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एक समय था जब सबसे सुंदर स्त्री ही नगरवधू हुआ करती थी. देवी की तरह पूजी जाती थी. हालाँकि उनका मुख्य काम राजाओं, मंत्रियों और बड़े लोगों को खुश करना होता था. पर आज समाज में यह जिम्मेदारी जो लोग निभा रहे हैं और वो भी सर्वसामान्य स्तर पर, उन्हें लोग वेश्या, सेक्स वर्कर कह कर बुलाते हैं. कानून और समाज की दोतरफा मार से वे और उनके बच्चे त्रस्त हैं.
एक गैर सरकारी संगठन बचपन बचाओ आंदोलन की जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को वेश्यावृति को कानूनन मान्यता देने की सलाह दी है. केंद्र सरकार के इस तर्क पर कि यह बहुत पुराना पेशा है और इस पर कानूनन लगाम नहीं लगाया जा सकता है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर इस पर रोक नहीं लगा पा रहे तो क़ानूनी मान्यता तो दे ही सकते हो. तब कम से कम इस पेशे पर नज़र रखना आसान हो जायेगा. जरूरतमंदों को पुनःप्रवास और जरुरी मेडिकल सामग्रियां भी देने में आसानी होगी. देह व्यापार को कानूनन बंद नहीं कर पाने की स्थिति में अन्य कई देशों ने भी इसे क़ानूनी मान्यता दे रखी है. भारत की बात करें तो मौजूदा कानून पब्लिक प्लेस से 200 मीटर की दूरी तक देह व्यापार को अपराध मानता है. सेक्स वर्करों को पब्लिक प्लेस में अपने ग्राहक खोजने की भी मनाही है.
इनकी समस्याओं पर गौर करें तो इतने कठिन पेशे में होने के बावजूद आमदनी ज्यादा नहीं हो पाती है. एक तरफ दलाल से लेकर कोठे की मालकिन तक को कमीशन देते हैं तो दूसरी तरफ पुलिस को हफ्ता. जो बचता है उससे परिवार को चलायें या अपनी दवा दारू करें. हर जगह इन्हें और इनके बच्चों को तिरस्कार की नज़रों से देखा जाता है. क़ानूनी मान्यता मिलने से कम से कम स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं का लाभ तो मिलेगा ही. एड्स और अन्य यौन रोगों में भी कमी आ सकती है. इनके बच्चों को पर्याप्त शिक्षा मिल पायेगा. जहाँ तक बात बैंक या इंश्योरेंस की है, वह समय और लोगों की बदलती मानसिकता के साथ उपलब्ध होता जायेगा. वैसे पिछले कई वर्षों से लड़कियों की खरीद फरोख्त करने वालों और सेक्स वर्कर के ग्राहकों के लिए कड़े कानून बनाने का प्रस्ताव बन तो गया है, पर अभी तक संसद में आया ही नहीं है, पारित होने की बात तो दूर. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की सलाह कहाँ तक मानी जायेगी यह समय ही बताएगा………….
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