायेगा|
२०१४ के लोकसभा चुनाव में चर्चा, संवाद, और रिपोर्टिंग के नाम पर जो नंगई और तमाशा किया गया उसके बीच पत्रकारिता और ईमानदारी को छोड़कर बाकी सबकुछ नजर आया| इलेक्ट्रानिक मीडिया की बढ़ती ताकत का प्रयोग लोकतंत्र को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकता था परन्तु टी०आर०पी० को छोड़कर बाकी किसी भी मुद्दे पर ना तो मीडिया गंभीर रहा और ना ही इसके कैमरे की निगाह वहां पहुंची जहाँ से लोकतंत्र को बल मिलता| कुछेक प्रस्तुतकर्ताओं और रिपोर्टरों को छोड़ दें तो अधिकतम सारे मीडिया एंकर सिर्फ और सिर्फ न्यूज एक्टर और न्यूज एक्ट्रेस नजर आये जिन्होंने भ्रस्ट नेताओं की तरह ही लटके-झटके और भाँति-भाँति के भाव-भंगिमाएं बनाकर किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के पक्ष या विपक्ष में प्रचार/कैम्पेन किया| कुछ न्यूज एक्टर/ऐक्ट्रेस ने तो जनता की आवाज को सीधे-सीधे नकारते हुए बेशर्मी से भरे हुए वक्तव्य और मंशा प्रकट करने में भी झिझक नहीं दिखाई| पत्रकारिता की संजीदगी निरर्थक टी० वी० बहस और लाईट, कैमरा, एक्शन में कब और कहाँ खो गई पता ही नही चला|
पार्टियों के एजेंडे और नीतियां इस आम चुनाव में कहीं मुद्दा बनते नजर नहीं आये| सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के मेनिफेस्टो सामने आये जिन्हे न तो समझने की कोशिश की गई न समझाने की| दुखद बात यह है कि स्वयं को सेकुलरिज़्म की आका घोषित कर चुकी कांग्रेस भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के भरोसे अपनी लाज ढकने की कोशिश करते नजर आ रही है| शेष सारी पार्टियां किसी न किसी तरह जातियों और सम्प्रदायों को बांटने और वोट बैंक पर कब्ज़ा करने के लिए लुंगी डांस करते रहे वो भी बिना लुंगी के|
नेताओं ने हर तरह की लफ्फाजी, बदतमीजी और अनर्गल प्रलाप की जबरदस्त प्रैक्टिस की| आचार संहिता जैसी किसी चीज से किसी नेता का दूर-दूर तक वास्ता नहीं रहा और ऐसा करने में राष्ट्र की एकता, अखंडता और भाईचारा तार-तार होकर बिखरते रहे और हमाम गुलजार होता रहा|
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