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-25करोड़ों के नुकसान का प्रत्यक्ष अंदेशा
-13करोड़ यूनिट पैदा होती पन बिजली
-रिहन्द की पचास, ओबरा की 33मेवा. की इकाई जीर्णोधार पर
-एक रूपये प्रति यूनिट बिजली नहीं बना सके, 10 रुपये प्रति यूनिट की खरीद रही सरकार
सोनभद्र के रिहन्द और ओबरा डैम से छोड़े गये पानी के पीछे की अनकही कहानियों से करोड़ों की क्षति की भयावहता किसी ने भले ही न महसूस किया हो पर जागरण ने खूब अच्छी तरह से तहकीकात कर देश व पाठक के प्रति जिम्मेदारी का निर्वहन का प्रयास किया है। नौ सितम्बर11 से सितम्बर11 के बीच प्रशासनिक जिम्मेदारियों को छिपाने की भरपूर कोशिश की गयी। बस एक ही बात सामने आ रही थी कि पन बिजली से रिकार्ड उत्पादन हुआ परन्तु कोई यह कहने वाला नहीं था कि रिहन्द डैम पर बनी पचास मेवा की छह यूनिटों में जीर्णोधार पर बन्द चल रही एक यूनिट कह तक चलेगी और बंद है उसकी वजह क्या है? तहकीकात में आश्चर्य जनक तथ्य सामने आयें है। मामला उच्च स्तरीय जांच का है।
खुद ओबरा डैम पर पन बिजली के अधिशासी अभियंता पूर्णेन्द्रु शंकर स्वीकार करते हैं कि ओबरा डैम पर जीर्णोधार पर गयी यूनिट को जुलाई में आना था पर वह दिसम्बर11 तक आने की संभावना है। रिहन्द की यूनिट का जीर्णोधार भेल कर रहा है तो वहीं ओबरा डैम की यूनिट को चेन्नई की फर्म कर रही है। कार्य बिलम्ब पर यूपी हुकूमत की सहमति पर ओबरा थर्मल में बिलम्ब से कार्यरत विदेशी कम्पनी के खिलाफ कार्यवाई कर दी गयी थी। संभव है कि पन बिजली सरकारी संस्थान के बजाय प्राइवेट में होती तो ऐसी कम्पिनयों से करीब 25 करोड़ के नुकसान के दावे तो कर दिये गये होते। 15 जून से सोनांचल और इसके आस-पास के क्षेत्रों में तेज बारिश प्रारंभ हो गयी थी। यहां बता देना आवश्यक है कि मानसून सत्र में पन बिजली की सभी इकाइयों को पूरी क्षमता से चलाकर बिजली उत्पादन लिया जाता है। पन बिजली की यूनिटों को गरमी में बंद कर मरम्मत का कार्य कराया जाता है, वहीं थर्मल की यूनिटों को मानसून सत्र में अनुरक्षण पर लिया जाता है। बिजली की किल्लत को बरसात में पन बिजली दूर करती है तो गरमी के दिनों में थर्मल(कोयला)की यूनिटों से अत्यधिक बिजली उत्पादन लिया जाता है। पिछले तीन दिनों में रिहन्द या ओबरा डैम से करीब चार हजार एकड़ फीट पानी बहाया गया, जबकि ओबरा डैम की जीर्णोधार पर बंद चल रही यूनिट उत्पादन पर होती तो जुलाई 11से दस सितम्बर 11 तक छह लाख एकड़ फीट पानी का क्रमशः इस्तेमाल हो गया होता। न तो बाढ़ आती और न ही रेणु नदी, बिजुल नदी, सोन नदी, कनहर नदी के तटवर्ती क्षेत्रों में बड़ा खतरा होता। सत्तर दिनों में रिहन्द और ओबरा की बंद पन बिजली से 13.44 करोड़ यूनिट बिजली पैदा हुई होती। बिजली का विक्रय मूल्य 26 करोड़ से अधिक आयेगा। इस मामले में उत्तर प्रदेश बिजली कर्मचारी संघ उत्पादन निगम के प्रांतीय महामंत्री अजय कुमार सिंह ने कहा कि रिहन्द और ओबरा डैम पर आधारित जीर्णोधार पर यूनिटों के समय से नहीं चलाये जाने की जिम्मेदारी तय कर बंद यूनिटों की जांच की जानी चाहिए।पन बिजली से एक रुपये प्रति यूनिट बनाने में नाकाम सरकार दस रुपये बिजली खरीद रही है. डैम के पानी पर नियंत्रण के लिए पन बिजली, सिचाई विभाग या जिले के प्रशासानिक अधिकारियों ने भी खूब दौरा किया। बाढ़ सागर के पानी से सोन नदी खतरे के निशान के इर्द-गिर्द बनी रहती। यूपी, बिहार, झारखण्ड के नदियों के तटवर्ती इलाकों के हजारों एकड़ की फसल चौपट हो गयी। अनिगनत जानवरों को नुकसान पहुंचा। सैकड़ों झोपिड़यों नदी में बह गयी। केवल रेणु व बिजुल नदी के तट पर करीब तीन दर्जन नाले उल्टे दिशा में बहने लगे थे, जिससे किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान उठाना पड़ा।रेणु नदी के किनारे के कड़िया, गरूढ़, बहरा, चकाड़ी, खेवना, महलपुर, गोठानी, गायघाट, सिन्दुरिया, बरदिया, डडिहरा, सोढ़ा, टांग पाथर, बराइडाढ,कमरीडाढ़, खांत, तेनहुनिया, खजुरी, गड़िया, पिण्डरी आदि सैकड़ों गांवों की लहलहाती तिल्ली, अरहर, मक्का, धान, उड़द की खड़ी फसल बाढ़ में बह गयी। इनके साथ प्रशासन की राहत की कोई नीति सामने नहीं आ सकी है। खेती में सूखे की मार से अधमरे वनवासियों को बाढ़ ने पूरी तरह से मार डाला। दो वक्त की रोटी के लिए आदिवासी, वनवासी फिर से मोहजात हो गये। बाढ़ के कारणों की तह जाने के बजाय कमोवेश अधिकारियों की भूमिका सैलानियों के रूप में अधिक देखी गयी। मामले की जांच हो तो दूध का दूध और पानी का पानी होते देर नहीं लगेगा।
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