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मन की व्यथा मन मेँ रख लो

ijhaaredil
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अपने जख्मोँ को उघाङकर
किसी को मत दिखा,
दिल मेँ छिपे दर्द को
गैरोँ को मत बता,
बहुत ही फरेबी है
यह दुनिया यार,
करीब आयेगी,
झूठी हमदर्दी जतायेगी,
तुझको करके जज्बाती,
राजेदिल ले जायेगी,
फिर चटकारे लेकर,
तेरे दर्द के किस्से
महफिल मेँ सुनाकर
जमकर कहकहे लगायेगी,
हर दिल तो इन्सानी
दिल नहीँ होता है,
हर इन्साँ तो वाकई
इन्साँ नहीँ होता है,
किसी पर दौलत का,
किसी पर शोहरत का
मुलम्मा चढा होता है,
कोई जमा होता है
ओहदे की बर्फ से,
कोई अटा होता है
गरूर की गर्द से,
कहाँ घुस पाते हैँ
हर सीने मेँ जज्बात,
कौन समझता है
दूसरे के हालात,
इसलिए दोस्त
दर्द को अपने
दिल मेँ दफ्न करले,
मिलते वक्त लोगोँ से
होठोँ पर
(चाहे झूठी ही सही)
मुस्कान धर ले ।

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