Menu
blogid : 1755 postid : 221

विज्ञान एवं प्रकृति

चातक
चातक
  • 124 Posts
  • 3892 Comments

पर बाँध कल्पना के मानव,

छू ले तारों की ऊँचाई को,

वो चाँद चमकता गगन बीच,

आवाजें दे तरुणाई को,

सुन प्रकृति बुलाती है तुझको,

इसकी सरिता की ताल समझ,

इसका मुखमंडल दमके है,

आतुर तेरी अगुआई को,

अब ज्ञान का बंधन तोड़ के तू,

नादान समझ ये बात सही,

विज्ञान से रूठी सृष्टि कहीं,

ना दिखला दे निठुराई को,

जब ज्ञान बढ़ा, विज्ञान बढ़ा,

तो आयुध महाविनाश बढे,

ज्ञानी मानव तब छोड़ धर्म,

गह लिया लोभ चतुराई को,

तृष्णा को छोड़ निकल ‘चातक’,

कुदरत बाहें फैलाए खड़ी,

इसकी आगोश में बैठ भुला दे,

‘तृष्णा’ की तरुणाई को |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh