Menu
blogid : 7734 postid : 247

“मेरा अंतर्विरोध”

कलम...
कलम...
  • 36 Posts
  • 1877 Comments

मेरा अंतर्विरोध ,
लिबलिबी उत्तेजित ट्रिगर दबी पिस्तौल है !
जब भी जमने लगता है प्रशस्तर ,
अहसासात की रूमानियत और इंसानियत पर,
तत्क्षण वँही ठोक देता है धांय-धांय,
ढेर कर देता है सारा व्रफुरपन मेरा अंतर्विरोध !

***

बदन के कुएं में जब भरने लगता है झूठ,
सारी काली कमाई गंदे खून की चूस लेता है मेरा अंतर्विरोध !
भर देता है जाकर कान आईने के मेरा अंतर्विरोध ,
फिर घुसकर आईने में तडातड झापट रसीद करता है चेहरे पर ,
जैसे मल्लयुद्ध कोई,यूँ धोबी पछाड़ लगा पटक देता है मेरा अंतर्विरोध !
रात भर तब जगाए रखता है और पीने को नींद नहीं देता ,
मेरे ठीक होने तक मलाल के इंजेक्शन घोंपता है मेरा अंतर्विरोध !

***

जब भी जमने लगती है कालिख-गलीज खोपड़ी में
सदाचार के तेज़ाब से घिस-रगड़ साफ़ करता है भेजा मेरा अंतर्विरोध !
भोंक सुआ, गरम चिमटा नासूर हो रहे बद्ख्याल पर
सारा मवाद  दुर्जनता का बहा मलहम लगाता है मेरा अंतर्विरोध !
जब तलक नहीं होता क्रोध-मोह-दंभ-ईर्ष्या-द्वेश विच्छेद
मुझे शल्य सा कोंचता रहता है  आत्मा का सारथी मेरा अंतर्विरोध !

***


मेरा अंतर्विरोध मुझे प्रयास से नपुंसक नहीं होने देता,
नहीं करने देता किस्मत को मेरे हौसलों की नसबंदी !
जब दबा होता हूँ टनों मीट्रिक हार के ढेर के नीचे,
तब भी बदन में नया फौलाद भर रहा होता है मेरा अंतर्विरोध !

मेरे चरित्र की रीढ़ हैमेरा अंतर्विरोध ,
हाँ मेरा दुश्मन भी है और मेरा दोस्त भी मेरा अंतर्विरोध !

***


====================================================================

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published.

    CAPTCHA
    Refresh