Menu
blogid : 1755 postid : 859184

बिटिया के प्रश्न (पिता के उत्तर)

चातक
चातक
  • 124 Posts
  • 3892 Comments


बिटिया की आँखों से प्रश्न छलकते हैं बहुतेरे;
होठों तक कुछ आते हैं और घुट जाते बहुतेरे|
शायद सब्र का बाँध आज टूटा यूँ बिटिया तेरा;
जैसे रोष से भरी दामिनी पर मेघों का घेरा|
तेरे हर सवाल का उत्तर समय कदाचित देता;
धैर्य जो तू न खोती तो शायद मैं उपकृत होता|
सिर्फ पिता मैं नहीं तेरा, न जननी तेरी माता;
तेरी खातिर बने गुरु, सेवक, संरक्षण दाता|
हर सवाल हैं जहर बुझे नश्तर सम बिटिया तेरे;
दिल को चाक किया फिर भी हम हैं आभारी तेरे|
जन्म हुआ जब तेरा तो हम हर्षाये, मुस्काए;
कदम बढ़ाये जब तूने हम फूले नहीं समाये|
तेरी सारी इच्छाओं को नजरों से पढ़ते थे;
अपनी लाचारी पर रोज कहानी हम गढ़ते थे|
मौन तेरा जब भी देखा, दिल रोया, आँख न रोई;
ख्वाब तेरे पूरे करने को, आँख न मेरी सोई|
माँ तेरी लोरी में गा कर सिखलाती मर्यादा;
जीवन का है मन्त्र यही जिसको तू समझी बाधा|
मर्यादा में पिता बंधा है, मर्यादा में माता;
मर्यादा में धरती, नभ, जीवन और स्वयं विधाता|
पिता नहीं मर्यादित तो परिवार बिखर जाता है;
माता मर्यादित न हो तो राष्ट्र बिखर जाता है|
धरती छोड़े मर्यादा तो बंजर कहलाती है;
अम्बर न हो मर्यादित तो सृष्टि कष्ट पाती है|
स्वयं विधाता मर्यादित होकर ही पूज्य बना है;
उसका त्याग मानवों से चौरासी लाख गुना है|
तुझे पराई कहकर माँ खुद को धोखा देती है;
हेतु तेरा, निज हृदय शिला विछोह का वो ढोती है|
बिटिया होती विदा उसे परिवार नया मिल जाता है;
जीवन साथी उसकी दुनिया में खुशियाँ ले आता है|
लेकिन माँ-बाबा जीवन भर टीस वही सहते हैं;
जिस विछोह से सिर्फ हृदय में आह के आंसू बहते हैं;
वस्तु नहीं तू जिसे किसी भिक्षुक को दान दिया है|
रत्न है तू जिसको हमने पूरा सम्मान दिया है;
तेरी हर अभिलाषा पूरी हो खुशियाँ ही बरसें;
भले हमारी नजर तेरी सूरत को हरपल तरसे|
छल प्रपंच से भरी ये दुनिया तुझे न छलने पाए;
तेरी खुशियों पर कोई भी दाग न लगने पाये|
हेतु इसी को बना तुझे सदमार्ग दिखाया हमने;
तेरी राह के हर कांटे पर हाथ बिछाया हमने|
तू न समझी माँ का रोना, न उसका हर्षाना;
अग्नि जिसे तू समझी उसका मर्म न तूने जाना|
बहकी अभिलाषाओं को तू ख़ुशी समझ बैठी है;
माता-पिता लगें बाधा, तू इसीलिए रूठी है|
हम नेता, न अभिनेता, न छलना, न रक्काशा;
मर्यादा है जीवन अपना, मर्यादा ही भाषा|
यही सिखाते, यही चाहते और चाहते तुझको;
भेंट चढ़ाना ध्येय नहीं, भेंट सर्वस्व समर्पित तुझको|

[बिटिया के प्रश्नों को जानने के लिए कृपया यहाँ क्लिक करें]

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh