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मत जाओ ! मत जाओ !

चातक
चातक
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कैसे कहें हम उनसे कि आज, मत जाओ,
नज़रों से सुनो दिल के जज़्बात, मत जाओ;
हम जानते हैं तुमको दिल का हाल पता है,
तुम जानते हों मेरा इजहार खता है;
हमको है फिर भी तेरा ऐतबार, मत जाओ,
आँखों से सुनो आँखों की बात, मत जाओ;
अपने ही दिल पे तुमने लगा रखे हैं पहरे,
अन्तर में दबी सी कहीं तूफ़ान की लहरें;
अब तोड़ भी दो रस्मों की दीवार, मत जाओ,
आने दो लबों तक भी अब ये बात, मत जाओ |

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