कटते आये हैं सदियों से एक बार और कट जायेंगे, इस गौरवशाली माटी को अपने खूँ से नहलायेंगे, हत्यारे बधिकों से कहना मेरे भाई का सर लाना, फिर कायर सम भर हुंकारी “मैं भी हिन्दू हूँ” चिल्लाना; ना लाज कभी आई तुमको न अब भी आने वाली है, बस जान की धमकी देने की ये अदा खूब ही पाली है ! क्या श्वानो के गुर्राने से कभी नाहर भला सहमता है ? या मेंढक के टर्राने से मेघों का हृदय लरजता है ? कहते हो खुद को हिन्दू हैं और गीता का कुछ ज्ञान नहीं! आक्रांता के भय से आक्रांत अपने ही बंधु का भान नहीं! ये क्षद्म दिव्य दृष्टि त्यागो और सरल सत्य का ध्यान करो, भाई के रक्त पिपासू बन मत माता का अपमान करो ! वो शौर्य था भारत माता का जो गुम्बद पर चढ़ कर बोला, वो धन्य पिता जिनके पुत्रों ने बाबर का अहंकार तोला | जो नहीं मिलाते मिटटी में नापाक इमारत बाबर की, तो आज भी होती सिसक रही हर एक गवाही मंदिर की | जो रक्त हो गया हो काला जो रगों में बहता हो पानी, तो फौज बुलाओ तुर्कों की और करो खूब फिर अगवानी | बस ये ही करते आये हो तुम फिर से एक इतिहास लिखो, फेहरिश्त में मकतूलों के फिर तुम अमानवीय संत्रास लिखो| क्यों नाहक धमकी देते हो, नेजों पर अपने सान धरो, मुंह से बस जपते रहो राम और बगल छुरी श्रीमान धरो! कर लो सारे उद्दयोग अभी कही कसर न कोई रह जाए, भाई न बचने पाए कदाचित देश ढहे तो ढह जाए | मिलकर भ्रात्र-हंताओं से कुछ और जख्म तुम दे देना, जिस धरा ने पाला है तुमको विष बीज उसी में बो देना | विष-वृक्ष उगे तो ‘अपना है’ कह कर संरक्षण दे देना, ‘काटों का पौधा है गुलाब’ मनवा कर तर्पण दे देना | गर गैरत थोड़ी है बाकी तो अपनों पर मरके देखो, हिम्मत है तो अरि के समक्ष एक सिंहनाद करके देखो| न लखन बन सको खेद नहीं पर यार विभीषण मत बनना, भाई के शव पर कभी शत्रु के हाथ ताज भी न गहना | भाई के शव पर कभी शत्रु के हाथ ताज भी न गहना |
This website uses cookie or similar technologies, to enhance your browsing experience and provide personalised recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy. OK
Read Comments