Menu
blogid : 1755 postid : 345

कौन रोकेगा बलात्कार

चातक
चातक
  • 124 Posts
  • 3892 Comments

‘बलात्कार’ एक ऐसा जघन्य अपराध जिसकी सजा कितनी भी कड़ी क्यों न हो कम होगी| हमारे देश के हालात तो इस मामले में बद से बदतर हो चले हैं| आप जितना ज्यादा शहरों और तथाकथित सभ्य नगरों की तरफ बढते चलें उतना ही ये ग्राफ बढ़ता जाएगा और महानगरों में इसकी संख्या असभ्य-आदिवासी इलाकों से भी ज्यादा नज़र आएगी| बलात्कार के विरुद्ध क़ानून हर रोज कड़े बनाए जा रहे हैं| पीडिता को दर्द से राहत देने के लिए मोटी रकम के तोहफे दिए जा रहे है, संभवतः इसके पीछे अभिजन सामाज की वह ओछी सोच जिम्मेदार है कि ‘पैसा ही सम्मान है’|

जो भी हो, एक बात स्पष्ट है कि इतनी कोशिशों के बावजूद हिन्दुस्तान में बलात्कारों की फेहरिश्त दिन-ब-दिन बढती जा रही है| हम ये सोच के बैठे रहें कि बलात्कार को रोकने का कोई प्रभावी क़ानून आ जायेगा या फिर बलात्कार की कोई चमत्कारिक दवा ईजाद हो जायेगी और उसे लगाते ही पीडिता का सम्मान पुनः वापस आ जायेगा तो फिर ये बुराई कभी दूर नहीं होगी| हमें इस समस्या पर गंभीरता से विचार करना होगा और कई तरह के निर्णय लेने होंगे| चूंकि ये बुराई सामाजिक है और इसे असामाजिक तत्व अंजाम देते है इसलिए फैसला समाज द्वारा होना चाहिए ‘ऑन दि स्पॉट’ बजाय इसके कि अदालत का चक्कर लगा के पीडिता अपने गवांए हुए सम्मान की कीमत ले|

दूसरी महत्वपूर्ण बात ये कि इस कृत्य के लिए कौन-कौन से लोग जिम्मेदार है- प्रथम-दृष्टतयः तो बलात्कारी स्वयं इसके लिए जिम्मेदार है और जिस तरह हम किसी पागल कुत्ते को जीने का हक नहीं देते उसी तरह इस समाज में एक बलात्कारी को भी जीने हक नहीं होना चाहिए| ठीक इसी तरह हमें उन कारकों पर भी ध्यान देना होगा जिनकी वजह से कोई आदमी बलात्कारी बन जाता है| कोई भी बच्चा बलात्कारी पैदा नहीं होता उसे कुछेक उद्दीपन बलात्कारी बनाते है| यहाँ पर मैं उन स्त्रीवादियों का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा जो दिन रात पुरुष जाति को कोसने का बीड़ा उठाये जी रहे हैं और इस घिनौने कृत्य का ठीकरा पुरुषों के अकेले माथे पर फोडकर ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है| आइये जरा कुछ कारणों पर नजर डालें के अधिकतम बलात्कारी कौन पैदा कर रहा है|

ग्रामीण क्षेत्रों में बलात्कार को अंजाम देने वाले ज्यादातर वहशी उन माताओं की संताने हैं जो खुले आम फूहड़ किस्म के मजाक करती हैं और जिनके घर में स्त्री पुरुष अश्लील, द्विअर्थी और आपत्तिजनक संवाद और आचरण करते हैं और ये भी ध्यान नहीं देते कि वहाँ पर कोई बच्चा या किशोर मौजूद है| इस तरह की हरकतें शहरी क्षेत्रों में भी देखीं गई हैं और इनका उद्दीपन सर्वाधिक अपने ही सगे सम्बन्धियों पर होने वाले बलात्कार को जन्म देता है|

शहरी क्षेत्रों में बलात्कार एवं सामूहिक बलात्कार के तीन बड़े कारण हैं –

(१) परिवार में माँ या बहिन का दुश्चरित्र या आडंबरपूर्ण होना- किशोरों और नवयुवकों में कुंठा ज्यादातर घर की महिलाओं के स्वछन्द आचरण जैसे अमर्यादित भाषा, संबंधों और पहिनावे में अत्याधिक खुलापन या घर की महिलाओं के नाजायज सम्बन्ध से उपजती है और वह बलात्कार जैसे जघन्य अपराध कर राहत का अहसास करता है |

(२) प्रेम में धोखा- आजकल प्रेम करने का तो सरकारी फरमान निकला है लिहाजा प्रत्येक नर एक अच्छी मादा और प्रत्येक मादा एक अच्छे नर की तलाश में दिन रात एक किये रहते हैं| अब तलाश दोनों ओर से जारी है तो फिर मिलने में देर कैसी ! लेकिन जब मादा कुछ दिनों के बाद किसी अन्य योग्य नर का हाथ थाम कर पहले को छोड़ देती है तो फिर एक कुंठा जन्म लेती है और ये उसे शराबी, कवि या बलात्कारी बना देती है| बलात्कारियों में एक बड़ी संख्या इन कुंठित मजनुओं की भी है|

(३) नशाखोरी- अधिकतर ऐसे परिवारों में जहाँ माता-पिता के पास बच्चों के लिए समय नहीं है, बच्चे नशे की ओर आकर्षित हो जाते हैं और नशे के साथ उन्हें मिलता है असामाजिक तत्वों का साथ| नशे के मद में तो देवता भी बलात्कारी बन जाता है इंसान की क्या बिसात है, खासकर तब जबकि युवतियां हूरों का लिबास पहनकर जलवे बिखेर रही हों |

मेरे इस लेख में दिए गए तर्कों का अभिप्राय बलात्कारी की तरफदारी नहीं है उसके लिए तो सिर्फ और सिर्फ सजाये-मौत (वो भी हो सके तो पीडिता के ही हाथों) है| मेरा अभिप्राय उन तथ्यों पर विचार करना है जिन पर ध्यान दे कर हम भविष्य में पैदा होने वाले बच्चों को बलात्कारी बनने से रोक सकें| क्योंकि मेरा मानना यही है कि बलात्कारी पैदा नहीं होता उद्दीपन द्वारा बनाया जाता है|

अभी भी यदि हम अपने लिए कठोर निर्णय लेने के लिए तैयार नहीं हैं तो फिर बलात्कार को न तो कोई क़ानून रोक पायेगा और न ही धन पीडिता का कष्ट कम कर पायेगा| समाधान है सिर्फ संयम! पुरुष के लिए भी और स्त्री के लिए भी जहां पुरुष स्त्री का सम्मान कर अपने बालकों को स्त्री का सम्मान करना सिखाएं वहीँ स्त्री स्वयं भी बात-बात पर कपडे उतारकर और लघु-वस्त्रों की नुमाइश कर अपने बच्चों को कुंठित और बलात्कारी को प्रेरित न करें|

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh