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सांसदों पर टीम अन्ना की टिप्पणी – सच्चाई या विशेषाधिकार हनन ?
वर्तमान राजनीतिक परिपेक्ष्य मे निश्चित ही यह खुले तौर पर कहा जा सकता है की सरकार की स्थिति इक ऐसे जलते हुए चूल्हे की है , जिसकी आंच पर जो चाहे अपनी मनपसंद राजनीतिक रोटियाँ सेक सकता है , इक ऐसे घर की है जिसका मुखिया कोई आदर्श पेश नहीं कर सका और अब ऐसे हालत है की हर कोई अपनी मनमानी से अपनी दिशा और दशा तय करता है , निश्चय ही यह स्थिति अत्यंत हास्यपद है ,
यह सब कांग्रेस के नेताओं की राजनीतिक कौशलता की असमर्थता और आलस्य का परिचायक है, जबकि कांग्रेस के दिग्गज नेता बड़े बड़े शेक्षणिक संश्थाओ से वकालत और अर्थशाश्त्र की भरी भरकम उपाधियों से सुशोभित हैं ,
ऊपर से आये दिन चंद्रमा को खरीदने जितनी राशी जितना नुकसान और समुंदर सी विशालता लिए घोटाले,रही सही स्थिति को कंगाली मे आटा गीला होने जैसा बना देते है
हां यह भी सत्य है की कांग्रेस की तानाशाही प्रवृति,बिना सिर पैर वाली मन लुभावन खोखली नीतियों, और उनके शासन काल मे भ्रष्टासुर द्वारा जनता को लीलते देख अनगनित देशवाशियों का सोया देशप्रेम इक चिंगारी की भांति जागा ,
जिसकी आंच मे जलती चिंगारी को हवा दी , रामदेव और अन्ना हजारे और उनकी टीम ने ,
मेरा ये मानना है की आरंभिक चरण मे अन्ना टीम हो या रामदेव दोनों का प्रयास सम्माननीय और सराहनीय था, पर बाद मे जैसे उनमे महत्वकांक्षा और श्रेय पाने की होड़ सी लग गई , जबकि देश तो इस मुद्दे पर इक जुट था
इसका सब से बड़ा उदाहरण है की मुद्दा होकर भी इन्होने कभी कभार बमुश्किल आन्दोलन के मंच को साँझा किया ,और इसका खामियाजा दोनों को आन्दोलन की विफलता के रूप मे उठाना पड़ा ,
क्योंकि सरकार ने दोनों को साम-दाम-दंड-भेद से बरगला दिया ,
,
इक चरम सीमा पर आन्दोलन के पंहुचने के बाद अन्ना टीम विफल हो गई ,कोई दिशा तय नहीं कर पाई, और ताश के पत्ते की तरह अर्श से फर्श पर आ गिरी, और मुंबई मे आन्दोलन का आसमयिक रूप से घोषणा और लोगो की कम होती भीड़ ने झुंझलाहट का काम किया ,
भ्रस्टाचार से हट कर उन्होंने ज्यादा समय टिका टिपण्णी में बिताना शुरु कर दिया , और जिससे देश की जनता को कोई विशेष मतलब नहीं है ,
सभी जानते है इन चोरो और लुटेरों की जात को ,
इक और बात जिन मुर्ख नेताओं पर वो ऐसी उपहास भरी टिप्पणी करते हैं उन्ही मूर्खो की फ़ौज ने उन्हें पस्त कर दिया ,और जरुरत पैदा की रामदेव और अन्ना टीम के राम -भारत मिलाप की ,
इस आन्दोलन की चिल्ल-पो, और शोर-शराबे ने ऐसे प्रश्नों के गुबार बना दिए जिनके उत्तर ढूँढना आवश्यक है ,
क्या टीम अन्ना द्वारा सांसदों पर की गई टिप्पणी को जायज ठहराया जा सकता है?
आन्दोलन की असफलता और जनलोकपाल बिल के ना पारित होने ने अन्ना टीम को खुद को जनता का खोया विश्वाश जितने के लिए विवश कर दिया ,
और उसका शायद कोई दूसरा उपाय ना होने ने ही इस टीम को राजनेताओ पर तीखे और कटुवाण चलाने को प्रेरित किया , और इस टिका टिपण्णी में कई दफा अरविन्द केजरीवाल की जुबान जैसे केले के छिलके पर फिसल गई,
मूलत: तो उन्हें केवल जनलोकपाल बिल की बारीकियों से देश की जनता को वाकिफ करवाना चाहिय था, ताकि हर आन्दोलनकारी इसकी गहराई मे जाकर अपनी आस्था को हर प्रगाढ़ कर पूरी बुद्धि, विवेक, निष्ठा से इससे जुड़ सके ,
पर जिस तरह यह टीम सारी बुद्धिमता और ईमानदारी का ठेका खुद लेती है , वो कंही ना कंही एक दंभ भरी छवि के रूप में प्रदर्शित होता है ,
पूरे के पूरे राजनेतिक कुनबे को गलत ठहराना कंही न कंही गलत है , और बिना तथ्यों के और बिना अपराध सिद्ध हुए किसी पर भी व्यक्तिगत रूप से इतने सार्वजानिक रूप से बल देकर किसी का भी चरित्र हनन ऐसे व्यक्ति को शोभा नहीं देता जो इक नेता और आदर्श के रूप मे कम से कम मीडिया और जनता के बीच इक रामछवि का दंभ भरता हो
2. क्या संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में इस तरह के बयान तानाशाही की प्रवृत्ति के संकेतक हैं?
वर्तमान समय में जब विपक्ष अपने रोल का निर्वाहन ठीक तरह से नहीं कर रहा हो, और यदि हम कुछ समय के लिए जन लोकपाल को भूल जाये तो अन्ना टीम के द्वारा की गई टिप्पणियों को गलत या तानाशाह प्रवृत्ति के संकेतक के रूप में पेश नहीं किया जा सकता,
बल्कि राजनेतिक पार्टियों का व्यवहार इक तानाशाह प्रणाली के संकेतक के रूप में उभरता है , किसी भी भारतीय नागरिक का यह दायित्व है की देश की भलाई के लिए हर दुष्ट के खिलाफ आवाज उठाये,
3. क्या संसद को टीम अन्ना पर विशेषाधिकार हनन का मामला चलाना चाहिए?
संसद को सबसे पहले उन सांसदों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का मामला चलाना चाहिए जो संसद की करवाई के समय नींद में बेहोश हो जाते
उन सांसदों के खिलाफ चलाना चाहिए जो संसद के पवित्र धाम में अश्लील क्लिप्स दखते हैं ,
जो बिल फाड़ने जैसे अमर्यादित कार्य करते हैं , जो हर चर्चा के समय अभद्र्जनक भाषा और आचरण का परिचय देते हैं ,उन सांसदों के खिलाफ जिनकी वजह से संसदीय कार्यप्रणाली स्थगित करनी पड़ती है
4. क्या इन आरोपों-प्रत्यारोपों के बीच मूल मुद्दा यानि जन लोकपाल का मुद्दा परिदृश्य से ओझल हो गया है?
निश्चय ही इसमे तनिक भी संदेह नहीं की हम इन सब के बीच मूल और अहम् मुद्दे से कंही दूर भटक गए हैं पर यह भी सत्य की आम जनता को जिस मुद्दे से सबसे ज्यादा मतलब है वो आज भी उनके परिद्रश्य में हैं , यही कारण है की आज भी यदि इक आन्दोलन खड़ा करना हो तो हम सभी इस मुद्दे पर इक सहमत होंगे , पर कंही न कंही अन्ना टीम की आत्मस्तुति और आत्ममुग्धा उनकी छवि को नुक्सान पहुचा रही है
आज आवश्यकता है की आम लोगो, ग्रामीण लोगो को लोकपाल बिल की बुनियादी ढांचे से अवगत कराय, यह बताय की यह प्रणाली किस रूप मे कार्य करेगी , हम लोगो को ईमानदार बनना होगा और दुसरो को भी प्रेरित करना होगा ,
क्योंकि यदि हम उस समय का इंतज़ार करते है की सिस्टम यदि बीमार होगा तो हम उसे जन लोकपाल से ठीक करेंगे तो यह अतिश्योक्ति ही होगी ,
आज आवश्यकता इस बात है हम सिस्टम को बीमार होने ही ना दे ,
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