ijhaaredil
- 83 Posts
- 164 Comments
चल दिये अभी से मैदान छोङकर,
अभी तो खेल की महज इब्तिदा है,
क्यूँ चेहरा है जर्द, क्योँ सीने मेँ है दर्द,
अभी तो फ़कत एक मोहरा पिटा है,
कोशिश खुदा की है वो नवाजिश,
परिन्दा भी तिनके से बना लेता घोँसला है,
एक छोटी सी नाकामी और ये परेशानी,
अभी तो मँजिल से बहुत दूर काफिला है,
कहीँ तपती रेत, कहीँ लहलहाते खेत,
कितनी खूबसूरत कुदरत की अदा है,
इस शहरे तिलिस्म मेँ जियेगा वही,
जो गिरकर भी हो जाता खङा है,
बिठा दे अर्श पर, या गिरा दे फर्श पर,
मुझको मँजूर तेरा हर फैसला है,
Read Comments