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“ बेरोजगार ”

कलम...
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poverty-11

बेरोजगार


मेरी विफलता को जैसे विवशता की कढाई मे,

उलाहना रूपी तेल मे निरंतर तला जा रहा है,

आंसुओं का लावा मेरे नैनों को गला रहा है,

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मेरा अस्तित्त्व शुन्य से भी बदतर है!

वक़्त का चाकू मुझेमारता ही नहीं कम्बखत,

हर बार एक बड़ा सा घाव बना देता है,

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और जैसे ही उबरने को होता हूँइस पीड़ा से,

चमचमाती साड़ी पहने सफलता,

मुस्कराहट के कोड़े से,

मुझे जी भर  कर पीटती है!

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दुर्भाग्य की खाई इतनी गहरी है की,

योग्यता की सीढ़ी पर थककर बैठ गया हूँ मै,

लगता है जैसे तनाव की एक हल्की पैनी सुई,

मेरे मष्तिष्क को गुब्बारे की तरह फाड़ देगी!

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सब कुछ धुंधला सा हो रहा है अब,

मै अति प्यासा व्याकुल पागल हुआ,

विचारो के तेजी से चलते वाहनों के बीच,घिरता, गिरता, उठता ,

समेट रहा हूँ चाबुको के निशान, जले हुए आंसू,

सूखे घावो की पपड़ियाँ, अपने अस्तित्व का तिनका!

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मै कच्ची माटी का पुतला,

टनों वजनी इस दुख से बस ढहने को हूँ,

मै हूँ बेरोजगार !

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Chandan Rai

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