- 83 Posts
- 164 Comments
दोस्तो अभी कुछ दिन पहले मेरे जिले की एक विधान सभा सीट पर उपचुनाव हुआ । इस चुनाव मेँ मतदान कर्मी के रूप मेँ कर्तव्य निर्वाहन हेतु मेरी भी नियुक्ति हुयी । मेरे मतदान दल मेँ एक पीठासीन अधिकारी जोकि किसी प्राथमिक विद्यालय के मुख्य अध्यापक हैँ, मतदान अधिकारी प्रथम, द्वितीय व तृतीय के रूप मेँ क्रमशः एक अध्यापक, वन विभाग के क्लर्क तथा एक किसी विद्यालय मेँ कार्यरत चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी शामिल थे । मैँ अतिरिक्त मतदान अधिकारी द्वितीय था ।
हमारा मतदेय स्थल एक गाँव मेँ था । यह एक विद्यालय की इमारत थी । मतदान वाले दिन से एक दिन पूर्व हमारा दल अपने निश्चित स्थल पर लगभग अपराहन दो बजे पहुँच गया ।
सायँ लगभग 5 बजे पीठासीन अधिकारी महोदय ने गाँव के दो नवयुवकोँ को बुलाकर कान मेँ कुछ कहा । थोङी देर पश्चात वे दोँनो नवयुवक कागज मेँ लपेटकर चुपचाप एक शराब की बोतल साहब के बैग मेँ रख गये । फिर लगभग 7 बजे शुरू हुआ पीने का दौर । पीठासीन, मतदान अधिकारी द्वितीय व तृतीय ने मिलकर उसी कक्ष मेँ जोकि एक कक्षा है, उन्हीँ कुर्सी मेजोँ पर बैठकर जिन्हेँ शिक्षक और छात्र अध्यापन और अधध्यन के लिए प्रयोग करते हैँ, मद्यपान किया, मुर्गा खाया ।
दूसरी कक्षाओँ मेँ पुलिसवाले तथा अन्य कर्मचारी ठहरे हुये थे, वे भी कहाँ पीछे रहने वाले थे । रात्रि नौ बजे के बाद तो वहाँ का माहौल ऐसा था कि यह स्थान कोई पाठशाला न होकर मधुशाला हो । कोई नशे मेँ जोर-2 से चिल्ला रहा है, कोई वमन कर रहा है, कोई कपङोँ मेँ ही मूत्र का परित्याग कर रहा है ।
आज यह हो गया है हमारे शिक्षकोँ का स्तर । आज का लगभग 75% शिक्षक शराबी है और बुराईयोँ जैसे व्याभिचार, भ्रष्टाचार आदि मेँ लिप्त है । शिक्षा के मन्दिर शराबखाने, जुआखाने बना दिये गये हैँ । कैसे आशा कर सकते हैँ ऐसे गुरूओँ से कि वे एक उत्तम राष्ट्र का निर्माण करेँगे ।
अपनी बात समाप्त करने से पहले मेँ उन अच्छे गुरूओँ से क्षमा माँगता हूँ जो सच्चरित्र हैँ, पूर्ण निष्ठा, ईमानदारी से अपना कर्तव्य निर्वाहन कर रहे हैँ ।
Read Comments