कलम...
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हमारी थालिओं की भूख गायब गायब है जिस्म से खून
मेहफूज है मजबूरियां जिस्म मे बस हड्डियाँ ही हैं मेहफूज
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हमारी रसोई से आटा दाल सब्जी गायब गायब मीठा और सुकून
मेहफूज है खाली डिब्बों मे कंकड़, पेट मे बस पत्थरी ही हैं मेहफूज
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हमारे सर की छते गायब गायब अपनी पुश्तैनी जमीन
मेहफूज है नींद फुटपाथ पर बदन पर फटा कुर्ता पजामा ही हैं मेहफूज
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हमारी अर्जियां फाईलों से गायब गायब दफ्तर से बाबुजी और मुनीम
मेहफूज है नए आवेदन करना अभी और नए दफ्तर के चक्कर है मेहफूज
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हमारे देश की उन्नति गायब गायब हो रहा गरीब आंम आदमी
मेहफूज है बस पार्टियाँ अब इस गुलिस्तान मे बस नेता ही है मेहफूज
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