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माला जपना,
तिलक माथे पर लगाना,
दीपक जलाना,
घण्टोँ पूजा करना,
नमाज पढना,
चर्च, गुरूद्वारे या
मन्दिर जाना,
क्या ये भक्ति है?
पूजा के वास्ते
नौकरी पर लेट जाना,
सत्सँग मेँ जाने की खातिर
घर के काम छोङ देना,
क्या ये हमारे धार्मिक
होने के प्रतीक हैँ?
नहीँ, ये तो आडम्बर हैँ,
भक्ति तो एक
आत्मिक अलख है,
हर व्यक्ति की
भक्ति अलग है ।
पिता की भक्ति है,
परिवार का पालन,
माता की भक्ति है
परिवार का पोषण,
छात्र की भक्ति है
मनोयोग से अधध्यन,
शिक्षक की भक्ति है
कुशल अध्यापन,
दादा की भक्ति है
उचित मार्गदर्शन,
चाचा, ताऊ की भक्ति है
घर मेँ शाँति स्थापन,
भाई बहन की भक्ति है
मिलजुलकर रहना,
सुख और दुख
साथ साथ सहना,
राजा की भक्ति है
है सुशासन,
प्रजा की भक्ति है
नियमोँ का पालन,
वकील की भक्ति है
न्याय दिलाना,
दरोगा की भक्ति है
शाँति व्यवस्था बनाना,
व्यापारी की भक्ति है
ईमानदारी का लेन देन,
कलाकार की भक्ति है
मन से कला का प्रदर्शन,
लेखक की भक्ति है
सत्य का बखान,
वैज्ञानिक की भक्ति है
आविष्कार, अनुसँधान,
हर भक्त अपनी
यदि भक्ति पहचान ले,
अपने भगवान को
दिल मेँ बसा ले,
तो जीते जी उसकी
मुक्ति हो जाये,
तो दुनिया एक
स्वर्ग बन जाये ।
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