Menu
blogid : 16502 postid : 754037

राजनीति में किसी के दिन नहीं लदते | (क्या कांग्रेस के दिन अब लद चुके हैं) (jagran junction forum )

ijhaaredil
ijhaaredil
  • 83 Posts
  • 164 Comments

16 मई 2014 का दिन भाजपा और उसके सहयोगी दलों के लिए मौसमे बहार लेकर आया, तो कांग्रेस और उसके साथियों के लिए ख़िज़ाँ | कुछ दिन पहले सत्तासुख भोग रही पार्टी की दशा यह हो गयी कि सदन में मुख्य विपक्षी दल का दर्ज प्राप्त करने लायक सीटें भी उसे नसीब नहीं हुईं | कई राज्यों की जनता ने उसे पूरी तरह नकार दिया, तो कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन के कारण थोड़ी सी लाज बच गयी | क्या कारण है कि 1984 में 409 सीटें जीतने वाली पार्टी आज मात्र 44 पर सिमट कर रह गयी है |

कांग्रेस की इस दुर्गति के अनेक कारण हैं | UPA 2 के कार्यकाल में हुए अनेक घोटाले, प्रधानमंत्री का मौन, राहुल गांधी का अनाकर्षक नेतृत्व, वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का सकारात्मक प्रचार एवं विकासपुरूष की छवि, कांग्रेस की लक्ष्यविहीन राजनीति, कांग्रेस अध्यक्षा द्वारा धर्मगुरुओं का सहारा लेकर एक विशेष सम्प्रदाय के लोगों को लामबंद करने की कोशिश करना, गिरता हुयी विकास दर, नेताओं के गैरजिम्मेदाराना बयान आदि कुछ ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से आज कांग्रेस को यह दुर्दिन देखने पड़े हैं |

आज कांग्रेस की जो स्थिति है और देश में जो कांग्रेसविरोधी माहौल बना हुआ, उसे देखकर सियासी हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि क्या अब कांग्रेस के दिन लद गए हैं? क्या कांग्रेस का पुनरुत्थान कभी हो पायेगा | कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है | उसने कई बार उत्थान और पतन का दौर देखा है | आज़ादी से पहले भी कितने ही ऐसे अवसर आये थे की जब लगने लगा था कि कांग्रेस अब हमेशा के लिए ख़त्म हो जाएगी | 1907 के सूरत विभाजन के बाद तत्कालीन वाइसराय लार्ड कर्जन ने कहा था ” कांग्रेस अपनी अंतिम सांसे ले रही है, और मेरी इच्छा है कि मैं उसका अंतिम संस्कार करके ही यहाँ से जाऊॅं “ इसी तरह 1922 व् 1931 में क्रमशः असहयोग आंदोलन व् सविनय अवज्ञा आंदोलन की विफलता के बाद भी ऐसा ही लगा था कि यह पार्टी अब समाप्त हो जाएगी |

आज़ादी के बाद भी कईबार कांग्रेस ने विषम परिस्थितियां का सामना किया |

    साठ के दशक में इसमें विभाजन हुआ | आपातकाल के बाद हुए आम चुनावों में पार्टी को शिकस्त मिली | 1989 में सत्ता से वंचित हुयी | 1996 , 1998 , 1999 , के आम चुनावों में जनता ने इसे नकार दिया | उस समय भी लोगों ने यही कहा था कि अब कांग्रेस के दिन लद गए हैं | इसके पास कोई नेता नहीं है | खुद तत्कालीन कांग्रेस नेताओं शरद पंवार, तारिक़ अनवर, पी० ए० संगमा ने सोनिया गांधी के नेतृत्व को चुनौती देते हुए पार्टी छोड़ दी थी | लेकिन हमने देखा कि किस तरह 2004 में कांग्रेस ने अप्रत्याशित रूप से वापसी की थी \ जो नेता सोनिया गांधी का विरोध कर रहे थे, वे ही समर्थन देकर सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनवा देना चाहते थे |

यहाँ हमें यह बात भी याद रखनी चाहिए कि हमारा देश एक प्रजातान्त्रिक देश है | यहाँ दल या नेता के भाग्य का फैसला जनता करती है | वह आज जिसको सर माथे से लगये हुए है, कल उसी को अपने पैरों पर नाक रगड़वा सकती है | आज उसने श्री नरेंद्र मोदी के अंदर एक ऐसे विकासपुरुष के दर्शन किये हैं जो देश का चहुमुखी विकास कर सकता है | मोदी सरकार अपने सर पर जनता की उम्मीदों की एक भारी गठरी लेकर मैदान में उतरी है, यदि वह लडखडाती या निष्क्रिय नज़र आयी तो, जनता उसे माफ़ नहीं करेगी | भाजपा ने जो चुनावी वादे जनता से किये हैं, यदि वह उनसे जी चुराती नजर आयी तो, पांच साल बाद नरेंद्र मोदी जो आज सबकी आँखों का तारा है, सबकी आँखों की किरकिरी बन जायेगा | तब जनता के पास कोई दूसरा विकल्प न होगा और वह लौटकर कांग्रेस के पास ही जायेगी | क्योंकि क्षेत्रीय दलों में इतनी कूवत नहीं है कि वे देश को एक उचित, संगठित तथा स्थायी सरकार दे सकें | साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जो जनता सोनिया गांधी को अपना सकती है, वह राहुल को क्यों नहीं अपनाएगी |

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh