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“खाप के बाप”

कलम...
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Khap panchayatमूलत: खाप पंचायत पश्चिमोत्तर भारतीय राज्यों हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश से जैसे राज्यों में सामाजिक प्रशासन और क्षेत्रीय विकास को प्रतिबद्ध  संगठन की एक सुव्यवस्था थी.जिसका मूल कार्मिक उद्देश्य समय-समय पर राजनेतिक ,सामाजिक ,परिश्थितियों का मूल्यांकन कर उसमे सुधार की संभावना तलाश ,एक सामाजिक उत्थान की बात करना था !

पर देखा जाए तो खाप ,एक जातिगत आधार पर खड़ा विशाल क्षेत्रीय संघीय  ढांचा भर रह गया है ,अहलावत खाप,राठी खाप ,बाल्यान खाप  ,तोमर देश खाप, चौधरी खाप,भाटी खाप , कुछ विख्यात अपितु कुख्यात खाप पंचायत के रूप में उदाहर्णित किये जा सकता है !

विश्व पटल पर सबसे बड़े लोकतंत्र के  एक सामाजिक लघु रूप ने अब तानाशाह रूप ले लिया है ,जिसकी तुलना या नामकरण यदि तालिबानी व्यवस्थाओं के सैधांतिक रूप में होती है तो निश्चित ही हमारे देश के मौलिक अधिकारों का यह सामाजिक हनन है ,और आजाद भारत की  लोकतांत्रिक व्यवस्था की खिल्ली है !

इन खाप पंचायतो का यह सार्वजानिक बयान की हमारी संस्कृति ,हमारी परम्परा अलहदा है, बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है ! किसी भी देश की सांस्कृतिक और परम्परा विस्तारण से उसमे अन्तर्निहित क्षेत्र,राज्य,कस्बा,प्रशाशन कैसे अलग हो सकता  है ! ऐसे  व्यक्तव्यों में अलगावाद की बू आती है !

अभी हाल में ही खाप महापंचायत ने नारी आचरण सहिंता के नए माप दंड स्थापित किये  और उसकी नारी स्वायतत्ता की नई नीति दशा तय की है ,उनकी मानना है जँहा मोबाइल ने सुचना प्रसारण के चमत्कारिक बदलाव से देश में विकास की क्रान्ति  ला दी, उसके ठीक  विपरीत  यह उनकी लाडो की अस्मिता सुरक्षा  में एक बहुत बड़ी सेंध होगा !

पर आप सोचीय किसी भी दुर्घटना या आप्दायिक परस्थिति में मदद को अपनों तक पहुचने का ईश्वरीय शक्ति के बाद यह सबसे बड़ा वरदान है !गर हम अपने आस पास देखे तो कितने सामाजिक उदाहरण मिल जायेंगे जिसमे इस दूरभाष यंत्र ने कृष्ण अवतार ले , मददगार की भूमिका निभाई है ,और यदि इसके वावजूद भी खाप के सर्वेसर्वा इससे इनकार करते है तो ,माफ़ कीजिय यह कहने में कतई गुरेज नहीं की खाप की यह  काली सोचअपनी बेटियों के चरित्र पर एक प्रश्नचिह्न है ,एक कुठारघात है ,जिसमे आपकी खोखली परम्परा की संवेदनहीन मानसिकता भी झलकती है !

अतः यह निराधार मापदंड है, जिसमे अपने ही परिवार के प्रति सामंती सोच उजागर होती है !

दुसरा हिटलरी फरमान , सलवार-कमीज को लबादे की तरह ओढने से है ,जिसमे स्वेच्छा से बेटियाँ अपने वस्त्रों का चयन नहीं कर सकती ,निश्चित ही यह खाप की बंधुआ सोच का  शोषण प्रारूप है जो नारी अधिकारों का शोषण कर रहा है !क्या इन सब व्यवस्थाओं ने खाप  समाज के प्रांगन में हुए बलात्कार के घटना पर अंकुश लगाया ,बिलकुल नहीं !

अपितु सबसे वीभत्स ह्रदय विदारक बलात्कार की घटनाएं इन्ही क्षेत्रों से आती है ! स्त्री को परित्यक्त ,कैद कर  पुरुष पराधीन समाज की वासनाई सोच को बदला नहीं जा सकता , दोष कपड़ो का नहीं होता ,उस नजर का है जो वासनाई रोग  से ग्रस्त है !,

शर्म दिखने वाले इंसान की जरुरत से ज्यादा देखने वाले की नैतिक  आवश्यकता है  !

यदि कुछ पल के लिए गुवाहटी काण्ड में पीड़ित महिला के व्यक्तित्व पर वास्त्रिक दोष मढ़ भी  दिया जाए तो, उन वासनाई निर्लज अपराधियों  के  चारित्रिक दोष से कोई भी महिला आयोग ,या बुद्धि के तथाकथित सामाजिक ठेकेदार इनकार नहीं कर सकते है !

आज भारतीय नारी भारत की सर्वोच्य पद से , अमेरिकी नासा संस्थान ,औद्योगिक व्यवस्था ,और खेल जगत के शीर्ष पर विराजमान है ,और अपनी कुशलता से अपनी क्षमता को प्रमाणित भी करती है , यह सब हमारे सभ्य समाज के उदारपन से ही संभव हो पाया !

खापीय व्यवस्था स्त्री की भूमिका को कमजोर करती है ,उसे ताकतवर नहीं बनाती !  अत:  खुद को मजबूत और शक्तिशाली कहने वाली इस संस्था को बेटियों की सुरक्षा में अपने भरोसे का आत्मबल देना चाहिय , उन आततायी दानवो को अपनी व्यवस्था से निकाल फेकने की जरुरत है जो इन मापदड़ों की आड़ में स्त्री के साथ अपनी मनमानी करते  है !

खाप पंचायत या किसी भी माँ-बाप की जिम्मेदारी प्रतिबंधित नियमो के अनुसरण से पूरी नहीं हो जाती ! अपितु पुत्र हो या पुत्री उसमे सामाजिक और नैतिक मूल्यों के निर्माण की अनवरत कोशिश के  उदार संकल्प से ही हम अपेक्षित बदलाव की नीव रख पायेंगे !

और एक  बात पंच को परमेश्वर का दर्जा होता  है , अत: मेरा खाप के परमेश्वर पंचों से विनम्र अनुरोध है की सबक सिखलाये उनको , जो आपकी बेटी की अस्मिता पर प्रहार करे ,पर उनके डर से अपनी बेटियों पर बंधन ना बांधे .क्योंकि मै जानता हूँ आप हमारा ऐतिहासिक गौरव  है ,पर  कमजोर नहीं !

बस आप  मानवीय मूल्यों के सैद्धांतिक  भटकाव पथ पर अग्रसर  है !


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