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मैं इस चर्चा में हिस्सा नहीं लेना चाहता था लेकिन जब लगा की जागरण स्वयं अपने उद्देश्य से भटक रहा है तो रहा नहीं गया. मंच पर हिट्स बढाने के और तरीके हो सकते हैं.
ईश्वर कभी भी इस दुनिया में स्वयं नहीं आता वह सिर्फ किसी काल-खंड विशेष में अपनी कुछ शक्तियां कतिपय विशिष्ट प्रयोजन से भेजता है जिन्हें हम ईश्वर मान लेते हैं और ये मान लेना गलत भी नहीं यदि आपकी ये मान्यता किसी को हानि नहीं पहुंचाती, इस फोरम के शुरू होते ही जिस प्रकार की बहस का आयोजन अपने आप हो गया है उससे यही लगता है जैसे चर्चा दिशाहीन हुई है लेकिन जागरण जंक्शन की टी.आर.पी. बढाने वाली मंशा जरूर पूरी हो रही है जो शायद सर्वोपरि है.
सत्य सांई को छोडिये एक बार यदि आप राम, कृष्ण को भी यहाँ रखें तो विद्वानजन उनका भी बेहतरीन चरित्र चित्रण कर देंगे.
इस तरह की चर्चा को कहते हैं ‘मरने के बाद मट्टी पलीद करवाना’ जागरण को इसमें अब महारत हासिल है.
एक बार मोहम्मद साहब पर भी ऐसी चर्चा करवाने की कृपा करें बाबा से ज्यादा उनकी मट्टी पलीद न हो जाये तो कहियेगा. तो फिर यदि हम मोहम्मद साहब के बारे में ये कह सकते हैं की जिनकी श्रद्दा उनमे है और वे बिना किसी को हानि पहुंचाए उनके अनुयायी बनते है तो क्या हर्ज है, किसी भी (महा)पुरुष को ईश्वरीय शक्ति मान कर यदि सही राह पर चलने की प्रेरणा मिलती है तो वह सही है तो फिर यही बाबा के बारे में भी मान लेने में क्या हर्ज है बाबा हो सकता है स्वयं बुरे रहे हों लेकिन वे यदि अब्दुल कलाम और सचिन के लिए प्रेरणाश्रोत थे तो इसमें कोई बुराई नहीं.
जागरण जंक्शन किसी भी ऐसेगैर राजनीतिक व्यक्ति पर (जिससे लोगों की आस्था जुडी हो) अनर्गल बहस करवाने से बचे तो अच्छा होगा. फिर भी यदि जागरण के विद्वानों को ये सही लगता है की बहस होनी चाहिए तो मेरी भी गुजारिश है की एक बहस मुहम्मद साहब के चरित्र पर भी होनी चाहिए.
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